कांग्रेस के अल्पसंख्यक धड़े में चल रही उठापटक के बाद दो गुट बन गए हैं। शुक्रवार रात आरएनटी मार्ग स्थित
होटल श्रीमाया में एक गुट ने डिनर पार्टी रखी थी। इसमें वे अल्पसंख्यक पूर्व पार्षद शामिल हुए, जो पूर्व पार्षद शेख
अलीम से अलग होकर नया गुट बना रहे हैं। इस गुट को तब और मजबूती मिल गई, जब कुछ दूसरे पूर्व पार्षद
और कांग्रेस के पदाधिकारी भी वहां पहुंचे। ऊपरी तौर पर भले ही बताया जा रहा है कि कांग्रेस अल्पसंख्यक नेता
एक हैं, लेकिन अंदर ही अंदर दो गुट बन गए हैं। यह बात शनिवार को हुए धरने में रूबीना खान और शेख अलीम
के बीच हुए विवाद से साबित भी हो गई।
एमजी रोड की ही इतनी चिंता क्यों
कांग्रेस और भाजपा के नेता तथा जनप्रतिनिधि बार-बार बड़ा गणपति से कृष्णपुरा तक बनने वाली सडक़ को लेकर
दौरा कर रहे हैं। एक बार संजय शुक्ला घूमे, दो बार सुदर्शन गुप्ता तो तीसरी बार में सांसद शंकर लालवानी को भी
याद आई कि उन्हें भी लोगों के बीच जाना चाहिए। उनके साथ स्थानीय नेताओं ने भी दौरा किया। नेताओं की
चिंता समझ नहीं आ रही है। वे दर्द दूर करने जा रहे हैं या मरहम लगाने, क्योंकि किसी के भी दौरे के बाद यहां न
तो सडक़ की चौड़ाई कम हुई और न ही लोगों को किसी प्रकार की राहत मिली। लोग रोज अपने आशियाने और
दुकानें अपने हाथों से तोड़ते हुए नेताओं को कोस रहे हैं।
न खिलाफत की और न ही समर्थन
उमा भारती के समर्थक जबलपुर के शरद अग्रवाल पिछले दिनों इंदौर में थे। उन्हें वीडी शर्मा ने व्यापारिक प्रकोष्ठ
का संयोजक बनाया है। वे प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। इंदौर पहुंचे तो सवाल उठा कि उमा भारती के शराबबंदी व
ब्यूरोक्रेसी को चप्पलों में रखने वाले बयान से वे कितना इत्तेफाक रखते हैं? लेकिन उन्होंने सवाल टाल दिया। कई
बार इस मुद्दे पर बात हुई, पर मजाल है कि उमा के दोनों बयानों पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया दी हो। वे खिलाफत
कर न तो उमा को नाराज करना चाहते न ही समर्थन कर संगठन को, क्योंकि अभी तो उन्हें संगठन ने बनाया है
और फिर उनकी हां में हां मिलाना ही है।
राजनीतिक आंदोलन मजबूरी है
कांग्रेस नेता राजू भदौरिया पर जिलाबदर की कार्रवाई को लेकर सबसे ज्यादा तकलीफ दो नंबरी कांग्रेसियों को हुई।
मोहन सेंगर के भाजपा में जाने के बाद जिस तरह से चिंटू चौकसे दो नंबर में किला लड़ा रहे हैं, उससे उनके दांये
हाथ राजू भदौरिया को जिलाबदर करने के मामले में राजनीतिक आंदोलन मजबूरी बन गया है। कल होने वाले इस
आंदोलन में ऐतिहासिक भीड़ का दावा किया जा रहा है। शहर कांग्रेस ने भी मदद का भरोसा दिया है, क्योंकि जिस
तरह से एक-एक कांग्रेसी पर प्रकरण दर्ज होता जा रहा है, उसने कांग्रेसियों की नींद उड़ाकर रख दी है। इसलिए अब
सब ‘हम साथ-साथ हैं’ का दावा कर रहे हैं।
अल्पसंख्यक अध्यक्ष के लिए नए समीकरण
भाजपा में अल्पसंख्यक मोर्चा सबसे ज्यादा चर्चा में है। अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल कई दावेदार रोज दीनदयाल
भवन के चक्कर तो लगा रहे हैं, लेकिन उनकी दाल नहीं गल रही है। किसने एनआरसी और सीएए के विरोध में
काम किया, इसको लेकर अखबारों की कटिंग और सोशल मीडिया के स्क्रीन शॉट खूब चलाए जा रहे हैं। जो इन
आरोपों से बचे हैं वे अपनी सफाई भोपाल तक देकर आ चुके हैं, लेकिन पिछले दिनों दावेदारों को लेकर हुई एक
चाय पार्टी चर्चा में है। बताया जा रहा है कि इसी चाय पार्टी के बहाने पार्टी के एक नेता ने नए समीकरण बना लिए
हैं।
अतिक्रमण को लेकर भाजपा नेताओं में ठनी
जिला प्रशासन ने कनाडिय़ा रोड पर जो अतिक्रमण हटाया है, उसको लेकर भाजपा के एक पूर्व पार्षद और पार्षद
पति में ठनी हुई थी। एक पूर्व एमआईसी सदस्य भी इस बीच में थे और लगातार बड़े नेताओं के माध्यम से
कार्रवाई नहीं होने का दबाव बना रहे थे, लेकिन भाजपा के ही एक पूर्व पार्षद को ये नागवार गुजर रहा था। हालांकि
कई बार पार्षद महाशय को साधा भी गया, लेकिन दूसरे नेताओं को तवज्जो मिलती गई तो उनकी नाराजगी संगठन
तक भी पहुंचा दी गई और संगठन का साथ मिलने के बाद ये कार्रवाई की गई।
पार्टी से महत्वूपर्ण विधायकों के निजी काम
कांग्रेस के धरने में कांग्रेसी विधायकों का नहीं पहुंचना चर्चा का विषय रहा, जबकि दिल्ली से ही इस धरने में सबको
शामिल करने के आदेश हुए थे। जानकारी निकाली गई तो मालूम पड़ा कि शहर के एक विधायक के किसी परम
मित्र का जन्मदिन था और वे इसके लिए शहर से बाहर गए हुए थे तो दूसरे गांव के विधायक ने पहले ही कह
दिया था कि वे 25 और 28 तारीख के आंदोलन में शामिल नहीं हो पाएंगे। इसका कारण उन्होंने नहीं बताया तो
तीसरे विधायक तथा पूर्व मंत्री भी धरने में नहीं पहुंचे। नेताओं और कार्यकर्ताओं में कानाफूसी होने लगी कि एक
तरफ तो ये लोग कांग्रेस को मजबूत करने की बात कहते हैं और दूसरी ओर जब मजबूती दिखाने की बात आती है
तो गायब हो जाते हैं।
कहा जा रहा है कि गणपति प्रतिमा विसर्जन मामले में निगम अधिकारियों ने जो एक्शन अपने ही कर्मचारियों के
खिलाफ लिया, वह हिंदूवादी नेताओं के डर से लिया, ऊपर से संघ प्रमुख मोहन भागवत भी इंदौर में थे। कार्रवाई
नहीं होती तो वे सरकार के निशाने पर आ जाते और फिर किसी बड़े अधिकारी की बलि ही इस मामले को ठंडा कर
पाती।