-सिद्वार्थ शंकर-
एक समय में भारत अधिकांश रक्षा उपकरणों का आयात करता था, लेकिन अब वह रक्षा क्षेत्र में निर्यातक की बड़ी
भूमिका में आ गया है। भारत और रूस के बीच इसी महीने की शुरुआत में हुए 2+2 डायलॉग में देश से बाहर
हथियारों के निर्माण को लेकर सहमति बनी है। इसे लेकर कोई करार नहीं हुआ है, लेकिन दोनों देशों के बीच नॉन-
पेपर एक्सचेंज हुआ है। इसके तहत सेंट्रल एशिया के देशों कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान
और उज्बेकिस्तान में हथियारों के उत्पादन का प्रस्ताव है। यह उत्पादन इन देशों में स्थित सोवियत काल की
फैक्ट्रियों में ही किया जाएगा। दोनों देशों के बीच इसे लेकर सहमति बनी है और आने वाले दिनों में इस प्रस्ताव पर
आगे बढ़ सकते हैं। बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी सेंट्रल एशिया के देशों को भारत के विस्तृत पड़ोसियों को दर्जा देते
रहे हैं। हाल ही में इन देशों के विदेश मंत्रियों की मीटिंग भी दिल्ली में बुलाई गई थी। इस बैठक में अफगानिस्तान
को लेकर चर्चा हुई थी, जिसे लेकर कहा जा रहा है कि भारत एक बार फिर से अपनी पैठ पड़ोसी मुल्क में मजबूत
करने की स्थिति में आ गया है। अब यदि सेंट्रल एशिया के देशों में भारत हथियारों के उत्पादन का काम करता है
तो यह बड़ी सफलता होगी। इसकी वजह यह है कि भारत लंबे समय से हथियारों के आयातकर्ता की बजाय
एक्सपोर्टर बनना चाहता है, इस लिहाज से सेंट्रल एशिया के देशों में हथियार उत्पादन बड़ी सफलता होगी। सेंट्रल
एशिया के ज्यादातर देशों में रूस के ही हथियारों का इस्तेमाल होता है। अब यहां की सोवियत काल की फैक्ट्रियों में
भारत के साथ मिलकर रूस हथियारों का उत्पादन करेगा। कहा जा रहा है कि यहां बने हथियारों को सेंट्रल एशिया
के देशों को दिया जाएगा। इसके अलावा भारत की जरूरतें भी पूरी हो सकेंगी। दशकों से भारतीय सेना में भी रूस
के बने कई हथियारों, मिलिट्री वाहनों और अन्य उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। हथियारों के निर्यातक
देश बनने की दिशा में भारत के लिए यह अहम कदम होगा। इसके साथ ही भारत को सेंट्रल एशिया के मुस्लिम
बहुल देशों में अपनी पैठ मजबूत करने में मदद मिलेगी। इससे अफगानिस्तान में भी भारत मजबूत स्थिति में आ
सकेगा। रूस के जरिए अफगानिस्तान में भारत की एंट्री पाकिस्तान को भी चिढ़ाने वाली होगी। आज हमारे देश की
अनेक सरकारी कंपनियां विश्व स्तर के हथियार बना रही हैं और भारत विश्व के 42 देशों को रक्षा सामग्री निर्यात
कर रहा है। आत्मनिर्भर भारत की लक्ष्य प्राप्ति के लिए मेक इन इंडिया से आगे मेक फॉर वल्र्ड की नीति पर चलते
हुए केंद्र सरकार ने 2024 तक 35 हजार करोड़ रुपए का सालाना रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है। वास्तव में भारत
की सामरिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए रक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना महत्वपूर्ण
है। कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया है। अब समय आ गया है कि भारत हर क्षेत्र में
स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करे, क्योंकि अब भी भारत अपनी रक्षा जरूरतों का लगभग 60 प्रतिशत सामान
आयात करता है, साथ ही मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक सहित कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आयात होता है। देश में
प्रौद्योगिकी के स्तर पर कोरोना संकट के बाद अब बदले हुए भारत की कल्पना करनी होगी, जिसमें हर क्षेत्र में
स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करते हुए देश को मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाना होगा। कोरोना संकट की वजह से
दुनिया के अधिकांश देश चीन के खिलाफ हैं और चीन से अपनी मैन्युफैक्चरिंग हटाना चाहते हैं। ऐसे में भारत के
लिए यह एक बड़ा अवसर है कि वह इन कंपनियों को भारत में काम करने का मौका दे और साथ में अपनी खुद
की स्वदेशी तकनीक और प्रौद्योगिकी विकसित करे। आज हमारे देश की अनेक सरकारी कंपनियां विश्व स्तर के
हथियार बना रही हैं और भारत विश्व के 42 देशों को रक्षा सामग्री निर्यात कर रहा है। हमारे घरेलू उद्योगों ने
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है, इसलिए देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए
भारतीय उद्योग के कौशल संसाधनों और प्रतिभाओं का बेहतर उपयोग करना जरूरी है, क्योंकि आयातित
टेक्नोलॉजी पर हम ब्लैकमेल का शिकार भी हो सकते हैं। सुरक्षा मामलों में देश को आत्मनिर्भर बनाने में सरकार
और एकडेमिक जगत की भी बराबर की साझेदारी होनी चाहिए। इसके लिए मध्यम और लघु उद्योगों की
प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण में अहम भूमिका हो सकती है। पूरी दुनिया में छाए कोरोना संकट
के बीच अब यह बात हमें समझ जानी चाहिए कि स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है।
आज हमारे देश में बने टीके का निर्यात पूरी दुनिया में हो रहा है। इसलिए अगर सकारात्मक सोच और ठोस
रणनीति के साथ लगातार अपनी प्रौद्योगीकीय जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाते रहें तो वह
दिन दूर नहीं, जब हम आत्मनिर्भर बन जाएंगे और दूसरे देशों पर किसी तकनीक, हथियार और उपकरण के लिए
निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। कम समय में ही भारत रक्षा क्षेत्र में विश्व का प्रमुख उत्पादक देश बन कर उभरेगा।