-निर्मल रानी-
जिस भारतवर्ष में समाज का एक बड़ा वर्ग धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुये जीव हत्या का मुखर विरोधी हो उसी देश में धार्मिक उन्माद के नाम पर इंसानों की सरेआम हत्यायें की जाने लगी हैं, लोगों को पीट पीट कर मार दिया जाता है। घर व बस्तियां फूंकी जाने लगी हैं। वर्दीधारी जवान जिनपर अपने भारतीय नागरिकों की सुरक्षा का ज़िम्मा है वही धर्म के आधार पर लोगों की पहचान कर उन्हें सरकारी शस्त्र से गोली मरने लगे हैं। अध्यापक अपने छात्रों में धर्म के आधार पर भेद करने लगे, मंदिर की पानी की टोंटी से मुसलमान बच्चे के पानी पी लेने पर उसे पीटा गया, मुस्लिम महिला के बलात्कारियों की पैरवी व उनका महिमामंडन होने लगा है। गत दस वर्षों में इस तरह का भयावह व अशांत वातावरण बनाने में देश के जहां बिकाऊ व सत्ता की ख़ुशामद परस्ती के लिये समर्पण कर चुके मीडिया की अहम भूमिका है वहीं देश भर में इस वातावरण को बनाने में साधू वेशधारियों का भी अहम किरदार है। इसमें कोई संदेह नहीं कि धर्म के मर्म को समझने वाला कोई भी किसी भी धर्म का संत फ़क़ीर इंसानों को एक दूसरे के ख़ून का प्यासा बनाने के लिये नहीं उकसा सकता। कोई भी सच्चा संत त्याग, तपस्या, प्रेम सद्भाव की ही बात करता है। परन्तु यह भी पौराणिक सत्य है कि रावण भी सीता हरण करने के लिये साधू के वेश में ही भिक्षा मांगने आया था। यानी रावण को पता था कि उसके वास्तविक रूप को देखकर सीता सचेत हो जाएँगी और उसका मक़सद पूरा नहीं होगा लिहाज़ा साधु वेश में सीता को भी आसानी से धोखा दिया जा सकता है। हालांकि उन्माद फैलाने वाले साधू वेश धारियों की रावण से तुलना भी नहीं की जा सकती क्योंकि वह एक प्रकाण्ड ज्ञानी था।
वही सिलसिला आज भी जारी है। तमाम अज्ञानी, अर्धज्ञानी, सत्ता द्वारा प्रायोजित, धन वैभव व सत्ता के लालची व शोहरत के भूखे लोग स्वयंभू महंत व महामंडलेश्वर बने बैठे हैं और दिन रात धार्मिक उन्माद फैला रहे हैं। उधर टी आर पी व धनार्जन के नशे में डूबा मीडिया ऐसे ही पाखंडियों व समाज विभाजक तत्वों को तवज्जोह देकर इन्हें हीरो बना देता है। और बेरोज़गारी व मंहगाई से व्याकुल जनता ऐसे साधू वेशधारियों को धार्मिक व धर्म हितैषी समझकर इनके पीछे झुण्ड की तरह खड़ी हो जाती है और इनके उकसाने पर उन्माद व हिंसा फैलाने में देर नहीं लगाती। उदाहरण के तौर पर ग़ज़ियाबाद के समीप डासना के देवी मंदिर के महंत नरसिंहानंद सरस्वती को पहले ग़ाज़ियाबाद ज़िले में भी कोई नहीं जानता था। परन्तु जब उनके मंदिर के बाहर लगे प्याऊ से एक मुसलमान लड़का पानी पी रहा था और मंदिर के कुछ लोगों ने मंदिर से पानी पीने के चलते उसकी पिटाई की। उसकी वीडिओ बनाई और उसे वायरल भी किया। उसके बाद मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती का चेहरा सामने आया जिन्होंने इस अमानवीय कृत्य का खुलकर समर्थन किया। आज वे गोदी मीडिया की बदौलत स्थापित ‘फ़ायरब्रांड हिंदू संत’ बन चुके हैं। मोनू मानेसर, शंभु रैगर जैसे हत्यारे स्वयं को हिन्दू