-सिद्वार्थ शंकर-
अगस्त से पूरे एक महीने के लिए भारत के हाथों में दुनिया की सबसे शक्तिशाली संस्था संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा
परिषद की कमान आ गई है। सोमवार से भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता संभाल चुका है और इस
माह के दौरान यह समुद्री सुरक्षा, शांति स्थापना की कवायद करने और आतंकवाद पर कड़ा प्रहार करने को तैयार
है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर भारत की ताजपोशी से पाकिस्तान को डर सताने
लगा है। आतंकवाद पर कड़ा प्रहार करने की भारत की नियत से डरे पाक ने उम्मीद जताई कि भारत अपने
कार्यकाल के दौरान निष्पक्ष होकर काम करेगा। बता दें कि सुरक्षा परिषद के एक अस्थायी सदस्य के रूप में भारत
का दो साल का कार्यकाल एक जनवरी, 2021 को शुरू हुआ। यह सुरक्षा परिषद के गैर स्थायी सदस्य के तौर पर
2021-22 कार्यकाल के दौरान भारत की पहली अध्यक्षता है। भारत अगले साल दिसंबर में फिर से सुरक्षा परिषद
की अध्यक्षता करेगा।
अपनी अध्यक्षता के दौरान भारत समुद्री सुरक्षा, शांति रक्षा और आतंकवाद को रोकने जैसे विषयों पर ध्यान देगा
तथा इन मुद्दों पर उच्च स्तरीय कार्यक्रमों की अध्यक्षता करेगा और ठोस रणनीति बनाने पर जोर देगा। भारत
परिषद के भीतर और बाहर दोनों जगह आतंकवाद से लडऩे पर जोर देता रहा है। हमने आतंकवाद से लडऩे के
प्रयासों को न केवल मजबूत किया है खासतौर से आतंकवाद के वित्त पोषण को, बल्कि हमने आतंक पर ध्यान को
कमजोर करने की कोशिशों को भी रोका है। भारत अभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का दो साल के लिए अस्थायी
सदस्य है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं-अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, रूस और फ्रांस। स्थायी
सदस्यों को वीटो पावर मिला हुआ है। मतलब पांच स्थायी सदस्यों में से चार सदस्य कोई प्रस्ताव पास कराना
चाहते हैं लेकिन कोई एक सदस्य नहीं चाहता है तो वीटो कर सकता है और वो प्रस्ताव पास नहीं होगा। 10
अस्थायी सदस्यों के पास ये ताकत नहीं है।
भारत की सदस्यता 31 दिसंबर, 2022 को खत्म होगी और इस पूरे कार्यकाल में भारत के पास दो बार अध्यक्षता
आएगी। भारत को सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता तब मिली है, जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो
रही है और तालिबान मजबूत होता जा रहा है। इसके साथ ही पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म
किए दो साल पूरा होने जा रहा है। पाक सरकार के लिए दोनों मुद्दे काफी अहम हैं और ऐसे में भारत के पास
यूएनएससी की अध्यक्षता का जाना, उसे ठीक नहीं लगा होगा। यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्यों में से चीन
हमेशा से उसके साथ रहा है, लेकिन अगस्त महीने में सुरक्षा परिषद की किसी भी बैठक में अध्यक्ष होने के नाते
भारत की अहम भूमिका होगी। ऐसे में अगस्त महीना इस लिहाज से भी अहम है। फिर से कश्मीर का राग अलापते
हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्कता ने आगे कहा कि क्योंकि भारत ने अध्यक्ष का यह पद संभाल लिया है,
इसलिए हम उसे एक बार फिर से यह याद दिलाना चाहते हैं कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के जम्मू-कश्मीर
पर प्रस्तावों को लागू करे। पाकिस्तान का यह डर इसलिए भी है, क्योंकि भारत जब अध्यक्ष पद पर एक महीने के
लिए रहेगा तो उसका कश्मीर को लेकर प्रोपगेंडा काम नहीं कर पाएगा। इसके अलावा, पाकिस्तान के डर की एक
वजह यह भी है कि वह अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करता है, जबकि भारत हमेशा वहां राजनीतिक हल
निकालने की बात करता आया है और शांति का पक्षधर रहा है। ऐसे में पाकिस्तान को डर है कि अफगानिस्तान में
उसकी नापाक कोशिशों को भारत अपने कार्यकाल में पूरा नहीं होने देगा।
अगर अफगानिस्तान को लेकर कुछ भी अहम होता है तो यूएनएससी में भारत की अध्यक्षता मायने रखेगी।
पाकिस्तान भारत को अफगानिस्तान में बाधा की तौर पर देखता आया है। भारत ने अपने एजेंडे में आतंकवाद के
खिलाफ लड़ाई को भी प्रमुखता देने की बात कही है। समुद्री सुरक्षा भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता में शामिल है।
भारत चाहता है कि सुरक्षा परिषद इस मुद्दे गंभीरता दिखाएगी। वहीं शांति सेना के मुद्दे पर बात करते हुए ये
भारत के दिल को हमेशा से ही छूता रहा है। भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना का सदस्य रहा है।
इसलिए भारत की चिंता शांतिरक्षकों की सुरक्षा हिफाजत भी है। भारत चाहता है कि उनकी हिफाजत को भी
प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके लिए उन्हें उत्तम तकनीक हासिल होनी चाहिए और शांतिरक्षकों के साथ होने
वाले अपराधों पर न्याय मिलना चाहिए। एक देश के तौर भारत लंबे समय से आतंकवाद को झेलता रहा है। इस
लिहाज से सुरक्षा परिषद में यह मुद्दा भी काफी अहम भूमिका निभाने वाला है।