लड़खड़ाहट के बाद

asiakhabar.com | January 27, 2018 | 5:03 pm IST
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ड्स एंड सर्विसेज टैक्स के हाल के आंकड़े खासे सकारात्मक हैं। दिसम्बर, 2017 में जीएसटी संग्रह 86,703 करोड़ रु पये का हुआ है। इससे पहले के महीने यानी नवम्बर, 2017 में यह संग्रह गिरकर 80, 808 करोड़ रु पये तक पहुंच गया था। अक्टूबर, 2017 में यह संग्रह 83,000 करोड़ रु पये का था, और सितम्बर में तो यह 92,000 करोड़ रु पये का था। चिंताएं पैदा हो गई थीं नवम्बर, 2017 के आंकड़े से। आगामी बजट से ठीक पहले बेहतर जीएसटी संग्रह के आंकड़े कुछ राहत दे सकते हैं सरकार को। जुलाई, 2017 से लागू जीएसटी केंद्र सरकार के लिए आर्थिक और राजनीतिक चुनौती दोनों ही रहा है। कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में जीएसटी को बतौर राजनीतिक मुद्दा पेश किया गया। विपक्ष ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा यानी जीएसटी से जुड़ी किसी भी विफलता और समस्या का ठीकरा केंद्र सरकार पर ही फूटना है। यह अलग बात है कि जीएसटी से जुड़े नियम-कायदों को बनाने में देश के लगभग हर महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल का हाथ रहा है। जीएसटी कौंसिल की बैठकों में तमाम राज्यों के वित्त मंत्री शामिल होते हैं। जाहिर है कई राज्यों में गैर-भाजपाई सरकारें हैं। राजनीतिक दबावों के चलते कई वस्तुओं और सेवाओं की कर दरों में कमी की गई। कर दर में कमी का सीधा-सा असर यही होना है कि कर संग्रह में कमी आएगी। वैसा होता भी दिखा। कम कर दर के बावजूद कर बढ़ें तो इसका मतलब है कि वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री में बढ़ोतरी हो रही है यानी अर्थव्यवस्था गति पकड़ रही है। हाल के संकेत बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के तमाम क्षेत्रों में पहले के मुकाबले सुधार हुआ है। दोपहिया वाहनों की बिक्री बढ़ रही है। कारों की बिक्री बढ़ रही है। तमाम साज-सामान पहले के मुकाबले ज्यादा बिक रहे हैं, और करों के संग्रह में अपना योगदान दे रहे हैं। जीएसटी में कर संग्रह बेहतर रहे तो केंद्र सरकार को थोड़ा खुला हाथ मिल जाता है केंद्रीय बजट में कर संबंधी निर्णयों को लेने में। गौरतलब है कि जीएसटी व्यवस्था ने कर निर्धारण का बहुत-सा काम केंद्र सरकार से लेकर जीएसटी कौंसिल को दे दिया है। फिर भी कर निर्धारण के बहुत से फैसले बजट में ही होते हैं। अगर जीएसटी का संग्रह लगातार बढ़ता जाए तो केंद्र सरकार बजट के जरिए या तो कराधान कम कर सकती है, या बजट के जरिए हासिल करों का और कहीं और सार्थक इस्तेमाल कर सकती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती जैसे-जैसे दूर होगी वैसे-वैसे जीएसटी के आंकड़े और मजबूती दिखाएंगे।


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