धर्म के आदर्श के रूप में स्थापित कर रहे हैं। कोई धार्मिक उन्माद के नाम पर लोगों को तलवार और त्रिशूल बेचने के वीडिओ जारी कर रहा है। बड़े बड़े संतों यहाँ तक कि शंकराचार्यों की आपत्ति व आलोचना के बावजूद बाबा बागेश्वर शास्त्री जैसे नवोदित स्वयंभू संत हिन्दू राष्ट्र निर्माण की आड़ में अपना भविष्य वाणी का धंधा चला रहे हैं। तो कई राष्ट्रवाद के नाम पर अपना व्यवसायिक साम्राज्य स्थापित किये बैठे हैं।
परन्तु देश के अधिकांश संत व स्थानधारी संत जो वास्तव में मानवतावादी संत हैं वह सब धर्मों व आस्थाओं का सम्मान करते हैं। वे हिंसा, हत्या आगज़नी के लिये अपने भक्तों को प्रोत्साहित नहीं करते। उनका रहन सहन भी साधारण रहता है और वे ज्ञानवान भी होते हैं। वे जी जान से गोवंश की सेवा भी करते हैं और लोगों में परस्पर प्रेम व सद्भाव भी सांझा करते हैं। वे उन्मादियों की भीड़ के साथ नहीं बल्कि सद्भावना के पक्षधर लोगों के साथ खड़े दिखाई देते हैं। वे दूसरों में कमियां निकालकर स्वयं को महान बनाने पर विश्वास नहीं करते बल्कि अपनी कमियों को दूर कर स्वयं को बड़ा बनाने की सोच रखते हैं। वे वेदों व उपनिषदों पर चर्चा परिचर्चा करते हैं। दूसरों के साथ चर्चा में ज्ञानार्जन व ज्ञानवर्धन दोनों ही करते हैं। जबकि उन्मादी अर्धज्ञानी केवल सुनाना जानते हैं सुनना नहीं। पिछले दिनों जब हरियाणा जैसा देश का सबसे शांतिप्रिय राज्य कुछ ऐसे ही साम्प्रदायिकता वादियों की घिनौनी साज़िश का शिकार हुआ और मेवात क्षेत्र के नूह व आसपास के कई इलाक़ों में साम्प्रदायिकता के शोले भड़कने लगे उस समय इसी हरियाणा के अनेक साधु संतों ने शांति प्रेम व सद्भाव की मशाल रोशन करने की कोशिश की।
हरियाणा के प्राचीन तीर्थ स्थल आदि बद्री के महंत स्वामी विनय स्वरूप ब्रह्मचारी जोकि आदि बद्री में ही अपने अत्यंत सीमित संसाधनों से एक बड़ी गौशाला संचालित करते हैं और साथ ही भक्तों से प्राप्त दान सेवा से ही अनेक ग़रीब बच्चों के लिये ऋषिकुलम के नाम से स्वैच्छिक संस्था चलाकर उन्हें संस्कारित भी करते हैं। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हरियाणा पर लगे ‘नूह के कलंक ‘को धोने का शानदार प्रयास किया। स्वामी विनय स्वरूप ब्रह्मचारी के आह्वान पर इस अवसर पर एक तिरंगा रैली निकली गयी जिसमें उनके ऋषिकुलम में शिक्षा धारण करने वाले बच्चों व पास के गांव के मदरसों के बच्चों ने तथा अन्य तमाम हिन्दू मुस्लिम लोगों ने पूरे उत्साह से एक साथ शिरकत की। सभी ने मिलकर भारत माता की जय का गगनचुंबी जयघोष किया। संतों के संरक्षण में निकली गयी इस तरह की हिन्दू मुस्लिम संयुक्त रैली ही वास्तव में सच्चे भारत की सच्ची तस्वीर पेश करती है। दरअसल महंत स्वामी विनय स्वरूप ब्रह्मचारी जैसे अनेक सच्चे संत ही हिन्दू धर्म के वास्तविक प्रतिनिधि स्वीकार करने के योग्य हैं। जहां ऐसे संतों को राष्ट्रहित में व्यापक समर्थन व सम्मान दिये जाने की ज़रुरत है वहीँ धर्म के चोले में छुपे राष्ट्र विभाजक अधर्मियों की पहचान करना भी बेहद ज़रूरी है।