विनय गुप्ता
पिछले दिनों हैदराबाद में एक 22 वर्षीय महिला डॉक्टर के साथ सामूहिक बलात्कार किये जाने तथा बाद
में उसकी नृशंस हत्या कर ज़िंदा जलाए जाने की घटना एक बार फिर सुर्ख़ियों में छाई हुई है। गाठ दिनों
सड़क से लेकर संसद तक इस घटना को लेकर ज़ोरदार बहस राष्ट्रीय स्तर पर कैंडल मार्च व प्रदर्शन
आदि का सिलसिला जारी है। ख़ास तौर पर देश की युवतियां बढ़ती जा रही बलात्कार की प्रवृति को
लेकर अत्यधिक चिंतित व सहमी हुई नज़र आ रही हैं। देश में एक बार फिर बलात्कारियों को फांसी पर
लटकाए जाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी है। राज्य सभा सदस्या जया बच्चन ने तो अपराधियों को भीड़
के हवाले किये जाने जैसी सज़ा दिए जाने की मांग तक कर डाली। मुख्य धारा के टी वी चैनल्स तथा
समाचार पत्रों से भी अधिक यह घटना सोशल मीडिया पर छाई हुई है। परन्तु दुर्भाग्य की बात तो यह है
कि सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर चलने वाली चर्चा में बलात्कार व बलात्कारियों की प्रवृति, इसे
नियंत्रित करने से संबंधित चर्चाओं से अधिक ज़िक्र इस बात का रहा कि बलात्कारी का धर्म क्या है।
ग़ौरतलब है कि जिस महिला पशु डॉक्टर का एक ट्रक ड्राइवर ने अपने क्लीनर व अन्य सहयोगियों के
साथ मिलकर अपहरण किया, उसका बलात्कार किया तथा बाद में जलाकर उसकी हत्या की थी उस
दुर्भाग्यशाली युवती का संबंध भी हिन्दू धर्म से था। और गिरफ़्तार चार आरोपियों में से तीन आरोपी भी
हिन्दू धर्म से ही संबंधित हैं। जबकि अपराधियों में से एक मुस्लिम धर्म से संबंधित है। मोहम्मद पाशा
नाम के इसी आरोपी को लेकर बलात्कारियों को धर्म के चश्मे से देखने वाले तत्व पूरे देश के मुसलमानों
पर निशाना साध रहे हैं जबकि जोलू नवीन, चिन्ताकुंता केशावुलु और जोलू शिवा नाम के तीन हिन्दू
आरोपियों पर उनकी ज़ुबानें बंद हैं।
यह उसी वर्ग के लोग हैं जो हिन्दू समाज से संबंध रखने वाले अनेक पाखंडी 'धर्माधिकारियों' पर
बलात्कार का आरोप लगने के बाद यह कहते सुनाई देते हैं कि हमारे 'महाराज श्री' बलात्कार जैसा
अपराध तो कर ही नहीं सकते, हमारे महाराज जी तो 'ईश्वर तुल्य' हैं और इन सबसे आगे बढ़कर वे यह
भी कहते सुनाई देते हैं कि हिन्दू साधु संतों पर बलात्कार का आरोप लगाना हिन्दू धर्म के विरुद्ध
साज़िश रचने का एक बड़ा 'षड़यंत्र' है। यहाँ किसी तथाकथित साधु संत का नाम लेने की आवश्यकता
नहीं परन्तु पूरा देश यह भली भांति जानता है कि एक दो नहीं बल्कि दर्जनों बार ऐसी घटनाएं हो चुकी
हैं जबकि हिन्दू धर्म से संबंधित बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में बलात्कारी समर्थक लोग सड़कों पर
उतरे हैं तथा बड़े पैमाने पर धरना प्रदर्शन आदि किया है। उस समय भी बार बार इस विषय पर चिंता
व्यक्त की गयी कि बलात्कारियों का समर्थन या विरोध उसके धर्म के आधार पर किया जाना, देश को
आख़िर किस दिशा में ले जा रहा है। हैदराबाद में घटी इस शर्मनाक घटना के बाद हालांकि मुस्लिम
आरोपी पाशा के परिजनों का यही कहना है कि 'वह जिस सज़ा के लाएक़ है उसे वह सज़ा ज़रूर मिलनी
