अजय जैन ‘विकल्प’
आप न होते संसार न मिलता हम ना होते।
पेड़-सी छाया जीवन वटवृक्ष पिता ही काया।
माँ सम नहीं धीर-गम्भीर होते वो कम नहीं।
सब सिखाया थामी सदा अंगुली बने वे साया।
करूँ प्रणाम सर्वोत्तम हैं पिता उनसे नाम।
उनका कर्ज हाथ नहीं छोड़ना निभाना फर्ज़।
आँसू न देना चाहते वो प्रगति मान रखना।
सुनें उनकी सबक का खजाना सीख उनकी।
सब जानते फटे जूते रहते वो मुस्कुराते।
बहाते स्वेदहर इच्छा सुनते अकेले रोते।
पिता का कांधा,सबसे मजबूत दुःख था आधा।
फिर न मिलें दें खुशियाँ उनकोपिता अमोल॥