यह तब्दीली की तकरीर है

asiakhabar.com | March 4, 2018 | 1:24 pm IST
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रोमांचित है, और दुनिया हैरान। जो कभी देश के मुसलमानों के लिए भी पराया था, आज उसे पूरी इस्लामी दुनिया अपनाने के लिए बेताब है। गुजरात दंगों में राजधर्म के विवाद से लेकर, मुस्लिम आतंक से लड़ते अरब मुल्कों को समर्थन तक, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई पड़ाव पार कर लिए हैं। लहूलुहान मुस्लिम जगत में अमन की पहल अगर उनके नये सफर की शुरुआत भर थी, तो नई दिल्ली के इस्लामी सम्मेलन में कट्टरता के खिलाफ उनका संबोधन मील का एक पत्थर है।यों तो आतंकवाद के खिलाफ भाषण अब दुनिया का दस्तूर बन गया है। लेकिन मोदी ने जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय की मेजबानी और इस्लामी विद्वानों के बीच जो भाषण दिया, वह उनके सबसे प्रभावशाली भाषणों में गिना जाएगा। इसकी कई वजहें हैं। पहली, मोदी ने आतंकवाद को धर्म के बजाय कट्टरवाद से जोड़ा। और इसीलिए सैद्धांतिक रूप से इसे समूची इंसानियत के लिए खतरा बताया। पीएम मोदी ने कहा, ‘‘इंसानियत के खिलाफ दरिंदगी का हमला करने वाले शायद नहीं समझते कि नुकसान उस मजहब का होता है, जिसके लिए खड़े होने का वह दावा करते हैं।’ प्रधानमंत्री ‘‘इस्लामिक हेरिटेज : प्रमोटिंग अंडरस्टैंडिंग एंड मॉडरेशन’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे।इस ऐतिहासिक भाषण को याद रखने की दूसरी वजह है, प्रधानमंत्री की जबान। कहते हैं, बात उसी की जबान में करनी चाहिए, जिससे आप संबोधित हों। मोदी ने यही किया। इस्लामी विद्वानों के बीच उन्हीं की भाषा में बात की। ऐसा संवाद आत्मीयता का अहसास भी कराता है, और सीधा मन में उतर जाता है। कहने की जरूरत नहीं कि मोदी को इस हुनर में महारत हासिल है, और वह देश और दुनिया में अपने फैन्स और फॉलोअर्स बढ़ाकर इसे साबित भी कर चुके हैं। इस्लामिक स्कॉलरों के बीच मोदी ने दुनिया को संदेश दिया कि मजहब का नाम लेकर मजबूत होती कट्टरता को नकारने का वक्त आ चुका है। इसके प्रति कोई भी सहानुभूति मानवता के खिलाफ है। उन्होंने आतंकवाद को तरक्की के खिलाफ बताते हुए दुनिया भर में यही संदेश दिया कि सबको साथ लेकर ही इससे निपटा जा सकता है, और इंसानियत को बचाया जा सकता है। मोदी ने भारत में सूफी-संतों की विरासत से लेकर ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’ तक की परंपरा की र्चचा की।प्रधानमंत्री मोदी की यह खासियत है कि वे अपने बारे में परसेप्शन पर पूरी संजीदगी से काम करते हैं, और कोई नकारात्मक परसेप्शन होता है, तो उसे बदलने के लिए पूरा जोर लगा देते हैं। एक समय था, जब कहा जाता था कि उनके लिए कई देशों के दरवाजे बंद हैं, आज वह समय है जब हर देश उनकी मेजबानी के लिए पलक-पांवड़े बिछाए हुए है। दुनिया के मुस्लिम देशों के बीच आज जितने लोकप्रिय मोदी हैं, उतनी लोकप्रियता शायद ही कभी किसी हिन्दुस्तानी नेता को अरब या दूसरे मुस्लिम देशों में मिली हो।हिन्दुस्तान में भी मुसलमानों के बीच पीएम मोदी की छवि अब तेजी से बदलती दिख रही है। इस्लामी विद्वानों की मौजूदगी में उनका गंभीर भाषण भी इसी की एक कड़ी है। प्रधानमंत्री ने भारतीय धरती के ऐतिहासिक महत्त्व और अंतरराष्ट्रीय सहजीविता में उसकी भूमिका की याद दिलाई। न सिर्फ याद दिलाई, बल्कि कहा कि आज भी हिन्दुस्तान अपनी इस भूमिका का निर्वाह करने को तैयार बैठा है। नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘‘दुनिया भर के मजहब और मत भारत की मिट्टी में पनपे हैं। यहां की आबोहवा में उन्होंने जिदंगी पाई, सांस ली। चाहे वह 2500 साल पहले भगवान बुद्ध हों या पिछली शताब्दी में महात्मा गांधी। अमन और मोहब्बत के पैगाम की खुशबू भारत के चमन से सारी दुनिया में फैली है।’