रैगिंग पर रोक आखिर कब

asiakhabar.com | August 24, 2019 | 5:55 pm IST
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आधुनिकता के साथ रैगिंग के तरीके भी बदलते जा रहे हैं। रैगिंग आमतौर पर सीनियर विद्यार्थी द्वारा
कॉलेज में आए नए विद्यार्थी से परिचय लेने की प्रक्रिया। लेकिन अगर किसी छात्र को रैगिंग के नाम पर
अपनी जान गंवाना पड़े तो उसे क्या कहेंगे। रैगिंग के नाम पर समय-समय पर अमानवीयता का चेहरा

भी सामने आया है। गलत व्यवहार, अपमानजनक छेड़छाड़, मारपीट ऐसे कितने वीभत्स रूप रैगिंग में
सामने आए हैं। सीनियर छात्रों के लिए रैगिंग भले ही मौज-मस्ती हो सकती है, लेकिन रैगिंग से गुजरे
छात्र के जहन से रैगिंग की भयावहता मिटती नहीं है। इसी भयावहता का उदाहरण ओडिशा में सामने
आया है। देश के अलग-अलग राज्यों ने रैगिंग पर बैन लगा रखा है और सुप्रीम कोर्ट ने इसे
मानवाधिकारों का हनन तक करार दिया है, लेकिन ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। जहां संबलपुर की
एक टेक्निकल यूनिवर्सिटी में सीनियर्स के जूनियर्स की रैगिंग करने की तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने
आई हैं।
प्रारंभिक जांच में पता चला है कि यह तस्वीरें राज्य सरकार की वीर सुरेंद्र साई यूनिवर्सिटी ऑफ
टेक्नॉलजी की हैं। इनमें दिख रहा है कि फस्र्ट और सेकंड क्लास के छात्र स्टेज सिर्फ अंडरगार्मेंट पहने पर
नाच रहे हैं और बड़ी संख्या में छात्र नीचे खड़े उन्हें देख रहे हैं। बताया गया है कि यूनिवर्सिटी में रैगिंग
का यह पहला मामला नहीं है। पिछले साल भी ऐसी ही घटना सामने आई थी। राज्य के कौशल विकास
और तकनीकी शिक्षा मंत्री प्रेमानंद नायक ने घटना का संज्ञान लेते हुए मामले की जांच के आदेश दिए
हैं। इसका बाद यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को 10 छात्रों को एग्जाम में बैठने से रोक दिया है। इसके अलावा
करीब 52 छात्रों पर जूनियर्स की रैगिंग के लिए 2000 रुपए जुर्माना लगाया गया है। गौरतलब है कि
संबलपुर की इस घटना से पहले उत्तर प्रदेश के सैफई में मेडिकल कॉलेज से 150 छात्रों का सिर मुंडाकर
कैंपस में परेड का वीडियो सामने आया था। हालांकि, यूनिवर्सिटी के कुलपति ने घटना का खंडन किया
था। शिक्षण संस्थानों में रैगिंग पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए लागू किए गए नियम-कायदों के
बावजूद आज भी आए दिन इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। हालांकि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट
तक ने बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है और यह निर्देश है कि किसी भी रूप में रैगिंग होने पर
आरोपी से लेकर संस्थान तक के खिलाफ कार्रवाई होगी। लेकिन यह समझना मुश्किल है कि कुछ
संस्थानों में वरिष्ठ माने वाले छात्रों के भीतर कौन-सी सामंती ग्रंथि बैठी होती है कि वे सारे नियम-
कायदों को धता बता कर वहां आए नए विद्यार्थियों को परेशान करने से नहीं चूकते।
गत वर्ष पहले इलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज से सामने आया है, जहां एमबीबीएस
पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में दाखिला लेने वाले सौ से ज्यादा छात्रों के साथ रैगिंग के नाम पर अमानवीय
सलूक किया गया था। वहां जूनियर डॉक्टरों को मजबूर किया गया था कि वे घुटनों के बल चल कर सभी
वरिष्ठों सहित कर्मचारियों को सलाम करें। छात्राओं को भी परेशान किया गया। जिन्होंने इस रैगिंग का
विरोध किया, उनकी पिटाई की गई और शिकायत करने पर उनका भविष्य चौपट कर देने की धमकी दी
गई। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से सभी शिक्षण संस्थानों के लिए यह सख्त निर्देश है कि
अगर वहां रैगिंग की घटना हुई तो इसके लिए उन्हें भी जवाबदेह माना जाएगा। हर उच्च शिक्षा संस्थान
में रैगिंग के खिलाफ एक समिति बनाने से लेकर संबंधित नियमों का पालन नहीं करने पर संस्थान की
मान्यता रद्द कर देने तक की बात है। इसके बावजूद अगर कुछ शिक्षा संस्थानों में नए विद्यार्थियों को
रैगिंग की मार झेलनी पड़ रही है तो यह न केवल संस्थानों की लापरवाही और नियम-कायदों को ताक
पर रखने का मामला है, बल्कि यह वरिष्ठ कहे जाने वाले विद्यार्थियों के सामाजिक बर्ताव पर भी
सवालिया निशान है।

पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा संस्थानों में रैगिंग की वजह से पीडि़त विद्यार्थियों की तकलीफदेह दास्तान से
लेकर आत्महत्या तक कर लेने की घटनाएं सामने आने के बाद जागरूकता बढ़ी है। सामाजिक स्तर पर
इसका विरोध भी हुआ है। मगर हैरानी की बात है कि जिस दौर में शिक्षण संस्थानों में मानवीय और
संवेदनशील व्यवहार की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस की जा रही है, उस वक्त में भी रैगिंग के नाम पर
नवागंतुकों को अपने साथ इस तरह के बर्ताव का सामना करना पड़ रहा है। कोई विद्यार्थी जब पहली
बार किसी संस्थान में दाखिला लेता है तो वहां उसके साथ हुए शुरुआती व्यवहार का गहरा असर उसके
मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। यहां तक कि कई बार इससे जीवन और समाज के प्रति उनकी दृष्टि
सकारात्मक या फिर नकारात्मक हो जाती है। इसलिए किसी भी शिक्षण संस्थान में यह सुनिश्चित किए
जाने की जरूरत है कि वहां पहली बार आए विद्यार्थियों को ऐसा व्यवहार मिले, जिससे न केवल अपने
व्यक्तित्व में सकारात्मक निखार आए, बल्कि इसका लाभ देश और समाज को भी मिले।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय में अपने अधीन आने वाले शिक्षा संस्थानों में रैगिंग के विरुद्ध कड़े
निर्देश जारी किए। कई राज्यों ने भी इस पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए। 1997 में तमिलनाडु में
विधानसभा में एंटी रैगिंग कानून पास किया गया। मगर नतीजा अब तक ढांक के तीन पात है। रैगिंग
एक मानसिक विकृति है। यह सिर्फ कानून से नियंत्रित नहीं हो सकेगी। रैगिंग से पीडि़त छात्रों को इसकी
जानकारी अभिभावक, विश्वविद्यालय, प्रशासन और संबंधितों को देने की हिम्मत दिखानी चाहिए।
आत्महत्या का विकल्प न चुनें यह सच है फिर भी हर एक की मानसिक क्षमता और सहनशीलता अंतत:
अलग-अलग होती है। मगर अब जानलेवा हो चुकी इस बीमारी का इलाज ढूंढना होगा। समाज अपने स्तर
पर ढूंढे और सरकार अपने स्तर पर। मगर इलाज में अब देरी संभव नहीं है।


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