राजीव गोयल
बदायूं जिले के थाना उघैती क्षेत्र में हुई यौन उत्पीड़न की जघन्यतम वारदात का सच पुलिस की जांच पूरी होने
के बाद ही सामने आ सकेगा लेकिन, स्थानीय लोग वारदात को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर और स्तब्ध नजर
नहीं आ रहे हैं। वारदात के पीछे का सच अधिकांश लोगों को पता है, जिससे स्थानीय लोग बाहरी लोगों की
प्रतिक्रिया को देख कर स्तब्ध नजर आ रहे हैं।
यह सच है कि मृतका की मृत्यु हुई है और वह गंभीर रूप से घायल थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका के घाव
सामने आये तो, यौन उत्पीड़न का आरोप होने के कारण वारदात को जघन्यतम मान लिया गया, जबकि सच
कुछ और ही बताया जा रहा है। बताते हैं कि मृतका का पति सीधा सा है लेकिन, मृतका दूसरी पत्नी थी।
पहली पत्नी तलाक के बिना ही अलग हो गई। मृतका पति की तुलना में ज्यादा सक्रिय थी, वह आंगनबाड़ी
कार्यकत्री की सहायिका भी थी, घर का खर्च वह ही चलाती थी, वह घर-परिवार पूरी तरह संभालती थी, वह ही
घर की मालकिन थी, उसी के आदेश-निर्देश परिवार में चलते थे, सो उससे सवाल-जवाब करने वाला कोई नहीं
था, वह कब जा रही है, कहाँ जा रही है, क्यों जा रही है, कब आयेगी?, ऐसे सवाल उससे कोई नहीं करता
था।
मृतका के मायके और ससुराल वाले गाँव पास ही हैं, बमुश्किल ढाई किमी का अंतर है। थाने में दर्ज कराई गई
एफआईआर में कहा गया है कि 3 जनवरी को मृतका शाम 5 बजे मायके में स्थित ठाकुर जी महाराज के
मंदिर पर चल चढ़ाने गई थी, उसके बाद रात के 12 बजे महंत सत्यनारायण, उसका चेला वेदराम और ड्राइवर
जसपाल बुलेरो गाड़ी से लहूलुहान अवस्था में मृतका को घर पर छोड़ गये और बता गये कि वह गिरने से
घायल हो गई है, इसके कुछ देर बाद उसने दम तोड़ दिया, यहाँ तक की कहानी तहरीर में सही है, इसके आगे
उक्त तीनों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है, संबंधित धाराओं में पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है
और वेदराम एवं जसपाल गिरफ्तार कर जेल भेज दिए हैं, वहीं 7 जनवरी की रात में भागने का प्रयास कर रहा
महंत सत्यनारायण भी ग्रामीणों ने पकड़ लिया और बाद में पुलिस के हवाले कर दिया, वह गाँव में ही किसी
के घर में छुपा था और रात में भागने का प्रयास कर था तभी ग्रामीणों ने दौड़ कर खेतों में दबोच लिया।
परिजनों का कहना है कि पुलिस को रात को ही सूचना दे दी थी लेकिन, पुलिस नहीं आई, यह आरोप भी सही
लगता है लेकिन, निलंबित किये जा चुके थाना प्रभारी रावेन्द्र सिंह सुबह को गाँव पहुंचे पर, तब तक गाँव
हरिपुर में कुआं में ईटें निकालते समय मिटटी की ढांग गिरने से किशनपाल नाम का युवक दब गया। रावेन्द्र
सिंह मृतका के परिजनों से यह कह कर चले गये कि वे लौट कर आते हैं, फिर पंचनामा भरने की कार्रवाई
करायेंगे लेकिन, हरिपुर में किशनपाल को बाहर निकालने का कार्य दोपहर बाद तक चला, जिससे वे लौट नहीं
पाये। रावेन्द्र सिंह ने संभवतः यह सोच लिया होगा कि वहां महिला मर चुकी है और यहाँ युवक के बचने की
उम्मीद है, सो वे किशनलाल को बचाने में ज्यादा रूचि लेते रहे, जो गलत नहीं कहा जा सकता पर, इतनी