भारत के प्राचीन दर्शन, सूफियों के प्रेम बढ़ाते संदेश और मानवतावाद का स्मरण कराते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि मंदिर में दीया जलाने वाले या फिर मस्जिद में सजदा करने वाले या फिर र्चच में प्रार्थना और गुरद्वारे में सबद गाने वाले किसी भी पीढ़ी में रहे हों, इन्होंने देश को जोड़ने का काम किया है। पीएम मोदी के भाषण में विश्व बन्धुत्व का साफ संदेश था। न कहीं सांप्रदायिक भेदभाव, न कहीं धार्मिंक कट्टरता। यह भाषण उनके बारे में भारतीय मुसलमानों के बीच बनी छवि को तोड़ता है। जॉर्डन के इतिहास से भी पीएम मोदी ने संदेश देने वाले उदाहरण खोज निकाले। उन्होंने कहा कि यहीं से खुदा का पैगाम पैगम्बरों और संतों की आवाज बनकर दुनियाभर में गूंजा है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम युवकों के एक हाथ में कुरआन होना चाहिए तो दूसरे हाथ में कम्प्यूटर। प्रधानमंत्री मोदी के इस विचार को मुस्लिम विद्वानों के बीच जबर्दस्त प्रशंसा मिली।इससे पहले भी पीएम मोदी के प्रयासों से मुस्लिम समाज को शिक्षा और तरक्की से जोड़ने और एक बार में तीन तलाक की प्रथा से मुस्लिम महिलाओं के लिए आजादी की पहल हो चुकी है। पीएम मोदी के इस भाषण को कोई 2019 के आम चुनाव से जोड़ कर देख रहा है, तो कोई इसका मकसद दुनियाभर में अपनी छवि को सुधारने के लिए उनकी कोशिश के तौर पर देख रहा है। भाषणों के मतलब लगाए जाते हैं, लगाए जाते रहेंगे। मगर इस्लामिक स्कॉलरों के बीच खड़े होकर पीएम मोदी अगर मजबूती से अपनी बात कह पाए हैं, तो सिर्फ इसलिए क्योंकि इस दिशा में बीते वर्षो में उनके ठोस प्रयास रहे हैं। उन प्रयासों ने ही उनकी बात में वजन और सुनने वालों में भरोसे का बीज बोया है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में इस बात का भी पूरा ख्याल रखा कि आतंकवाद के खिलाफ बोलने का मतलब किसी मजहब के खिलाफ न लिया जाए। इसलिए पीएम मोदी ने साफ किया,‘‘आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ मुहिम किसी विशेष समुदाय के खिलाफ नहीं है।’यह सच है कि एक समय मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुस्लिम संस्कृति का प्रतीक टोपी पहनने तक से इनकार कर दिया था। मगर अब वह खुद बदल चुके हैं। सऊदी अरब की सबसे बड़ी मस्जिद में जाने का कार्यक्रम भी उन्होंने खुद बनाया। हां, यह जरूर है कि अपनी छवि में बदलाव की कोशिशों के बावजूद अपने अतीत के किसी पल के लिए उन्होंने पश्चाताप नहीं किया है। एक नेता के आत्मविास का इससे बड़ा पैमाना और क्या हो सकता है।पीएम मोदी के भाषण की जितनी अहमियत दुनिया के लिए है, उससे कम अहमियत उनके फॉलोअर्स के लिए नहीं। अब उनके फॉलोअर्स भी समझने के लिए बाध्य होंगे कि ये पीएम मोदी की ही सोच है कि मुस्लिम देश भी अपने यहां मंदिर बनाने के लिए जमीन देने को तैयार हैं। तरक्की और विकास चाहिए तो नफरत की राजनीति को अलविदा कहना होगा। कट्टरवाद चाहे वह इस्लाम में हो, हिन्दुओं में हो, या किसी और धर्म में, उसका विरोध करने की जरूरत है। आज दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते आतंकवाद को खत्म करने के लिए कट्टरवाद से ऊपर उठना जरूरी है।चूंकि आतंकवाद ग्लोबल हो चुका है, इसलिए उसका मुकाबला करने का प्रयास भी ग्लोबल होना चाहिए। कट्टरवाद के खिलाफ मुहिम को आकार देने के लिए ग्लोबल कोशिश की जरूरत होगी। इस लिहाज से भी इस्लामिक स्कॉलरों के बीच जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला की मौजूदगी में दिया गया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह भाषण यादगार रहेगा।


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