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डॉ. अजय कुमार मिश्रा
जिस तरह से हमारे कदम आधुनिकता की तरफ तकनीकी के साथ जुड़ कर तेजी से आगे बढ़ रहे है उसी अनुपात में नई घटना और आश्चर्यचकित करने वाली बातें निकल कर सामने आ रही है | जिन पर आज बहस करना और समाधान खोजना बेहद जरुरी हो गया है | यदि आप नियमित समाचार पत्र पढ़तें हो तो आपकी जानकारी में यह होगा की नव-युवक और युवतियाँ रिजेक्शन को बर्दास्त नहीं कर पा रहें है और अनुचित कदम उठाने से गुरेज नहीं कर रहें | जब भी किसी परीक्षा या प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम आता है तो ऐसी घटनाएँ देखने को अक्सर मिल जाती है | आज अधिकांशतः ऐसा प्रचलित हो गया है की सफल लोगों की ही धाक और इज्जत है असफल लोगों की नहीं | जबकि सच्चाई यह है की प्रारंभ में असफल लोगों ने देश समाज को कुछ बड़ा दिया है | बचपन से यह सिखाया जाने लगा है की डॉक्टर, इंजिनियर, और सरकारी नौकरी के अतिरिक्त जीवन कही नहीं है | आधुनिकता की पहुँच मोबाइल के रूप में सभी के हाथों में है | सामाजिक नियंत्रण अब टूट चूका है | जिस उम्र में पढ़ाई करनी है उस उम्र में लोग अपराध कर रहें है | बाजारवाद का दबाव न केवल वयस्क लोगों पर है बल्कि नन्हे-मुन्नों को भी अपने नियंत्रण में तेजी से लेता चला जा रहा है | पाश्चात्य संस्कृति हम पर अब भारी होने लगी है | पारिवारिक सम्बन्धो और संस्कार को बिना नियत्रण के वेब-सीरीज हर उम्र हर तबके को प्रसारित कर कुछ ऐसा सीखा रहें है जिसका परिणाम भयावह होने से शायद ही कोई रोक सकें | इन तमाम कारणों की वजह से रिजेक्शन को बर्दास्त नहीं किया जा रहा है जबकि सामान्य रूप से उसे स्वीकार्य कैसे किया जाए ? इस पर कदम उठाने की जरूरत है |
रिजेक्शन को फेस करना चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है की सभी को इसका अनुभव होता है आप एकलौतें इस संसार में नहीं है जिसने इसका बुरा अनुभव किया है , आपसे पहले भी और बाद भी लोग इसका अनुभव करेगे | जब किसी को रिजेक्ट किया जाता है तो वह न केवल भारी दर्द को महसूस करता है बल्कि निराशा अपने चरम पर आ जाती है परिणाम स्वरुप व्यक्ति बेहद दुखी और क्रोध में हो जाता है और क्षण – भर में गलत निर्णय की तरफ न केवल आकर्षित हो जाता है बल्कि सब कायदे कानून भूल कर अपराध कर बैठता है | ऐसी स्थिति जब भी उत्पन्न हो दिमाग को ठंडा रखकर रिजेक्शन को स्वीकार करना चाहिए | क्योंकि एक सफल इन्सान के जीवन की पहली सीढ़ी रिजेक्शन ही है जिससे आप न केवल मजबूत बनते है बल्कि अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करतें है |
