अशोक कुमार यादव मुंगेली
दुनिया में चारों तरफ रावण-ही-रावण है,
मैं मर्यादा पुरुषोत्तम रघुराम कहाँ से लाऊँ।
असत्य, अधर्म और पाप का बोलबाला है,
सत्य, धर्म दृढ़ कर राम राज्य कैसे बनाऊँ।।
बहन-बेटियों के चैन और सुकून को छीनने,
दस सिर लिए कई रावण घूमते गली-गली।
बहला-फुसलाकर, जोर-जबरदस्ती करते,
गौरव नारी को हर कर मचाते हैं खलबली।।
कौन कहता है लंका पति रावण मारा गया,
वह तो लोगों के मन में अभी भी है जिंदा।
बुरे विचारों को शातिर मस्तिष्क में पनपाते,
कहीं बलात्कार और हत्या करते हैं दरिंदा।।
यदि कोई मनुष्य फिर बन गया रावण कहीं,
हर साल दशहरे के दिन आग से जलाएंगे।
बुराई पर अच्छाई की जीत सदा होती रहेगी,
कलियुगी रावण को, राम बन मार गिराएंगे।।