प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दोबारा चुने जाने के बाद से उनकी शैली में जबरदस्त जीत के बाद जबरदस्त
बदलाव दिख रहे हैं। एक उत्साही, परिवर्तनों को उत्कंठित व आक्रामक किंतु कम अनुभवी व्यक्ति कब
विनम्र, परिपक्व व आत्मविश्वास से भरपूर व्यक्तित्व बन गया पता ही नहीं चला। देश में समग्र विकास
व परिवर्तन की मोदी जी के पास एक पूर्ण संकल्पना व कार्ययोजना है जिसके अनेक पहलुओं का देश को
उनके पिछले कार्यकाल में पता चल चुका था। अपने नए कार्यकाल के अगले पांच वर्षों में वे देश को
बहुत तेजी से आगे ले जाना चाहते हैं और इसके लिए हाल ही में उन्होंने अगले पांच वर्षों में देश की
अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना करने का अपनी सरकार का लक्ष्य घोषित किया है। उम्मीद है कि सरकार
का अगला बजट भी इन्हीं लक्ष्यों की पूर्ति की दिशा में होगा। आलोचकों को यह अतिउत्साही व
अकल्पनीय भी लग रहा है और कुछ इसको उनका बड़बोलापन व जीत का खुमार भी मान रहे हैं। किंतु
उनको नजदीक से जानने समझने वाले कहते हैं कि ‘मोदी हैं तो मुमकिन है’। ऐसे में जबकि पूरा देश
मोदीजी के साथ खड़ा है व उनपर भरोसा करता है और यह लक्ष्य अब सरकार का औपचारिक व
नीतिगत फैसला बन चुका है तो इस क्रियान्वयन पर व उसकी राह में आने वाली बाधाओं व उनको दूर
करने वाले उपायों पर गहन विमर्श अपेक्षित है।
अर्थव्यवस्था के दोगुना होने का अर्थ सीधे सीधे यही है कि अगले पांच वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में
रुपए की कीमत जो वर्तमान में डॉलर के मुकाबले 70 रुपए के आसपास है वह पूरी तरह बदल जाएगी
और 35 से 40 रुपए तक आ सकती है। यह लक्ष्य तभी संभव है जब हम देश का चीन, अरब देशों व
विकसित देशों से आयात-निर्यात बराबर कर पाए। हमारा इन देशों से व्यापार संतुलन बिगड़ा हुआ है और
हम इनसे निर्यात की तुलना में अत्यधिक मात्रा में आयात करते हैं जो हमारे लिए आत्मघाती रहा है,
इसको बदलना जरूरी है। जब देश मे तेल और गैस का उत्खनन कई गुना अधिक होगा, चीनी माल की
जगह हम देसी उत्पादित सामान का प्रयोग बड़ा देंगे, तकनीक व रक्षा सामग्री व हथियारों का स्वयं से
उत्पादन शुरू कर देंगे तो देश अपेक्षित लक्ष्यों व परिणामों को प्राप्त कर सकता है। अपने पिछले
कार्यकाल में मोदी सरकार का ध्यान देश के आधारभूत ढांचे के व्यापक विकास पर था और सन 2022
तक देश निर्धारित अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप इस ढांचे को खड़ा कर लेगा, यह चल रही
परियोजनाओं से स्पष्ट दिख रहा है। बड़ी चुनौती देश के औद्योगिक व व्यापारिक ढांचे में आमूलचूल
बदलाव की है और सरकारी तंत्र को ढर्रे पर लाने की भी। देश के हर जिले में औद्योगिक क्षेत्र बने हुए हैं
मगर उनकी दशा बहुत ही खराब है। कुछ विशेष औद्योगिक क्षेत्रों के भरोसे देश की अर्थव्यवस्था का
आकार दोगुना करना असंभव है। भारत सन 1850 तक विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में था क्योंकि यहां पर
विभिन्न किस्म के कुटीर उद्योगों का जाल हर गांव तक फैला हुआ था। जिस कारण कुशल व पेशेवर
