विनय गुप्ता
गत 2/3 जुलाई की रात एक बार फिर उत्तर प्रदेश पुलिस का एक 8 सदस्यीय दल कानपुर के चौबे पुर थानांतर्गत
बिकरू गाँव के समीप अपराधियों की गोलियों का शिकार हो गया। बताया जा रहा है कि विकास दुबे नामक एक
गैंगस्टर को हत्या के एक मामले में पकड़ने गए पुलिस दल के मौक़े पर पहुंचते ही विकास दुबे व उसके साथी
बदमाशों ने पुलिस दल पर फ़ायरिंग करनी शुरू कर दी। ख़बर है कि बदमाशों ने फ़ायरिंग में ए के 47 जैसे
प्रतिबंधित हथियार का भी इस्तेमाल किया। संभावना है कि गैंगस्टर विकास दुबे को पता चल गया था की पुलिस
उसे पकड़ने उसके गांव बिकरू आ रही है। इसी लिए योजनाबद्ध तरीक़े से पुलिस दल का रास्ता रोकने के उद्देश्य
से अपराधियों द्वारा रस्ते में जे सी बी खड़ी कर दी गयी। फिर इसी जगह पर पुलिस दल पर पास की छतों से
धुआंधार फ़ायरिंग की गयी। जिसमें एक उप पुलिस अधीक्षक देवेंद्र मिश्र, तीन पुलिस उप निरीक्षक व चार
सिपाहियों सहित कुल 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। घटना को अंजाम देने के बाद बदमाशों द्वारा शहीद पुलिस
कर्मियों के हथियार छीन कर ले जाने की भी ख़बर है। घटना के अगले ही दिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्य नाथ कानपुर पहुंचे। मुख्यमंत्री ने यहां एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की जिसमें उन्होंने प्रत्येक शहीद पुलिस कर्मी के
परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने, असाधारण पेंशन दिए जाने के साथ साथ एक करोड़ रुपये
मुआवज़ा राशि दिए जाने का भी ऐलान किया। मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया कि हमारे जवानों की शहादत बेकार
नहीं जाएगी और इसके लिए ज़िम्मेदार लोग बख़्शे नहीं जाएंगे।
अपराधियों, माफ़ियाओं, गैंगस्टर्स या दबंगों द्वारा पुलिस कर्मियों पर किया जाने वाला यह कोई नया या पहला
हमला नहीं है। हमारे देश में भ्रष्ट लोगों के अपराधी नेटवर्क द्वारा अनेक ईमानदार अधिकारियों की हत्याएँ की
जाती रही हैं। अनेक आर टी आई कार्यकर्ता व सचेतक मौत की नींद सुलाए जा चुके हैं। रेत/बालू खनन माफ़िया
आई पी एस अधिकारी से लेकर पुलिस कर्मियों तक की हत्याएँ करते रहे हैं। गोया देश के अनेक राज्यों में पिछले
चार दशकों से अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे किसी भी तरह की बड़ी से बड़ी वारदात को अंजाम देने से
क़तई नहीं डरते। सवाल यह है कि अपराधियों के आतंक का यह अंतहीन सिलसिला थमने का नाम क्यों नहीं ले
रहा? अपने को मज़बूत, कुछ कर दिखाने की हिम्मत रखने वाला तथा राज्य, देश व समाज को अपराध मुक्त
बनाने का दावा करने वाले नेता भी आख़िर चुनावी वादों के बावजूद राजनीति को अपराधियों से मुक्त क्यों नहीं
करा पा रहे हैं? कहीं अपराधी करण भारतीय राजनीति के यथार्थ के रूप में स्वीकार तो नहीं कर लिया गया है?
