संयोग गुप्ता
प्रदेश में इन्कम टैक्स देय धारकों को पीडीएस सिस्टम के तहत मिलने वाली राशन सबसिडी में एक वर्ष की कटौती
के साथ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत डेढ़ लाख अतिरिक्त लोगों को शामिल करने के प्रदेश सरकार के
फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया का होना स्वाभाविक है क्योंकि सरकार के इस निर्णय से तीन लाख व्यक्ति
प्रभावित होंगे। सरकार के इस महत्त्वपूर्ण फैसले पर प्रश्नचिन्ह खड़े करने या किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पूर्व तथ्यों
का अवलोकन करना आवश्यक है। खाद्य आपूर्ति विभाग के अनुसार प्रदेश में इस समय 1842104 राशन कार्ड
धारक हैं जिन्हें हम दो भागों में बांट सकते हैं। पहली श्रेणी में बीपीएल-280618, अंत्योदय अन्नपूर्णा योजना-
185070, प्राथमिकता घर (पीएच)-221238 यानी कुल मिलाकर 686226 परिवार आते हैं। दूसरी श्रेणी में
गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) परिवार आते हैं जिनकी संख्या 1155178 है। पहली श्रेणी के परिवारों को राष्ट्रीय
खाद्यान्न सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत केंद्र सरकार राशन उपलब्ध करवाती है। इसी श्रेणी में आय-
सीमा को 45000 रुपए बढ़ाए जाने से डेढ़ लाख अतिरिक्त लोग प्राथमिकता घर की श्रेणी में आने से एनएफएसए
का फायदा ले पाएंगे। जबकि दूसरी श्रेणी अर्थात एपीएल परिवारों को प्रदेश सरकार अपने संसाधनों से राशन में
सबसिडी प्रदान करती है। अंत्योदय अन्नपूर्णा योजना के शिल्पकार पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार को
माना जाता है। वहीं प्रदेश में एपीएल परिवारों को राशन में सबसिडी देने की शुरुआत (2003-07) में कांग्रेस
सरकार ने की थी। यह अलग बात है कि बजटीय प्रावधानों के बिना शुरू की गई इस योजना की लगभग 70 करोड़
की देनदारी आगामी भाजपा सरकार को चुकानी पड़ी थी। प्रो. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने भी
राजनीतिक दुराग्रह से ऊपर उठकर इस योजना को जारी रखा। पीडीएस के तहत शुरू की गई इस योजना में
साधारण व्यक्ति से लेकर महामहिम राज्यपाल तक सभी राशनकार्ड धारक सबसिडी पर राशन लेने के लिए पात्र हैं।
इस योजना के तहत 20 किलो आटा, 15 किलो चावल, तीन दालें, खाद्य तेल, नमक और चीनी पर प्रदेश
सरकार उपदान उपलब्ध करवाती है। विभिन्न सरकारें बदलने पर भी खाद्य पदार्थों की मात्रा में छोटे-मोटे परिवर्तनों
के साथ यह योजना अनवरत जारी रही। एपीएल परिवारों को राशन में सबसिडी देने की यह योजना शुरुआत से ही
विवादों के घेरे में रही है।
कभी योजना के नामकरण में तो कभी साथ में दिए जाने वाले थैलों में नेताओं की तस्वीर को लेकर विवाद खड़ा
होता रहा है। राशन खरीददारी की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार, खराब व घटिया राशन, राशन की मात्रा में कटौती व समय
पर राशन न मिलना जैसे आरोप इस योजना के जन्म के समय लगने शुरू हो गए थे, जो अभी तक जारी हैं। इस
बीच कई बार यह मांग भी उठी कि राशन पर सबसिडी देने के बजाय राशन कार्ड धारकों के खाते में सबसिडी की
राशि हस्तांतरित कर दी जाए जिससे वे अपनी मर्जी से राशन ले सकें और धांधलियों के आरोपों से भी मुक्ति मिल
सके। अगर सरकार यह निर्णय लेती है तो प्रत्येक परिवार को प्रतिवर्ष लगभग 2000 रुपए की सबसिडी मिलेगी।
इस योजना को लेकर जनता में भी हमेशा विरोधाभास रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि प्रदेश के संपन्न
परिवार, विधायक, उच्चाधिकारी व कर्मचारी जो महंगाई भत्ता लेते हैं, उन्हें यह सबसिडी नहीं देनी चाहिए। वहीं,
दूसरी तरफ कुछ लोग इस मत के भी हैं कि बीपीएल, एएवाई या पीएच की सूची में कुछ अपात्र लोग भी शामिल
हो गए हैं और जो सही मायनों में गरीब हैं, वे इस सूची से बाहर रह गए हैं। सिर्फ सूची में नहीं होने के कारण
गरीब लोगों को राशन की सबसिडी से वंचित नहीं किया जा सकता है। इन सभी तर्कों के बीच इस योजना में वोट
बैंक के प्रभावित होने की आशंका से कभी वांछित सुधार नहीं हो पाया। प्रत्येक एपीएल परिवार को प्रतिमाह लगभग
165 रुपए की यह सबसिडी उस परिवार के लिए भले ही छोटी सी राशि है, पर सरकारी खजाने पर इस उपदान से
230 करोड़ रुपए का भारी-भरकम बोझ हर वर्ष पड़ जाता है।
इसलिए जब भी सरकार पर अनुत्पादक खर्चों को घटाने का दबाव पड़ता है तो सबसे पहले अधिकारियों की नजर
इसी योजना पर पड़ती है। संप्रति, प्रदेश की आय को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम भले ही कड़वे प्रतीत हों, परंतु
आंवले की तरह बाद में इसका स्वाद मीठा ही आएगा। प्रदेश सरकार इस दिशा में प्रयत्न भी कर रही है।
कर्मचारियों व पेंशनरों के वेतन, पेंशन व भत्तों में कटौती, पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य में बढ़ोतरी व शराब पर
अतिरिक्त मूल्य जैसे कई अन्य निर्णय प्रदेश को आर्थिक संकट से बचाने में सहायक सिद्ध होंगे। राशन सबसिडी
में कटौती से वास्तविक रूप से गरीब अपने अधिकार से वंचित न हों, सरकार ने अपने इस निर्णय में यह
सुनिश्चित किया है। फलस्वरूप संकट की इस घड़ी में प्रदेश की जनता सरकार का साथ अवश्य देगी।