चाहिए। देश में हो रहे प्रदर्शनों में हर तरफ़ मुस्लिम महिलाओं व पुरुषों द्वारा भी इस घटना के विरुद्ध
होने वाले प्रदर्शनों में बढ़ चढ़ कर भाग लिया जा रहा है। 'मुस्लिम आरोपी का परिवार ही नहीं बल्कि
हिन्दू आरोपियों के परिजन भी अपने पुत्रों की हरकतों पर बेहद शर्मिंदा हैं। वे भी अपने अपने आरोपी
पुत्रों को सख़्त से सख़्त सज़ा देने का समर्थन कर रहे हैं। चार में से एक आरोपी केशवुलु की मां श्यामला
का तो यहाँ तक कहना है कि यदि मेरे बेटे ने यह दुष्कर्म किया है तो उसे फांसी दे दीजिए या उसी तरह
ज़िंदा जला दीजिए जैसे कि उन लोगों ने डॉक्टर के साथ उसका रेप करने के बाद किया है।'श्यामला ने
बताया उसके पति ने तो हताश होकर घर ही छोड़ दिया है। इसी प्रकार अन्य आरोपियों के परिवारों ने भी
साफ़ कहा है कि उनके बेटों को यदि मौत की सज़ा दी जाती है तो वे विरोध नहीं करेंगे।
परन्तु समाज में साम्प्रदायिकता फैलाने तथा धर्म के नाम पर ज़हर बोने वाले लोगों को केवल मोहम्मद
पाशा नामक बलात्कार आरोपी, उसका 'धर्म' तथा उसकी 'धार्मिक शिक्षाएं' ही दिखाई दे रही हैं। आख़िर
कैसी मानसिकता के लोग हैं जो बलात्कारियों को भी धर्म के चश्मे से देखते हैं? क्या हिन्दू धर्म से जुड़े
किस बलात्कारी का अपराध काम या क्षमा करने योग्य है जबकि मुसलमान बलात्कारी का अपराध
अक्षम्य है? इस प्रश्न का सही उत्तर तो उसी परिवार के लोग या बलात्कार पीड़िता ही दे सकती है। आज
तक देश में जितने भी बलात्कार करने वाले 'विशिष्ट 'लोग पकड़े गए हैं या जेलों में सड़ रहे हैं,
सज़ायाफ़्ता अथवा विचाराधीन क़ैदी हैं वे सभी अधिकांशतः हिन्दू हैं तथा उन्होंने बलात्कार भी हिन्दू धर्म
से सम्बंधित बेटियों के साथ ही किया है। परन्तु अफ़सोस कि उस समय जहाँ आम भारतीय समाज
जिसमें निश्चित रूप से अधिकांशतः हिन्दू धर्म के लोग ही शामिल थे और हैं पीड़िता के समर्थन में
सड़कों पर उतरे तथा बलात्कारियों को फँसी पर लटकाने की मांग करते दिखाई दिए वहीँ समाज विभाजक
चंद लोग जिनमें सत्तारूढ़ दल के विधायक, समर्थक तथा भाजपा आई टी सेल से जुड़े लोग केवल
मुस्लिम धर्म से संबंध रखने वाले बलात्कारी के ही पीछे पड़ते तथा उनके धर्म को ही सीधे तौर पर
निशाना साधते दिखाई दिए।
किसी अपराध या अपराधी को धर्म की नज़र से देखने की कोशिश करना निश्चित रूप से जहाँ अपराध
को बढ़ावा देना है वहीँ यह कोशिश एक प्रकार से बलात्कारियों या अन्य अपराधियों की हौसला अफ़ज़ाई
करने का प्रयास भी है। यह कोशिश पीड़ित परिवारों को और अधिक सदमा पहुँचाने के अलावा उन्हें न्याय
मिलने में बाधा पहुंचाने व मानसिक रूप से भी उन्हें और अधिक उत्पीड़ित करने की कोशिश है। अपराध
का कोई धर्म नहीं होता, अपराध करने वाला हिन्दू या मुसलमान नहीं बल्कि सिर्फ़ अपराधी होता है। पूरे
भारतीय समाज को सभी अपराधियों को समान नज़र से देखना चाहिए चाहे वो किसी भी धर्म से संबंध
क्यों न रखता हो। और जो लोग ऐसे अपराध और धर्म का घालमेल करने का प्रयास करते हों उन्हें
विभाजनकारी शक्तियों के रूप में चिन्हित किया जाना चाहिए और उन्हें दण्डित भी किया जाना चाहिए।