भूल या, चूक कही जा सकती है कि वे स्वयं नहीं आ सकते थे तो, क्षेत्र के सब-इंस्पेक्टर को भेज कर पंचनामा
भरवा कर शव पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भिजवा सकते थे, इस गलती का दंड उन्हें मिल चुका है,
उन्हें और क्षेत्र के प्रभारी अमरजीत सिंह को एसएसपी संकल्प शर्मा ने निलंबित कर दिया, साथ ही दोनों के
विरुद्ध के विरुद्ध 166 ए के अंतर्गत मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया है। देवेन्द्र सिंह धामा को नया थाना
प्रभारी नियुक्त कर दिया गया है।
अब सवाल बचता है कि मृतका के साथ क्या हुआ?, इस सवाल का सही जवाब पुलिस की विवेचना पूर्ण होने
के बाद ही सामने आ पायेगा लेकिन, स्थानीय लोग मानते हैं कि मृतका मंदिर पर थी तभी कोई तीसरा भी आ
गया, जिसके चलते मृतका छुप गई, वह अँधेरे के चलते कुआं में गिर गई, कुआं के अंदर बोरिंग था, जिस पर
गिरने से वह गंभीर रूप से घायल हो गई, यही घाव वारदात को गंभीर बना गये।
मृतका के कुआं में गिरने और गंभीर रूप से घायल होने के बाद संभवतः महंत सत्यनारायन भी घबरा गया
होगा, उसने अपने विश्वस्त चेले वेदराम और ड्राइवर जसपाल को बुलाया और किसी तरह कुआं से निकालने के
बाद वे उसे उपचार हेतु संभल जिले के चंदौसी ले गये, जहाँ डॉक्टर ने उपचार करने से मना कर दिया तो,
महंत सत्यनारायण गंभीर रूप से घायल मृतका को उसके घर पर छोड़ गया और स्वयं मंदिर पर आ गया, इस
घटनाक्रम में एक अहम सवाल और उठ रहा है कि देर शाम मंदिर में चल चढ़ाने की परंपरा नहीं है। शाम को
दीपक जलाया जाता है, श्रंगार किया जाता है पर, एफआईआर में कहा गया है कि मृतका जल चढ़ाने गई थी,
इस सवाल का जवाब ही विवेचक को खोजना है अब, इसका जवाब सामने आते ही घटना के पीछे की तस्वीर
स्पष्ट हो जायेगी।
खैर, पहली गलती यह हुई कि थाना पुलिस ने किशनपाल के कुआँ में दबा होने के कारण घटना को उतना
गंभीरता से नहीं लिया, जितना लेना चाहिए था। दूसरी गलती यह हुई कि पोस्टमार्टम में सामने आये घावों को
यौन उत्पीड़न से जोड़ दिया गया और यह तक प्रचारित कर दिया गया कि मृतका के गुप्तांग में लोहे की रॉड
डाली गई है, जबकि रिपोर्ट ऐसा नहीं कह रही है। पोस्टमार्टम में घटना के समय का कोई वीडियो नहीं बन
जाता है, उस रिपोर्ट से कल्पना की जा सकती है, संभावना जताई जा सकती है। मृतका के गुप्तांग में जो चोट
लगी है, वह कुआँ के अंदर बोरिंग पर गिरने से भी संभव है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट को जिस तरह से दुष्प्रचारित
किया गया है, उसको लेकर डीएम कुमार प्रशांत ने मजिस्ट्रियल जाँच के आदेश दे दिए हैं। एडीएम (वित्त) नरेंद्र
बहादुर सिंह को जाँच सौंपी गई है।
पुलिस की लापरवाही और पोस्टमार्टम के आधार पर खबरें मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के संज्ञान में पहुंचीं तो,
उन्होंने एडीजी से रिपोर्ट तलब कर ली, साथ ही एसटीएफ को जांच में जुटा दिया। एडीजी मौके पर पहुंचे,
इसके बाद घटना पर राजनैतिक प्रतिक्रिया आना शुरू हो गईं। अखिलेश यादव, मायावती और प्रिंयका गाँधी के
ट्वीट आ गये। ट्वीटर पर घटना ट्रेंड करने लगी। समाजवादी पार्टी ने धर्मेन्द्र यादव के नेतृत्व में मौके पर जाने
