ओम प्रकाश मेहता-
इस साल के उत्तरार्ध में जिन राज्यों का अगला राजनीतिक भविष्य तय होना है, उनमें हमारा मध्य प्रदेश प्रमुख है, यहां पिछले साढे 16 वर्षों से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान है, वर्ष 2005 के नवंबर माह में उमा भारती जी के बाद शिवराज जी ने यह सिंहासन संभाला था, उसके बाद से अब तक के साडे 17 साल में से यदि कमलनाथ जी के मुख्यमंत्रित्व काल के 15 महीने निकाल दिए जाए, तो शिवराज जी ही इस प्रदेश के नियता बने हुए हैं, किंतु अब जबकि मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए केवल 9 महीनों का ही समय शेष बचा है, ऐसे में अब सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में हलचल बढ़ गई है और पार्टी के अंदरूनी क्षेत्रों से एक ही सवाल उठाया जा रहा है कि क्या मध्यप्रदेश में अगला विधानसभा चुनाव भी शिवराज जी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा या कोई बेहतर असरदार चेहरा सामने लाय जाएगा? यद्यपि इस सवाल का जवाब फिलहाल स्वयं पार्टी आलाकमान भी देने की स्थिति में नहीं है, किंतु यह अवश्य है कि पार्टी आलाकमान कई स्तरों पर मध्य प्रदेश का राजनीतिक सर्वेक्षण अवश्य करवा रहा है, जिसके नतीजे अगले एक-दो महीने में ही सामने आने की संभावनाएं व्यक्त की जा रही है, क्योंकि आलाकमान का भी यह कहना यह मानना है कि मौजूदा सरकार के खिलाफ दीर्घावधि के चलते सत्ता विरोधी लहर तो चलती ही है, किंतु यह लहर कहीं तूफान का रूप ग्रहण ना कर ले इसी चिंता में आलाकमान हैं, वैसे सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रीय व प्रांतीय कई वरिष्ठ नेता सरकार के शीर्ष पद पर नयी पूरी नया पान चाहते हैं, जिससे राजनीति के मुंह का जायका बदल सके और फिर नए सिरे से नई व्यूह रचना में संलग्न हो जाए, पर फिलहाल ऐसे संकेत उभर कर सामने नहीं आए हैं।
अब यदि हम शिवराज के सामने प्रमुख चुनौतियों के बात करें तो उनके सामने आर्थिक व राजनीतिक दोनों ही मोर्चो पर गंभीर चुनौतियां हैं, आज एक और जहां राज्य को गंभीर आर्थिक संकट के दौरान दौर से गुजारना पड़ रहा है, विधानसभा को अपने वार्षिक बजट से अधिक राज्य सरकार के सिर पर लगे कर्ज़ की चिंता करना पड़ रही है, वही पार्टी में सरकारी नेतृत्व में दिनोंदिन व्यापक हो रहे कलह से भी दो-चार होना पड़ रहा है, इन दिनों राज्य पर 3,31,651 करोड़ का कर्ज है, जबकि हाल ही में प्रस्तुत बजट 3,14,025 करोड़ का है, अर्थात बजट से अधिक कर्ज की राशि है, ऐसी स्थिति में सहज ही कल्पना की जा सकती हैं कि चुनावी वर्ष में सरकार अपने दल के लिए मतदाताओं को कैसे पटा पाएगी, यद्यपि अपने बजट के माध्यम से शिवराज जी ने प्रदेश के आधे वोटर महिलाओं और युवाओं को पटाने की कोशिश की है, किंतु यह कोशिश किस स्तर तक सत्तारूढ़ दल को राजनीतिक लाभ दिला पाती है, इसका जवाब भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इस बजट ने यह अवश्य स्पष्ट कर दिया है कि हमारा मध्यप्रदेश तीन लाख करोड़ बजट वाले राज्यों के क्लब में अवश्य शामिल हो गया है। साथ ही यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि राज्य सरकार ने 2021-22 के बजट में से 39,000 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं किए, जबकि यह राशि जनकल्याण से जुड़ी योजनाओं पर खर्च होना थी, साथ ही केंद्र में अपनी ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद केंद्र प्रायोजित योजनाओं की स्वीकृत राशि का 50 फ़ीसदी भाग मध्यप्रदेश को मिल ही नहीं पाया। अब इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह तो सरकार में विराजित लोग जाने किंतु यदि यह स्थिति सही है तो यह प्रदेश के लिए हित में नहीं कही जा सकती। कुल मिलाकर अब मध्य प्रदेश की स्थिति यह है कि एक और उसके सिर पर बजट से अधिक कर्ज की राशि है, तो दूसरी ओर उसे अपने उज्जवल राजनीतिक भविष्य के लिए मतदाताओं को अपने पक्ष में बनाकर भी रखना है, अब इस विषम स्थिति से सरकार व उसका नेतृत्व कैसे निपटते हैं, यह तो इस साल के अंत में चुनाव परिणामों से पता चलेगा, किंतु हां, अभी कुछ भी इस बारे में कल्पना य चिंतन करना ठीक नहीं होगा।