कभी भी रिजेक्शन को व्यक्तिगत रूप से स्वीकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि रिजेक्शन कभी भी रिफ्लेक्शन नहीं हो सकता | एक व्यक्ति के अंतर्गत अनेकों ऐसी खूबियाँ है जिसके माध्यम से वह अनेकों लोगों को प्रभावित कर सकता है साथ ही ऐसे कई बड़े काम कर सकता है जिससे इतिहास में उसका नाम दर्ज हो सकें | बड़े कलाकार, सेलेब्रिटी, बड़े अधिकारी, बिज़नस मैन एक दो नहीं अनेकों बार प्रारम्भ में रिजेक्ट हुए है | पर जीवन में इसे स्वीकारना और आगे बढ़ना जरुरी होता है | आपकी इच्छा शक्ति रिजेक्शन से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से न केवल आपको लड़ना सिखा देगा बल्कि जीवन को सामान्य रूप में लाने में मदद करेगी |
रिजेक्शन एक ऐसा अनूठा अनुभव है जिसे आप गहराई से समझ कर स्वयं की न केवल पहचान कर सकतें है बल्कि स्वयं के लिए लाभप्रद गत-विधियों में तेजी से आगे बढ़ सकतें है | मुशीबतें ही अवसर प्रदान करती है, न की सामान्य परिस्थितियां | इस बात को जितने जल्दी हम स्वीकार कर ले की रिजेक्शन जीवन का एक अहम् हिस्सा है जिससे सभी को दो चार होना ही पढ़ता है फिर चाहे निजी जीवन में हो, सामाजिक जीवन में, व्यावसायिक जीवन में हो या शैक्षिक जीवन में हो, स्वीकार कर लेने से हम विजेता बन जातें है | सबसे अहम् पहलू यह है की किसी भी विषय/ क्षेत्र में आप को रिजेक्ट होने के पश्चात् लगातार पुनः कोशिश करना ही आपको आपके मुकाम तक पहुंचा सकता है |
हम सभी को अपने आप को यह अनुमति देनी चाहिए की हम अपनी भावनाओं को महसूस कर सकें पर हम पर रिजेक्शन भारी न हो इसका भी ध्यान रखना चाहिए | ऐसी परिस्थितियों में अपनी ताकत और उपलब्धियों को जरुर याद करना चाहिए और यह विचार करना चाहिए की यही एक अंतिम विकल्प जीवन के लिए नहीं है | अपने आस-पास पॉजिटिव लोगों से जुड़े रहना चाहिए और उनकी बातों और आत्मविश्वास से स्वयं परिस्थिति से बाहर आने की भरपूर कार्य करनी चाहिए |
माँ-बाप की अपेक्षा अपने बच्चों से अत्यधिक होती है इन अपेक्षाओं के लिए उन-पर कभी दबाव नहीं डालना चाहिए तथा हमेशा प्रेरित करना चाहिए की एक बेहतर जीवन कैसे व्यतीत किया जाए | रिजेक्शन के समय परिवार का साथ होना अपने आप में स्वतः पुनः लड़ने की नई शक्ति प्रदान करता है जबकि इसके विपरीत संवाद न होने और डर की स्थिति में कुछ ऐसा नुकशान कर देता है जिसकी भरपाई संभव नहीं हो सकती है | जीवन चलतें का नाम है आदरणीय मैथलीशरण गुप्त जी की एक रचना जिसमे उन्होंने लिखा है “नर हो न निराश करों मन को, कुछ काम करों कुछ काम करों..” एक ऐसी सुन्दर रचना है जिससे हम कई बातों को सीख सकतें है और रिजेक्शन से बाहर आने में मदद मिल सकती है | जब हम इस धरती पर आते है तो मौत धीरें से कानों में यह कह कर चली जाती है की जब तक मै वापस तुम्हे लेने नहीं आ रही हु तब तक जी ले अपनी जिंदगी, यानि की इस संसार में जब कुछ भी स्थायी नहीं है तो एक असफलता और रिजेक्शन स्थायी कैसे हो सकता है | समय और सोच जीवन को बेहतर बनाने और लक्ष्य को भेदने की हर पल एक नई प्रेरणा देता है ऐसे में आत्मा की आवाज सुनियें और सोचिएं सिर्फ एक रिजेक्शन यह कैसे निर्धारित कर सकता है की अब जीवन में कुछ भी शेष नहीं ? आपके पास अनेकों ऐसी उपलब्धियां है जिसके आधार पर आप नए सिरें से प्रयास कर रिजेक्शन को सिलेक्शन में बदल सकते है |