याद कीजिये 7 अप्रैल, 2014 को जब भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनावी संकल्प पत्र जारी किया था उसमें
चुनाव सुधार की बात करते हुए इस बात पर ख़ास ज़ोर दिया गया था कि भाजपा अपराधियों को राजनीति से बाहर
करने के लिए कटिबद्ध है। इसके बाद राजस्थान में 2014 में एक चुनावी जन सभा में मोदी ने अपने विशेष
अंदाज़ में बड़े ही आत्म विश्वास का प्रदर्शन करते हुए यह फ़रमाया था कि-‘आजकल यह चर्चा ज़ोरों पर है कि
अपराधियों को राजनीति में घुसने से कैसे रोका जाए। मेरे पास एक इलाज है और मैंने भारतीय राजनीति को साफ़
करने का फ़ैसला कर लिया है। मैं इस बात को लेकर आशान्वित हूं कि हमारे शासन के पांच सालों बाद पूरी
व्यवस्था साफ़-सुथरी हो जाएगी और सभी अपराधी जेल में होंगे। मैं वादा करता हूं कि इसमें कोई भेदभाव नहीं
होगा और मैं अपनी पार्टी के दोषियों को भी सज़ा दिलाने से नहीं हिचकूंगा। अपने ऐसे ही वादों व जनता की
उम्मीदों के साथ नरेंद्र मोदी 26 मई 2014 को देश के प्रधानमंत्री पद पर सुशोभित हुए । 11 जून 2014 को
उन्होंने संसद में अपने पहले भाषण में चुनावी प्रक्रिया से आपराधिक छवि के जन प्रतिनिधियों को हटाने की पहल
करने के अपने वादे को पुनः दोहराया। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार ऐसे नेताओं के विरुद्ध मुक़द्द्मों के
तेज़ी से निपटारे की प्रक्रिया बनाएगी। उन्होंने एक साल के अंदर ऐसे मामलों के निपटारे की बात कही थी। नरेंद्र
मोदी के वह वादे आज 6 वर्षों बाद भी पूरे नहीं हो सके हैं। इस दौरान उनकी अपनी पार्टी के कई सांसदों और
मंत्रियों पर कई गंभीर आपराधिक आरोप भी लगे। मगर आपराधिक मुक़दमा चलाने की बात तो दूर, उन्होंने
नैतिकता के आधार पर भी किसी का इस्तीफ़ा तक नहीं लिया।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ ने भी पद संभालने के बाद ही एक टी वी चैनल के एक
कार्यक्रम में हत्या, बलात्कार और लूट की घटनाओं में लिप्त अपराधियों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है था कि –
'अगर उन्होंने अपना रास्ता नहीं बदला तो उनकी पुलिस ऐसे लोगों को मार गिराने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
मुख्यमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि -'लोग अगर अपराध करेंगे, ठोक दिए जाएंगे। उनके इस बयान पर काफ़ी
विवाद भी हुआ था। उन्होंने यह भी कहा था कि 'पहले अपराधियों को सत्ता का संरक्षण मिलता था। इसके अलावा
भी मुख्यमंत्री कहते रहे हैं कि गुंडे-अपराधी या तो जेल के अन्दर होंगे, या फिर प्रदेश के बाहर होंगे, पर हम उन्हें
प्रदेश के अन्दर जंगल राज पैदा करने की छूट नहीं देंगे।' ऐसे में सवाल यह है कि कानपुर की ताज़ातरीन घटना
को यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी के अपराधियों से संबंधित बयानों के संदर्भ में देखा
जाए तो हमें उनके यह बयान महज़ लफ़्फ़ाज़ी और लोक लुभावने नज़र आते हैं। बल्कि इसके विपरीत सरकार
अपराधियों के प्रति तो उदासीन दिखाई देती है जबकि अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों,
सामाजिक कार्यकर्ताओं या अपने आलोचकों के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव करते देखी जा रही है। निश्चित तौर पर
इससे मौक़ा परस्त अपराधियों के हौसले बुलंद ही होते हैं।
वास्तव में अपना राजनैतिक कुनबा बढ़ाने व दबंग व बलशाली लोगों को अपने साथ जोड़ने की राजनेताओं व
राजनैतिक दलों की प्रवृति ने साथ ही अपराधियों की राजनैतिक संरक्षण हासिल करने की महती इच्छाओं ने ही
आज राजनीति व अपराधियों का एक ऐसा ख़तरनाक गठजोड़ खड़ा कर दिया है जिससे छुटकारा पाना आसान नज़र
नहीं आता। ख़ास तौर पर तब जबकि राजनैतिक दल अपराधियों को अपनी पार्टी का प्रत्याशी बनाएं स्वयं अपराधी
माफ़िया देश के विभिन्न सदनों के लिए निर्वाचित होकर आने लग जाएं और इतना ही नहीं बल्कि उन्हें मंत्री पदों
से भी नवाज़ा जाने लगे।