उत्तर प्रदेश का अमेठी लोकसभा क्षेत्र (37)गत् 40 वर्षों से कांग्रेस पार्टी का अभेद दुर्ग समझा जाता रहा
है। 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की पहली राष्ट्रव्यापी पराजय के दौरान सर्वप्रथम
संजय गांधी को उनके जनता पार्टी के प्रतिद्वंद्वी उ मीदवार रवींद्र प्रताप सिंह ने पराजित किया था। बाद
में 1979 में संजय गांधी यहां से विजयी हुए। उस समय से लेकर 2019 तक अर्थात् पूरे चार दशक तक
अमेठी लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी का एक ऐसा अभेद दुर्ग समझा गया जिसे अब तक कोई पराजित नहीं
कर सका था। यहां तक कि अमेठी के राजघराने द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध किए जाने के बावजूद
भी यह संसदीय सीट गांधी परिवार के किसी न किसी सदस्य की झोली में ही रही। 1979 में पहली बार
संजय गांधी से लेकर 2014 में राहुल गांधी तक यहां से गांधी परिवार का ही कोई न कोई सदस्य अपनी
जीत दर्ज कराता रहा। संजय गांधी की मृत्यु के पश्चात राजीव गांधी फिर सोनिया गांधी तथा 2019 तक
राहुल गांधी यहां के जनप्रतिनिधि चुने जाते रहे हैं। इस बार यह पहला अवसर था जबकि कांग्रेस अध्यक्ष
के रूप में राहुल गांधी को इसी क्षेत्र से अपनी प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी की उ मीदवार स्मृति
ईरानी से लगभग 50 हज़ार वोटों से पराजय का मुंह देखना पड़ा। आखिर क्या कारण था कि चार दशकों
तक अमेठी पर एकछत्र वर्चस्व रखने वाले गांधी परिवार से अमेठी के मतदाता विमुख हो गए? कौन से
ऐसे हालात थे जिनकी वजह से राहुल गांधी को अमेठी के साथ-साथ पहली बार केरल के वायनाड से भी
चुनाव लडऩे की ज़रूरत महसूस हुई?
इसमें कोई संदेह नहीं कि चार दशकों से अमेठीवासियों का गांधी परिवार से गहरा व आत्मिक रिश्ता रहा
है। इस रिश्ते को प्रगाढ़ करने तथा इसमें आत्मीयता का बोध पैदा करने में राजीव गांधी की सबसे
महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इत्तेफाक से मुझे संजय गांधी व राजीव गांधी दोनों ही के चुनाव अभियान को
अमेठी में लंबे समय तक रहकर बेहद करीब से देखने का अवसर मिला। संजय गांधी की मृत्यु के पश्चात
अमेठी में हुए उपचुनाव में जब राजीव गांधी विमान पायलेट की सेवा त्यागकर अमेठी की जनता से
अपने भाई संजय गांधी के किए गए वादों को पूरा करने के हौसले के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे उसी
समय राजीव गांधी की सादगी, उनकी विनम्रता, उनकी शराफत तथा मधुर वाणी ने अमेठी के लोगों के
दिलों को छू लिया था। अमेठी में जो भी बड़े विकास कार्य किए गए वह संजय गांधी व राजीव गांधी के
सांसद काल में ही किए गए। उसी दौर में अमेठी लोकसभा क्षेत्र में पड़ने वाला जगदीशपुर व
मुसाफिरखाना क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ। यहां कई बड़े व मंझौले उद्योग स्थापित
हुए। परंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी के सांसद चुने जाने के बाद न तो इस क्षेत्र में कोई
नया बड़ा उद्योग स्थापित हुआ न ही इस क्षेत्र के विकास का पहिया राजीव गांधी के सांसद काल के
समय की तुलना में आगे बढ़ सका।
इसके अतिरिक्त राजीव गांधी की तुलना में राहुल गांधी अमेठीवासियों से उतनी निकटता तथा अपनत्व
कायम नहीं रख सके। बिना किसी सुरक्षा के तामझाम के ही राजीव गांधी अमेठी के आम लोगों से
मिलते-जुलते थे, वे अपने कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत. रूप से उनके नामों से जानते थे यहां तक कि
अमेठी संसदीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए राजीव गांधी ने अपने कार्यालय में एक अलग
अमेठी सेल स्थापित किया था। प्रत्येक गांव का सरपंच उनसे किसी भी समय सीधे तौर पर संपर्क
स्थापित कर सकता था। परंतु राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से ही अमेठी के लोगों से
उनका फासला बढऩा शुरु हो गया। वैसे भी वे जब कभी अमेठी आते तो भी जनता के बीच में जाने के
