राम राज या जंगलराज?

asiakhabar.com | January 3, 2019 | 3:50 pm IST
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम भारतवर्ष की बहुसंख्य आबादी के आराध्य हैं। देश का एक बड़ा हिस्सा भगवान राम की आराधना करता है व उन्हें अपना भगवान मानता है। ऐसे में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के साथ देश की जनता का भावनात्मक रिश्ता होना भी स्वाभाविक है। परंतु गत् तीन दशकों से भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी संगठनों द्वारा भगवान राम पर अपना एकाधिकार स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। कभी राम मंदिर निर्माण का जिम्मा उठा कर तो कभी मंदिर निर्माण के बहाने सत्ता हासिल करने के बाद देश में रामराज स्थापित करने की बात कहकर। भाजपा द्वारा दिया गया उसका सबसे लोकप्रिय नारा ‘सबका साथ सबका विकास’ भी रामराज स्थापित करने के कथित संकल्प का ही एक पर्यायवाची है। देश में रामराज लाने के भाजपाई नेताओं के दावों, खासतौर पर जबसे वे सत्ता में आए हैं, यह देखना ज़रूरी है कि आखिर इनके रामराज की परिभाषा क्या है? यह चाहते क्या हैं? देश में यह कैसा रामराज स्थापित करना चाहते हैं और वास्तव में देश में हो क्या रहा है? देश इस समय रामराज की ओर आगे बढ़ रहा है या फिर देश में जंगलराज कायम होने के लक्षण दिखाई दे रहे हैं?

दरअसल सरकारी मशीनरी, शासक के मूड उसके स्वभाव व उसकी राजनैतिक इच्छाओं के मद्देनज़र अपनी कार्यशैली का निर्धारण करती है। कमोबेश जनता भी शासक की उपरोक्त बातों पर नज़र रखती है। जनता व अधिकारी सभी शासकों की बातों को गौर से सुनते व समझते हैं यहां तक कि उनकी सांकेतिक भाषा व इशारों पर भी नज़र रखते हैं। दूसरी ओर चाहे वह राज्य का मुख्यमंत्री हो अथवा देश का प्रधानमंत्री, उसके मुंह से निकलने वाला एक-एक शब्द राज्य अथवा देश के प्रतिनिधि के रूप में निकला हुआ शब्द होता है। उदारहण के तौर पर यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सिंह यह कहते हैं कि-‘ जो लोग अपराध करेंगे वह ठोक दिए जाएंगे। और वही काम हम करने जा रहे हैं’। योगी की इस चेतावनीपूर्ण व धमकी भरी भाषा से यह स्पष्ट नहीं होता कि कौन किसे ठोक देगा? सरकार स्वयं ‘ठोक’ देगी या जनता भी जिसे चाहे उसे ‘ठोकने’ के लिए अधिकृत रहेगी? आज उत्तरप्रदेश की हालत तो वास्तव में ऐसी ही दिखाई दे रही है कि जो जिसे चाह रहा है उसे ‘ठोक’ रहा है। कभी बुलंदशहर में एसएचओ स्तर के ईमानदार पुलिस अधिकारी की उग्र भीड़ द्वारा हत्या की जा रही है तो कभी भीड़ द्वारा गाज़ीपुर में पुलिसकर्मी की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती है। कभी बेगुनाह लोगों को उनके घरों से उठाकर पुलिस मुठभेड़ में मार गिराए जाने के समाचार प्रकाशित होते हैं तो कभी लखनऊ जैसे महानगर व प्रदेश की राजधानी में इंजीनियर स्तर का होनहार व्यक्ति पुलिस की गोली से भून दिया जाता है। फर्जी मुठभेड़, हत्या, बलात्त्कार जैसी दर्जनों वारदातें प्रदेश में रोज़ाना घटित हो रही हैं। गोया इस समय उत्तर प्रदेश रामराज के बजाए जंगलराज की राह पर आगे बढ़ रहा है।

 

केवल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही नहीं बल्कि प्रदेश के और भी कई जिम्मेदार लोग उनसे ‘प्रेरणा’ लेकर इसी प्रकार की गुंडागर्दी वाली भाषा बोलते सुने जा रहे हैं। स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालय आदि बच्चों के उज्जवल भविष्य का निर्माण करते हैं। यहां ज्ञान के साथ-साथ चरित्र व राष्ट्रनिर्माण की शिक्षा भी दी जाती है। परंतु कलयुग में जिस प्रकार शासकों ने रामराज की परिभाषा को ही उलट कर रख दिया है लगता है भगवान स्वरूप समझे जाने वाले शिक्षकों ने भी कलयुगी शिक्षक का रूप धारण कर लिया है। क्या आप सोच सकते हैं कि किसी विश्वविद्यालय का उपकुलपति अपने छात्रों को हत्या करने के लिए उकसाएगा? परंतु कलयुग के रामराज में अर्थात् उत्तर प्रदेश के जौनपुर जि़ले में स्थित वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के उपकुलपति राजाराम यादव ने एक ऐसा ही विवादित बयान दिया है जोकि पूरी तरह से राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘ठोक दा’ शैली से प्रेरित प्रतीत होता है। उपकुलपति राजाराम यादव ने विश्वविद्यालय के छात्रों को संबाधित करते हुए कहा है कि-‘अगर आप पूर्वांचल यूनिवर्सिटी के छात्र हो तो मेरे पास कभी रोते हुए मत आना। अगर कभी किसी से झगड़ा हो जाए तो उसकी पिटाई करके आना और तुम्हारा बस चले तो उसका मर्डर करके आना बाकी हम देख लेंगे’।

