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असम में ‘नागरिकों के रजिस्टर’ को लेकर जो विवाद छिड़ गया है वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। अपनी नागरिकता को पंजीकृत करवाने के लिए 3 करोड़ 29 लाख लोगों ने आवेदन किया था। उसमें से अभी तक 2 करोड़ 89 लाख नामों को पंजीकृत किया गया है अर्थात शेष 40 लाख लोगों की नागरिकता अभी तय नहीं हुई है। इसी को लेकर संसद में और उसके बाहर जबर्दस्त कहा-सुनी का दौर चल रहा है। विरोधियों और खासतौर से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि लाखों लोगों को उस रजिस्टर में इसलिए जगह नहीं मिली कि उनके ‘उपनाम’ देखकर ही उनके नाम काट दिए गए।राहुल गांधी ने भी लगभग इसी आशय की आलोचना की है। इसका अर्थ क्या हुआ ? यही कि भाजपा सरकार घनघोर हिंदूवादी है। उसने मुस्लिम उपनामों को उड़ा देने के लिए निर्देश जारी कर दिए। इस तरह के आरोप लगाना स्वस्थ राजनीति नहीं है। यह देश की सुरक्षा और शासन-व्यवस्था का शुद्ध सांप्रदायीकरण है। ममता और राहुल दोनों ही अपने आप को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बता रहे हैं और इतने गैर-जिम्मेवाराना बयान कैसे जारी कर रहे हैं ? क्या वे नहीं जानते कि इससे देश का सबसे बड़ा वोट बैंक उनके खिलाफ जा सकता है ?