कामगार, आत्मनिर्भर गांव व शून्य बेरोजगारी की स्थिति थी। दुनिया के व्यापार में हमारा हिस्सा 30
प्रतिशत के आसपास था। इस स्थिति को पुन: प्राप्त करने के लिए हमें विकेंद्रीकरण के साथ ही कुटीर,
सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योगों पर विशेष ध्यान देना होगा।
हाल ही में मैंने कुछ यूरोपीय देशों की यात्रा की और पाया कि हर देश का नागरिक अपनी भाषा में ही
बात करता है, जनसंख्या नियंत्रण में है, कानूनों के उल्लंघन करने पर सख्त सजा व जुर्माना है, निचले
स्तर पर भ्रष्टाचार न के बराबर है व नागरिक सेवाओं की आपूर्ति व गुणवत्ता बहुत स्तरीय है इसलिए
लोग ईमानदारी से टैक्स देते हैं। सबसे बड़ी बात कि प्रदूषण व गंदगी न के बराबर है, यद्यपि प्रति
नागरिक ढांचागत सुविधाएं भारत के मुकाबले दस गुनी हैं। प्रत्येक नागरिक का सम्मान है, स्त्रियों को
समान अधिकार हैं व शिक्षा, स्वास्थ्य व न्याय प्रणाली विश्व स्तरीय हैं। रोटी-कपड़ा-मकान सभी को
आसानी से सुलभ हैं। वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता लाजवाब है। लोगों की मौलिक सोच व विचारों को
सम्मान मिलता है। इस कारण लोग अपने देश से अप्रतिम प्यार करते हैं। इसकी तुलना में भारत
अत्यधिक पिछड़ा है। कहने को तो आज भी आर्थिक रूप से हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
हैं मगर अनियंत्रित आबादी, अकर्मण्य, अयोग्य व भ्रष्ट अधिकारियों व सरकारी तंत्र ने हमें बहुत पीछे कर
दिया है। अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना करने के लिए बड़े संवैधानिक बदलावों की भी आवश्यकता है
(इनकी चर्चा लगातार होती रहती है) ताकि समाज में समरसता आ सके और प्रत्येक व्यक्ति देश के प्रति
लगाव व जिम्मेदारी समझ देश के विकास में जुट सके। मोदी सरकार के लाख उपायों के बाद भी आज
भी देश मे लाखों फर्जी डिग्रीधारक सरकारी पदों पर बैठे हैं, लाखों वाहनों के रजिस्ट्रेशन नंबर फर्जी है और
करोड़ों ड्राइवर फर्जी लाइसेंस लिए घूम रहे हैं, सरकारी योजनाओं, ठेकों व आवंटन में अभी भी व्यापक
गड़बड़ी चल रही हैं, आज भी करोड़ों लोग सरकारी समाज कल्याण योजनाओं के लाभ से वंचित हैं व
उनके नाम पर गलत लोग उन योजनाओं का फायदा पहुंचा रहे हैं। भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों व
घोटालेबाज नेताओं के खिलाफ कार्यवाही ऊंट के मुंह में जीरे के समान है, देश गंदगी, अराजक यातायात
व कूड़े, पानी व मल आदि के निस्तारण के घटिया तंत्र व प्रबंधन का शिकार है व देश की राजधानी
दिल्ली ही इसका जीता जागता उदाहरण है। राजनीति हो या समाज, लोग कई कई चेहरे लगाकर घूम रहे
हैं। अर्थव्यवस्था के विकास के साथ देश की समग्र दिशा क्या होगी यह भी गहराई से स्पष्ट करने की
आवश्यकता है।
निश्चित रूप से मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्य का स्वागत होना चाहिए, ऐसे में जबकि पार्टी,
सरकार व विपक्ष हर स्तर पर मोदीजी का विरोध निम्तम स्तर पर आ चुका है व अगले वर्ष राज्यसभा
में भी एनडीए का बहुमत हो जाएगा, देश की जनता मोदी सरकार से द्रुत विकास की अपेक्षा क्यों न
रखे। उम्मीद है सरकार ऊपर वर्णित चुनौतियों को भी अपने लक्ष्यों में शामिल करेगी।