 

केवल इस बात की कल्पना करके देखिए कि यदि ऐसे गैरजिम्मेदार तथा छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले उपकुलपति का कहना मानकर या उसकी शह पाकर छात्रों में हिंसक प्रवृति पैदा हो जाए और वे एक-दूसरे पर हमले करने लगें या लड़ाई-झगड़े की स्थिति में उपकुलपति का संरक्षण महसूस कर दूसरों की हत्याएं करने लग जाएं ऐसे में इन छात्रों का तथा राष्ट्र का क्या भविष्य होगा? क्या ऐसे ही शिक्षकों की कल्पना करते हुए संत कबीर ने कहा था कि-‘गुरू गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाए। बलिहारी गुरू आपने जिन गोविंद दियो मिलाए? यदि आप इस उपकुलपति द्वारा अपने छात्रों को हिंसा यहां तक कि हत्या के लिए उकसाने की पृष्ठभूमि पर गौर करें तो निश्चित रूप से उसका यह विवादित बयान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘ठोक दो’ वाले बयान से इसलिए प्रेरित है क्योंकि जब साधू वेश में एक प्रमुख धार्मिक गद्दी का गद्दीनशीन जिसे कि अपनी साधुता का पालन करते हुए प्रेम, सद्भाव, समाज कल्याण तथा मानवता व भाईचारे की बात करनी चाहिए, जब वही व्यक्ति ‘ठोक’ देने या ‘एक के बदले सौ लोगों को मारन’ जैसी हिंसा फैलाने वाली बातें करता है तथा अपने अनुयाईयों को ऐसे अपराध के लिए उकसाता है तो यदि उस राज्य का कोई शिक्षक भी इसी प्रकार की बातें करने लगे तो यह रामराज के नहीं बल्कि जंगलराज के ही लक्षण हैं।

 

राजस्थान में हालांकि इस समय सत्ता परिवर्तन हो चुका है तथा कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार सत्ता में आ चुकी है। परंतु गत् वर्ष अर्थात् वसुंधरा राजे सिंधिया के मुख्यमंत्रित्व काल में राजधानी जयपुर की एक ऐसी शर्मनाक घटना सामने आई जो जंगलराज के विस्तार का ही एक जीता-जागता सुबूत थी। गत् वर्ष अप्रैल में ब्राह्मण सभा के आह्वान पर एक जुलूस निकाला गया। इस जुलूस में अनेक ब्रह्मण युवक अपने हाथों में फरसे व तलवार लहराते हुए नारेबाज़ी कर रहे थे। इस जुलूस की निगरानी में तैनात नगौरियां थाने के एसएचओ इंद्रराज मरोडिय़ा ने जुलूस में शामिल युवकों को हवा में हथियार लहराने से मना किया। उनका कहना था कि इस प्रकार के आचरण से समाज में भय का माहौल पैदा होता है तथा इससे शांति भंग होती है। इसलिए कृपया आप लोग हवा में शस्त्र न लहराएं। थानेदार के मना करने के बावजूद न केवल जुलूस में शामिल युवक अपने शस्त्र लगातार लहराते रहे बल्कि उन युवकों ने एसएचओ को भी दबोच लिया व उसे अपमानित करते हुए धक्के देकर किनारे खींच ले गए। उसकी वर्दी पर हाथ डाला। यहां तक कि वातावरण बिगड़ता देख मौके पर पहुंचे पुलिस अधीक्षक पूर्वी जयपुर, कुंवर राष्ट्रदीप ने उस कर्मठ व जिम्मेदार एसएचओ इंद्र राज मरोडिया से उन लोगों के समक्ष हाथ जोड़कर माफी मांगने को कहा जिन्हें वे हथियार लहराने से रोक रहे थे। एसएचओ ने माफी तो ज़रूर मांगी परंतु माफी मांगने के बाद तत्काल उस थानेदार ने एसपी व जनता के समक्ष यह भी कह डाला कि- ‘अपनी ड्यूटी कर रहे ईमानदार पुलिस आिफसर को इस तरह से झुकाना नैतिक रूप से सही नहीं है, यह बात मैं ज़रूर कहूंगा’। जयपुर के एसएचओ मरोडिय़ा का यह वाक्य तथा इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या व देवरिया में पुलिस पर उपद्रवियों का हमला अपने-आप में इस बात के पर्याप्त उदाहरण हैं कि देश रामराज की ओर बढ़ रहा है या जंगलराज की ओर?


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