शिशिर गुप्ता
आजादी के 75वें वर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दत्तात्रेय होसबोले के रूप में नया सरकार्यवाह मिला है। संघ में
सबसे बड़ा पद सरसंघ चालक का होता है, यह पद वर्तमान में मोहन भागवत के पास है लेकिन सरसंघ चालक को
आरएसएस के सविधान के हिसाब से मार्गदर्शक-पथ प्रदर्शक का दर्जा मिला है। इसलिए वे संघ की रोजमर्रा की
गतिविधियों में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते। ऐसे में उनके मार्गदर्शन में संघ का पूरा कामकाज सरकार्यवाह और
उनके साथ नए सहकार्यवाह देखते हैं। इस प्रकार दत्तात्रेय होसबोले पर संगठन की भारी जिम्मेदारी आ गई है। 1
दिसंबर, 1955 में जन्में होसबोले अभी 66 साल के हैं। दत्तात्रेय कर्नाटक के शिमोगा जिले से हैं। वे 1968 में 13
साल की उम्र में संघ के स्वयंसेवक बने और 1972 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। कहा जाता है कि
वे 1975-77 के जेपी आन्दोलन में भी सक्रिय थे और करीब दो साल तक ‘मीसा’ के तहत जेल में रहे। होसबोले ने
बैंगलोर यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी से स्नातकोत्तर किया। दत्तात्रेय होसबले एबीवीपी कर्नाटक के प्रदेश संगठन मंत्री रहे।
इसके बाद एबीवीपी के राष्ट्रीय मंत्री और सह संगठन मंत्री रहे। करीब 2 दशकों तक एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन
मंत्री रहे। काफ़ी लंबे समय से होसबाले एबीवीपी से जुड़े हुए थे। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 1980 के दशक के
शुरुआती सालों में 'असम चलो' छात्र आंदोलन था का आयोजन था। इसके बाद करीब 2002-03 में संघ के अखिल
भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख बनाए गए। साल 2009 से सह सर कार्यवाह थे। दत्तात्रेय होसबळे मातृभाषा कन्नड के
अतिरिक्त अंग्रेज़ी, हिन्दी, संस्कृत, तमिळ, मराठी, आदि अनेक भारतीय एवं विदेशी भाषाओं के मर्मज्ञ विद्वान हैं।
आप लोकप्रिय कन्नड़-मासिक ‘असीमा’ के संस्थापक-संपादक हैं। भाजपा और आरएसएस के कई वरिष्ठ
पदाधिकारियों के साथ व्यक्तिगत तालमेल है। वे एबीवीपी और आरएसएस को असम में जगह दिलाने के लिए जाने
जाते हैं। असम के रास्ते ही भाजपा पूर्वोत्तर के राज्यों में अपनी पकड़ मज़बूत करना चाहती है | इसके आलावा
होसबोले ने संघ परिवार की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लिए उत्तर प्रदेश में काम करते हुए कई
साल गुजारे। उनका राज्य में भाजपा और आरएसएस के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ व्यक्तिगत तालमेल है।
राज्य में अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर उनकी भूमिका अहम हो सकती है।
दत्तात्रेय होसबळे ने नेपाल, रूस, इंग्लैण्ड, फ्रांस और अमेरिका की यात्राएँ की हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष की असंख्य बार
प्रदक्षिणा की है। अभी कुछ दिनों पूर्व नेपाल में आए भीषण भूकम्प के बाद संघ द्वारा भेजी गयी राहत-सामग्री और
राहतदल के प्रमुख के नाते आप नेपाल गए थे और वहाँ कई दिनों तक सेवा-कार्य किया था।
दत्तात्रेय होसबोले संघ प्रचारक बनने से पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानि भाजपा की छात्र इकाई में दो
दशक तक संगठन महामंत्री भी रहे। मौजूदा सरकार्यवाह जोशी जी का स्वास्थ्य पिछले दो वर्ष से उनका साथ नहीं
दे रहा था इसलिए दत्तात्रेय होसबोले को जिम्मेदारी सौंपी गई। दत्तात्रेय होसबोले पूरी तरह काम को समर्पित हैं।
उन्होंने कई कार्यकर्ताओं को अच्छा प्रचारक बनाया। वो पूरी तरह से अपने काम को समर्पित हैं। उन्होंने कई
कार्यकर्ताओं को लिफ़ाफ़े पर पता लिखने से लेकर मीडिया के लिए मुश्किल स्टेटमेंट लिखना सिखाया है। उन्होंने
सिखाया है कि एक अच्छा प्रचारक कैसे बनते हैं। उन्होंने हमेशा सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान दिया। उन्होंने हमेशा
एबीवीपी और संघ के दूसरे पदों पर रहते हुए नई सोच को प्रदर्शित किया। उनकी पहचान एक भावुक व्यक्ति की है
जिनका कोई विरोधी नहीं। आम राजनीतिक दलों के नेता भी उनके गुणों के प्रशंसक हैं। अगर उन्हें लगेगा कि कोई
चीज देशहित में नहीं तो विरोध करने से भी नहीं चूकेंगे। संघ के चिन्तन में वनवासी और दलित समूहों के विमर्श
आज काफी मजबूत हैं। जरूरत है पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की। दत्तात्रेय होसबोले ऐसा करने की तमन्ना
रखते हैं। उनके नेतृत्व में दक्षिण भारत में संगठन का विस्तार होगा उन्हें संघ को भविष्य में आगे ले जाने की
जिम्मेदारी दी गई है, वह इसे बखूबी निभायेंगे।
यह सभी जानते है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय राष्ट्रवाद की सबसे मुखर और प्रखर आवाज है। देश की
सुरक्षा, एकता और अखंडता उसका मूल उद्देश्य है। संघ इस समय विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक
संगठन है। राष्ट्रीयता एवं हिन्दुत्व के अभियान को देशव्यापी बनाने में डा. केशव बलिराम हेडगेवार, एम.एस.
गोलवलकर, वीर सावरकर, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय, के.सी. सुदर्शन रज्जू भैय्या और
अनेक मनीषियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दत्तात्रेय होसबोले को संगठन का काफी अनुभव है इसलिए उनके
सामने सबसे बड़ी चुनौती ऐसे विमर्श को रचना है जो अन्तर्विरोधों को सुलझाते चले। सरकार्यवाह चुने जाने के बाद
दत्तात्रेय होसबोले ने कुछ बिन्दुओं पर विमर्श स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने लड़कियों के विवाह और धर्मांतरण के लिए
प्रलोभन दिए जाने की कड़ी निन्दा करते हुए इसके विरोध में कानून बनाने वाले राज्यों का समर्थन किया। उन्होंने
कहा कि आने वाले दिनों में बौद्धिक अभियान की इस दिशा में काम किया जाएगा जो भारत के विमर्श के बारे में
सही जानकारी देने पर लक्षित होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालतें लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल करती
हैं, हम नहीं करते इसमें धर्म का कोई सवाल ही नहीं उठता।भारत का अपना विमर्श है, इसकी सभ्यता के अनुभव
और इसके विवेक को नए भारत के विकास के लिए अगली पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। हिन्दू समाज में छुआछूत और
जाति आधारित असमानता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। संघ में भी ऐसे हजारों लोग हैं जिन्होंने
अन्तर्जातीय विवाह किए हैं। आरक्षण के मुद्दे पर भी उन्होंने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा संविधान
कहता है कि समाज में जब तक पिछड़ापन मौजूद है तब तक आरक्षण की जरूरत है और संघ भी इसकी पुष्टि
करता है। जहां तक राम मंदिर का सवाल है, राम मंदिर निर्माण पूरे देश की इच्छा है।