रूस से सौदा

asiakhabar.com | March 19, 2022 | 5:39 pm IST
View Details

-सिद्धार्थ शंकर-
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जग को भले ही 21 दिन बीत चुके हों और इस जंग से दुनिया के कई देश प्रभावित
हो रहे हों, मगर भारत के लिए इसमें भी राहत की खबर आई है। जंग की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में आए
उछाल के बाद पेट्रोल-डीजल के रेट बढऩे के कयास लगाए जा रहे थे, मगर सरकार कुछ और ही गुणा-भाग में लगी
थी। कहा जा रहा है कि भारत रियायती रूसी तेल और अन्य वस्तुएं खरीदने पर विचार कर रहा है। ऐसी संभावना
बन रही है कि भारत रूस की ओर से दिए गए प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। अभी संभावनाओं पर ही अमेरिका
ने आंखें तरेरनी शुरू कर दी है। पहले लाख धमकी के बाद एस-400 समझौता और अब रूस से तेल खरीदने को
लेकर अमेरिका बिफर गया है। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस से तेल खरीदने पर पाबंदी लगा दी है।
जब भारत की रूस से तेल लेने की संभावनाओं का खुलासा हुआ तो व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा,
किसी भी देश के लिए हमारा संदेश यह है, कि हमने जो प्रतिबंध लगाए हैं, हम सभी उन प्रतिबंधों का पालन करें,
जो अनुशंसित हैं। अमेरिका ने भारत का नाम लिए बिना यहां तक कहा कि सोचें कि जब इस वक्त के बारे में
इतिहास की किताबें लिखा जाएगा, तो आप कहां खड़ा होना चाहते हैं? अमेरिका की चिंता इसलिए है कि यूक्रेन पर
आक्रमण को लेकर रूस पर कड़े पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बीच अधिकारियों ने कहा कि भारत रुपए-रूबल लेन-
देन के माध्यम से खरीदारी के लिए एक रूसी प्रस्ताव लेने पर विचार कर रहा है। यूक्रेन पर रूस के हमले को
देखते हुए अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनके बीच रूस की तेल कंपनियां भारत को
कच्चे तेल की कीमत पर 25 से 27 प्रतिशत तक की छूट की पेशकश कर रहीं हैं। दिसंबर 2021 में रूसी राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन ने भारत दौरे के दौरान रोसनेफ्ट और इंडिया ऑयल कॉर्पोरेशन के बीच 2022 के अंत तक
नोवोरोस्सिएस्क बंदरगाह के जरिए भारत को 2 करोड़ टन तक तेल की आपूर्ति के लिए एक अनुबंध साइन किया
था। रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो मुख्य रूप से यूरोपीय रिफाइनरियों को कच्चा तेल बेचता
है। यूरोप के देश 20 फीसदी से ज्यादा तेल रूस से ही लेते हैं। इसके अलावा, ग्लोबल उत्पादन में विश्व का 10
फीसदी कॉपर और 10 फीसदी एल्युमीनियम रूस बनाता है। रूस संयुक्त रूप से कच्चे और तेल उत्पादों का दुनिया
का शीर्ष निर्यातक है, जो प्रतिदिन लगभग सात मिलियन बैरल या वैश्विक आपूर्ति का सात फीसदी शिपिंग करता

है। भारत इस समय कच्चे तेल का बड़ा आयातक है और यह अपनी जरूरत का 85 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल
बाहर से खरीदते हैं। आयात किए जा रहे कच्चे तेल की कीमत भारत को अमेरिकी डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे
में कच्चे तेल की कीमत बढऩे और डॉलर के मजबूत होने से घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल के दाम प्रभावित होते हैं
यानी ईंधन महंगे होने लगते हैं। अगर कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती है तो जाहिर है भारत का
आयात बिल बढ़ जाएगा। एक रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि भारत का आयात बिल 600 अरब डॉलर पार
पहुंच सकता है। भारत की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी कंपनी इंडियन ऑयल ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमले के
बाद पहली बार 30 लाख बैरल तेल रूस से खरीदा है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है।
इसमें से केवल 2 से 3 प्रतिशत तेल ही रूस से आता है। उधर, यूरोपीय देश अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी रूस से
तेल और गैस मंगा रहे हैं। अगर रूस छूट के साथ शिपिंग और बीमा खर्च उठा रहा है तो भारत को मौके का
फायदा उठाना चाहिए। 20 फीसदी डिस्काउंट भी मिलता है तो यह दिसंबर की क्रूड कीमत के बराबर होगा। रूस
अगर अच्छी क्वालिटी का क्रूड देता है तो आयात तीन अरब डॉलर से बढ़ाकर 10 अरब डॉलर तक किया जा सकता
है। इससे क्रूड आयात की औसत लागत घटेगी और कुछ महीनों से पेट्रोल-डीजल के दाम न बढ़ाने से कंपनियों पर
बना दबाव कम होगा। चूंकि सौदा डॉलर में नहीं होगा, इसलिए डॉलर पर हमारी निर्भरता में कमी आएगी और रुपए
के मूल्य में इजाफा होगा। आयात बिल कम होगा। भारत ने अप्रैल 2021 से जनवरी 2022 के बीच कुल 17.6
करोड़ टन क्रूड का आयात किया था। इसमें से 36 लाख टन क्रूड रूस से आया। फिलहाल रूस से 35 लाख बैरल
क्रूड खरीदने की बात चल रही है। आगे इसकी मात्रा और बढ़ाई जा सकती है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *