
संयोग गुप्ता
आज कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता है जिस दिन देश के किसी न किसी भाग में सड़क हादसा न हुआ हो
और कई लोगों को जान से हाथ ना धोना पड़े। अधिकांशतः सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होने वाले व्यक्ति आम
जन ही होते हैं। इसलिए वे अखबारों की सुर्खियां नहीं बन पाते। जिससे उन दुर्घटनाओं पर लोगों का ध्यान भी
नहीं जाता है। देश में मोटर व्हीकल एक्ट में किया गया संशोधन 1 सितंबर 2019 से लागू हुआ था। इसका
मकसद, देश में सड़क पर यातायात को सुरक्षित बनाना और सड़क हादसों में लोगों की मौत की संख्या को
कम करना था। लेकिन कोरोना काल से उबरने की जद्दोजहद में अब जैसे-जैसे देश में अनलॉक की प्रक्रिया
आगे बढ़ रही है, देश उसी पुरानी अवस्था की ओर बढ़ रहा है। परिवहन और यातायात दोबारा तेज होने के
साथ ही सड़क हादसों की संख्या और उनसे होने वाली मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में 4 लाख 37 हजार 396 सड़क हादसे हुए।
इनमें एक लाख 54 हजार 732 लोगों की जान गई और 4 लाख 39 हजार 262 लोग घायल हुए। 59.6
फीसदी सड़क दुर्घटनाओं का कारण तेज रफ्तार रही। तेज रफ्तार की वजह से सड़क दुर्घटना में 86 हजार
241 लोगों की मौत हुई और 2 लाख 71 हजार 581 लोग घायल हुए। 2018 में 1.52 लाख लोगों की
मौत हुई। 2017 में यह आंकड़ा डेढ़ लाख लोगों का था। ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार सड़क दुर्घटना में मरने
वाले 38 फीसदी लोग दोपहिया वाहन पर सवार थे। इन्हें ट्रक, बस या कार के साथ हुई भिड़ंत की वजह से
जान गंवानी पड़ी।
भारत में होने वाले सड़क हादसे में करीब 26 फीसदी खतरनाक या लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग की वजह
से होते हैं। पिछले साल इनकी वजह से 42 हजार 500 लोगों की जान चली गई और एक लाख से अधिक
लोग घायल हो गए। कोविड-19महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था। अप्रैल से
लेकर जून 2020 तक सड़क हादसों में 20 हजार 732 लोगों की मौत हुई। जबकि 2019 में अप्रैल से जून
के बीच 41 हजार 32 लोगों की सड़क हादसों में जान चली गई थी।
शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से नगरीय बस सेवाओं के भरोसे है। जिनमें ज्यादातर बसें
पुरानी हो चुकी हैं। कई अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि शहरों की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को
सुचारू रूप से संचालित करने के लिए हमें इस समय सड़कों पर चल रही बसों के मुकाबले कई गुना अधिक
बसों की जरूरत है। बसों की कम संख्या व बढ़ती भीड़ के चलते कोविड-19 के दौर में भी सोशल डिस्टेंसिंग के
नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है। इससे कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने का खतरा मंडराता रहता है।
ड्राइविंग सिटी इंडेक्स सर्वे के अनुसार मुंबई और कोलकाता सड़क सुरक्षा के मामले में सबसे नीचे हैं। यहां रोड
रेड की सबसे भयंकर घटनाएं दर्ज की गई हैं।
भारत में रोड रेज की घटनाएं आमतौर पर तेज हॉर्न बजाना, अपनी लेन छोड़ कर घुसना, ओवरटेक करना और
गलत लेन से तेजी से गाड़ी निकालना, गाली गलौज और कई बार मारपीट तक पहुंच जाती हैं। जिला परिवहन
कार्यालयों द्वारा किए जाने वाले ड्राइविंग टेस्ट के दौरान लोगों को रोड रेज के बर्ताव के प्रति संवेदनशील होने
की ट्रेनिंग नहीं दी जाती है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि देश में सड़कों के निर्माण का कार्य तेजी से
चल रहा है और मार्च 2021 तक प्रतिदिन 40 किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा।