के लिए प्रतिनिधि मंडल गठित कर दिया। धर्मेन्द्र यादव 7 जनवरी को गाड़ियों के विशाल काफिले के साथ
मौके पर पहुंचे, उन्होंने परिजनों से वार्ता करने के बाद परिवार को 25 लाख रुपया, मृतका के बेटे को नौकरी
देने के साथ सीबीआई जाँच कराने की मांग की। हालाँकि 6 जनवरी को क्षेत्रीय सपा विधायक व पूर्व राज्यमंत्री
ओमकार सिंह यादव और उनके बेटे डीसीबी के पूर्व चेयरमैन ब्रजेश यादव पीड़ित परिवार से मिल आये थे।
धर्मेन्द्र यादव के बाद राज्यमंत्री महेश चंद्र गुप्ता, सांसद संघमित्रा मौर्य, राज्यसभा सदस्य वीएल वर्मा भाजपा
के तमाम पदाधिकारियों के साथ पहुंच गये, उन्होंने भी परिजनों से वार्ता कर घटना पर दुःख जताया, उन्होंने
कहा कि भाजपा सरकार पीड़ित परिवार के साथ है और हर संभव मदद करने के साथ ही आरोपियों को कड़ी
सजा दिलाई जायेगी, इसके अलावा आम आदमी पार्टी भी भाजपा सरकार पर लगातार हमला कर रही है।
रिटायर आईएएस सूर्य प्रताप सिंह भी तूल देने में अपनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं।
उधर कोई वारदात राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित हो जाती है तो, उसके बाद जाने-अनजाने कई सारी गलतियाँ होने
लगती हैं, उस घटना के माध्यम से स्वयं को भी प्रचारित करने का ट्रेंड चल रहा है। जैसे कि राष्ट्रीय महिला
आयोग की सदस्य चंद्रमुखी आईं तो, वे संयोग से कह गईं कि महिलाओं को समय-असमय नहीं पहुंचना
चाहिए, संध्या के समय नहीं जाती तो, संभवतः ऐसी वारदात नहीं होती, इस तरह की बयानबाजी से विपक्ष
को अवसर मिलता रहता है, जबकि उनका काम बयान देना नहीं बल्कि, राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिपोर्ट प्रेषित
करना था।
पूरे घटनाक्रम में दो बातें मुख्य हैं। एक पुलिस की चूक और दूसरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट का दुष्प्रचारित हो जाना।
चूक करने वाले थाना प्रभारी को दंड मिल चुका है लेकिन, दूसरी गलती का दंड किसी निर्दोष को नहीं मिलना
चाहिए। महंत सत्यनारायण घटना का कारक माना जा सकता है, उसे दंड मिलना चाहिए लेकिन, वेदराम और
जसपाल की भूमिका उपचार के लिए ले जाने भर की ही मानी जा रही है, इनके परिजन सीबीआई जांच चाहते
हैं ताकि, उन्हें भी न्याय मिल सके। हालंकि वे आरोपी हैं तो, उनकी और उनके परिजनों के दर्द को कोई
महसूस नहीं कर रहा है। संविधान भी कहता है कि भले ही दोषी छूट जाये पर, निर्दोष को सजा नहीं मिलना
चाहिए। इधर मृतका के परिजन पुलिस-प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई से पूरी तरह संतुष्ट नजर आ रहे हैं।
मृतका का बेटा स्वयं को कार्रवाई से संतुष्ट बताते हुए सरकारी नौकरी की मांग रखता है। आपराधिक वारदात
में दोषी को दंड दिलाने के अलावा पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता देना, नौकरी देना कितना सही है, यह
बहस का अलग मुद्दा हो सकता है पर, बात कार्रवाई की करें तो, परिवार कार्रवाई को लेकर असंतुष्ट नहीं है
और जब पीड़ित परिवार कोई सवाल नहीं कर रहा तो, अन्य के द्वारा किये जा रहे सवालों का बहुत ज्यादा
महत्व बचता नहीं है, सो अब उक्त वारदात पर सवाल-जवाब करने का क्रम थम जाना चाहिए।