बजाए सरकारी अतिथिगृहों तक ही अपनी अमेठी यात्रा सीमित रखते और पार्टी के ही प्रमुख कार्यकर्ताओं
से मिल-मिला कर अपने अमेठी दौरे की इतिश्री कर देते। एक अनुमान के अनुसार वे गत् पांच वर्षों में
एक संासद के रूप में 28 बार अपने निर्वाचन क्षेत्र पधारे। इनमें से अधिकांशत: उन्होंने पार्टी नेताओं व
अधिकारियों से ही बैठकें कीं तथा मतदाताओं से प्राय: फासला बनाकर रखा। गोया राहुल गांधी को इस
बात का मुगालता हो गया था कि अमेठी के मतदाता उनके ऐसे 'पारिवारिक मतदाता’ हैं जो संभवत:कभी
उनके परिवार से विमुख नहीं हो सकते।
दूसरी ओर राहुल गांधी को अमेठी से धूल चटाने की दूरगामी योजना पर काम करते हुए भारतीय जनता
पार्टी ने 2014 में ही अपना पहला कार्ड तो उसी समय खेल दिया था जबकि राहुल गांधी से पराजित होने
के बाद भी स्मृति ईरानी को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। इतना ही नहीं बल्कि पराजित होने
के बावजूद केंद्र सरकार की सहायता से स्मृति ईरानी ने अमेठी में अनेक छोटे व मध्यम श्रेणी के विकास
कार्य करवाए। यहां तक कि रूस-भारत सहयोग से बनने वाली क्लाशिनिकोव 203 के निर्माण की एक
यूनिट भी अमेठी में स्थापित की गई। स्मृति ईरानी 2014 से 2019 के बीच न केवल बार-बार जनता के
मध्य आती-जाती रहीं बल्कि उनके दु:ख-सुख में भी बराबर शरीक होती रहीं। कहा जाता है कि ईरानी ने
गत् पांच वर्षों में साठ से अधिक बार अमेठी के दौरे किए। उन्होंने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मु यमंत्री आदित्यनाथ योगी सहित कई और प्रमुख स्टार प्रचारकों के दौरे कराए।
स्मृति ने अमेठी के कई गांवों में जाकर जूते, कपड़े, साडिय़ां, कापी-किताबें तथा कलम आदि भी वितरित
किए। अमेठी की गऱीब जनता ने जहां इसे स्मृति ईरानी की कृतज्ञता समझी वहीं कांग्रेस की ओर से
स्मृति ईरानी की इस कारगुज़ारी को यह कहकर प्रचारित किया गया कि 'स्मृति ईरानी ने अमेठी के लोगों
को गरीब व भिखारी समझकर यह सामग्री वितरित की है’। उधर स्मृति ईरानी इन सभी आरोपों की
परवाह किए बिना लगभग दो महीने तक लगातार अमेठी में रहकर जनसंपर्क साधती रहीं तथा किसानों
के खाद, बीज, बिजली-पानी आदि सभी ज़रूरतों के प्रति संवेदनशील रहीं।
उधर राहुल गांधी ने अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से चुनाव लडऩे का जो फैसला किया
उसे भी स्मृति ईरानी की ओर से अमेठी में यह कहकर खूब प्रचारित किया गया कि अमेठी के
मतदाताओं पर राहुल को विश्वास नहीं था इसीलिए उन्होंने दूसरी सीट से भी चुनाव लडऩे का फैसला
किया। अमेठी के मतदाताओं में यह भी संदेश गया कि यदि राहुल अमेठी से जीत भी जाते हैं तो भी वे
यहां से इस्तीफा दे सकते हैं। रही-सही कसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राहुल गांधी पर किए गए उसे
आक्रमण ने पूरी कर दी जिसमें मोदी ने राहुल गांधी पर वायनाड से इसलिए चुनाव लडऩे का आरोप
लगाया था क्योंकि वहां अल्पसं यक मतदाताओं की सं या अधिक है। गोया राहुल गांधी को अमेठी के
बहुसं य समाज के मतदाताओं पर विश्वास नहीं रहा। उपरोक्त समस्त परिस्थितियों व रणनीति को देखते
हुए साफतौर पर यह कहा जा सकता है कि 2019 में राहुल गांधी की अमेठी से पराजय की स्क्रिप्ट
लिखने की शुरुआत भारतीय जनता पार्टी ने 2014 से ही कर दी थी परंतु राहुल गांधी व उनके सलाहकार
इसे गंभीरता से नहीं से नहीं ले सके। निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी अमेठी के मतदाताओं को
स्मृति ईरानी को मंत्रिमंडल में शामिल कर तथा पराजित होने के बावजूद क्षेत्र के विकास में उनकी
भागीदारी तय करने की बदौलत यह विश्वास दिला पाने में पूरी तरह सफल रही कि क्षेत्र का विकास
राहुल गांधी की तुलना में स्मृति ईरानी कहीं अधिक अच्छे तरीके से करा सकती हैं। इन्हीं कारणों से
राहुल गांधी को इस बार अमेठी से 'बेआबरू’ होना पड़ा।