इसके लिए कवायद तेज कर दी गई है। हमने प्रतिदिन 30 किलोमीटर से ज्यादा सड़क निर्माण का लक्ष्य
हासिल कर लिया है। गडकरी ने उम्मीद जतायी कि 2025 तक सड़क दुर्घटनाएं और इसके कारण होने वाली
मौतें 50 प्रतिशत तक कम हो जाएंगी। वर्तमान में देश में हर दिन सड़क दुर्घटनाओं में 415 लोगों की मौत
हो जाती है। इनमें 70 प्रतिशत मौतें 18 से 45 साल के लोगों की होती हैं। जिसके परिणामस्वरूप हर साल
सकल घरेलू उत्पाद के 3.14 फीसदी के बराबर दुर्घटना से होने वाली सामाजिक-आर्थिक हानि हुई है।
सरकार सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को कम करने के लिए तेजी से काम कर रही है। इसके लिए नीतिगत
सुधारों और सुरक्षित प्रणालियों को अपनाया जा रहा है। 2030 तक भारतीय सड़कों पर जीरो एक्सीडेंट की
दृष्टिगत करने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। गडकरी ने बताया कि तमिलनाडु में हादसों और मृत्यु
संख्या में 53 प्रतिशत की गिरावट आयी है। गडकरी के अनुसार सरकार सड़क पर दुर्घटना संभावित क्षेत्र की
पहचान करने और इसके समाधान के लिए 14 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी।
गडकरी का कहना है कि जान लेने वाले सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिये राज्यों को केन्द्रीय सड़क कोष
के एक हिस्से का इस्तेमाल करना चाहिये और दुर्घटनावाली जगहों को दुरुस्त करना चाहिये। गडकरी ने कहा
कि हम न सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों पर बल्कि राज्य राज मार्गों पर भी हादसों की संख्या कम करने की कोशिश
कर रहे हैं। जिलों में सड़क सुरक्षा समितियां गठित की जानी चाहिये। जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ सांसदों को
करनी चाहिये और जिलाधिकारियों को इनका सचिव बनाया जाना चाहिये। यह समिति जिला स्तर पर दुर्घटना
के सभी पहलुओं को देखे।
सड़कों पर बने मोड़ों जैसे टी जंक्शन और टी वाई पर सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती है। देशभर में हुए कुल
हादसों में से 37 फीसदी हादसे उन्हीं चैराहों और मोड़ों पर होते हैं। उनमें से तकरीबन 60 फीसदी हादसे टी
और टी वाई जंक्शन पर रिकॉर्ड किए गए। इन हादसों की सबसे बड़ी वजह ड्राइवरों की गलती रहती है। स्पीड
सीमा को पार करना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, ओवरटेकिंग और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना
कुछ ऐसी गलतियां हैं, जिनसे बड़ी संख्या में सड़क हादसे हो रहे हैं। कुल सड़क हादसों में से 84 फीसदी
हादसों के पीछे ड्राइवरों की गलती होती है। इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में
सालाना करीब 20 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
देश की सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसपर नियंत्रण के उचित कदम उठाए जाने चाहिए। साथ
ही वाहनों की सुरक्षा के मानकों की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। स्कूलों में सड़क सुरक्षा से जुड़े
जागरुकता अभियान चलाए जाएं। भारी वाहन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को परमिट दिए जाने की प्रक्रिया में कड़ाई
बरती जाए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए योग्यता भी तय की जाए। साथ ही छोटे बच्चे और किशोरों के वाहन
चलाने पर कड़ाई से रोक लगे। तेज रफ्तार, सुरक्षा बेल्ट का प्रयोग न करने वालों और शराब पीकर गाड़ी चलाने
वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। तभी देश में सड़कों पर लगातार हो रही दुर्घटनाओं पर रोक लग पायेगी।