-आर.के. सिन्हा-
जब भारत-चीन की सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं युद्ध के लिए तैयार हैं और पाकिस्तान भी सरहद पार से
लगातार गोलीबारी और अन्य हथियारों से भारत को उकसाने की चेष्टा करने से बाज नहीं आ रहा है, तब असम-
मिजोरम सीमा पर हुई हिंसक झड़प से सारा देश सहम गया है। इस झड़प में असम पुलिस के 5 जवानों की मौत
हो गई। देश के दो राज्य दुश्मनों की तरह से लड़े-झगड़ें, यह सर्वथा अस्वीकार्य है। देश यह स्थिति किसी भी
परिस्थिति में सहन नहीं कर सकता। केन्द्र सरकार को तत्काल कठोर कदम उठाने होंगे ताकि इस तरह के अत्यंत
गंभीर मामले फिर कभी सामने न आएं। भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्यों क्रमश: असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर,
अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम के बीच आपसी विवाद देशहित में कतई नहीं होंगे। इनमें से कुछ
पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाएं चीन, म्यांमार, भूटान, बांग्लादेश वगैरह से सीधी लगती हैं। इन राज्यों पर लंबे समय से
चीन की नजर है और वहां अशांति फैलना चाहता है। यानी स्थिति नाजुक है। इसे हाथ से निकलने से पहले ही
काबू में करना होगा। देश आजाद होने के बाद से विभिन्न राज्यों के बीच पानी के बंटवारे से लेकर अन्य मसलों पर
अबतक विवाद हो ही रहे हैं। पर कभी भी स्थिति इतनी विकट नहीं हुई जितनी इसबार हुई। भारत एक है और
सदैव एक रहेगा भी। हम चाहे किसी भी राज्य में पैदा हुए हों और आज के दिन कहीं भी रह रहे हों, हैं तो हम
सभी भारत माता की संतान ही न ? फिर अपनों से ही ऐसा व्यवहार क्यों ? इस बिन्दु को समझना होगा। बेलगाम
को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सन 1956 से ही सीमा विवाद चल रहा है। बेलगाम मराठी बहुल इलाका
है। लेकिन, कर्नाटक राज्य में आता है। महाराष्ट्र के सभी दल बेलगाम और आसपास के इलाकों को महाराष्ट्र में
मिलाने या केंद्र शासित घोषित करने की मांग करते रहे हैं। बेलगाम में बड़ी संख्या में मराठी भाषी लोग रहते हैं।
फिलहाल यह कर्नाटक में है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में लंबे समय तक केन्द्र के साथ कांग्रेस की ही सरकारें रहीं।
फिर भी बेलगाम का मसला सुलझ नहीं पाया। इसका कोई स्थायी हल खोजना होगा। आपस में लड़ने-झगड़ने वाले
राज्यों को महाराष्ट्र-गुजरात के मधुर संबंधों से सीख लेनी होगी। भाषाई आधार पर महाराष्ट्र और गुजरात दो राज्य
1 मई, 1960 को देश के नक्शे पर आए। पहले दोनों बॉम्बे स्टेट के अंग थे। पर ये दोनों राज्य बाकी राज्यों के
लिए उदाहरण पेश करते हैं, जिनमें आपस में किच-किच चलती रहती है। भारत की आर्थिक प्रगति का रास्ता इन
दोनों ही राज्यों से ही होकर गुजरता है। अगर गुजरात की बात करें तो इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से
लगी है। गुजरात का क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ मिले पुरातात्विक अवशेषों से प्राप्त जानकारी के
अनुसार इस राज्य में मानव सभ्यता का विकास 5 हजार वर्ष पहले हो चुका था। मध्य भारत के सभी मराठी भाषा
के स्थानों का विलय करके एक राज्य बनाने को लेकर बड़ा आंदोलन चला और 1 मई, 1960 को कोंकण,
मराठवाड़ा, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिण महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र तथा विदर्भ सभी संभागों को जोड़कर महाराष्ट्र राज्य
की स्थापना की गई। लेकिन, इस पुनर्गठन के बाद से गुजरात और महाराष्ट्र के बीच कभी कोई विवाद नहीं हुआ।
अब बात हरियाणा और दिल्ली कर लें। पानी के मुद्दे को लेकर हरियाणा पर अरविंद केजरीवाल और उनकी दिल्ली
सरकार आरोप लगाती रहती है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता ही रहता है। दिल्ली सरकार के पानी न दिए जाने
के आरोप लगाए जाने के बाद हरियाणा सरकार भी मैदान में उतरती है। वह आंकड़े पेश करके बताती है कि दिल्ली
सरकार के सारे आरोप गलत हैं। हरियाणा सरकार कहती है कि दिल्ली में पानी की कमी पूरी तरह से उनका
आंतरिक मामला है। इसमें हरियाणा की कोई भूमिका नहीं है। दरअसल केजरीवाल अपनी नाकामियों और
निकम्मेपन को छिपाने के लिए हरियाणा सरकार पर बरसते रहते हैं। अब उन्हें कोई गंभीरता से भी नहीं लेता।
आप जानते हैं कि भाषाई आधार पर ही पंजाब से हरियाणा निकला था। पर उत्तर भारत के इन दोनों राज्यों में
अभी भी जल के बंटवारे से लेकर किसकी है चंड़ीगढ़, के सवाल पर तीखा विवाद होता रहता है। लेकिन, दोनों
राज्यों की जनता के बीच में कमाल का प्रेम और भाईचारा है। अब भी दोनों राज्यों के पुराने लोग उस दौर को याद
करते हैं जब हरियाणा अंग था पंजाब का। हरियाणा की पंजाबी बिरादरी बहुत प्रभावशाली है। हरियाणा के मुख्यमंत्री
मनोहर लाल खट्टर स्वयं पंजाबी बिरादरी से हैं। तमिलनाडु और कर्नाटक का कावेरी जल विवाद 120 सालों तक
चला। इस विवाद का साल 2018 में हल निकल गया जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में तमिलनाडु के पानी
का हिस्सा घटा दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुछ पहले बैंगलुरू में कावेरी जल बंटवारे का विवाद सड़कों पर
आ गया था। बैंगलुरू में तमिलों के साथ मारपीट हुई थी। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की जीवनदायनी महानदी के जल
के बंटवारे के मसले पर भी दोनों राज्यों के बीच तलवारें खींची रहती हैं। उधर, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच भी
अब विवाद होने लगा है। जब चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उनका तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर
राव से छत्तीस का ही आंकड़ा रहा। यह न होता तो ज्यादा ठीक रहता। दोनों एक-दूसरे से बात तक नहीं करते थे।
पृथक तेलंगाना को लेकर चलने वाले आंदोलन के समय से ही आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के नेताओं और जनता में
दूरियां बढ़ने लगी थीं। असम-मिजोरम विवाद पर केन्द्र सरकार फौरन हरकत में आ गई है। केन्द्रीय गृह मंत्री
अमित शाह सारे मामले पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात कर रहे हैं। सरकार को तेजी से सामरिक महत्व के
राज्यों के बीच सीमा विवादों के स्थायी हल ढूंढ़ने होंगे। सरकार को उन तत्वों पर कठोर एक्शन लेने में देर नहीं
करनी चाहिए जो विवादों को खाद-पानी देते हैं। लोकतंत्र में विवाद वार्ता से हल हो जाएं तो सबसे अच्छी बात है।
पर अगर जरूरत पड़े तो केन्द्र सरकार को सख्ती भी बरतनी होगी।