शिशिर गुप्ता
महाभारत का एक उपाख्यान है। जब पाण्डव वनवास काल में जंगलों में भटक रहे थे, एक यक्ष ने
युधिष्ठिरजी से कुछ प्रश्न किये थे। उन प्रश्नों में एक प्रश्न था- आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिरजी ने उत्तर
दिया था- हमलोग संसार में प्रतिदिन लोगों को मरते देखते हैं। सभी जानते हैं कि जिनका जन्म होता है,
उनकी मृत्यु निश्चित है। एक दिन हमारी भी मृत्यु होगी ही, लेकिन किसी को इसका भय नहीं होता। इस
बात का डर नहीं कि हमको मरना है, यही सबसे बड़ा आश्चर्य है।
मृत्यु का भय जरूरी
मृत्यु का भय नहीं रहने के कारण ही लोग अनेक तरह के पाप कर्मों को करते हैं। आपस में लड़ाई-
झगड़ा, मारपीट, चोरी- बेईमानी, लीट-हत्या आदि जो कुछ भी होता है, मौत को भूले रहने के कारण ही
होती है। अगर किसी व्यक्ति को ठीक-ठाक जानकारी हो जाये कि कल उसकी मृत्यु हो जायेगी, तो उसे
कुछ भी रुचिकर नहीं लगेगा, वह भोग सामग्री को नहीं चाहेगा, धन-सम्पत्ति के लिए किसी से लड़ने-
झगड़ने नहीं जायेगा, भाई से हिस्सा नहीं मांगेगा, किसी के ऊपर मुकदमा नहीं करेगा। मौत को भूले रहने
के कारण ही सारे पाप कर्म होते हैं। संत कबीर साहब कहते हैं-
निधड़क बैठा नाम बिनु,
चेति न करै पुकार।
यह तन जल का बुदबुदा,
बिनसत नाहिं बार।।
जिस तरह जल के बुलबुले को मिटने में देर नहीं लगती, वैसे ही इस शरीर के विनाश में भी समय नहीं
लगता है। हमें हमेशा ख्याल रखना चाहिए कि हम इस शरीर में, इस घर में अपने परिजनों के साथ सदा
नहीं रह सकेंगे। हमारे पूर्वज चले गये। क्या लेकर गये? कुछ भी नहीं। आज उनकी कोई खबर नहीं है।
संत कबीर साहब ने कहा है-
जो जो गये बहुरि नहिं आये,
पठवत नाहिं संदेश।
जो दुनियां से विदा हो गये, वे लौटकर नहीं आये, उन्होंने कोई संदेश भी नहीं भेजा कि किस हालत में
हैं। हमारी भी ऐसी ही दशा होने वाली है। इसलिए मौत को हमेशा याद रखो और ईश्वर को कभी मत
भूलो। परमात्मा सर्वव्यापक हैं, हमारे अच्छे-बुरे कर्मों को वे देख रहे हैं। उनसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है।
संसार में तुम सबकी नजरें बचाकर पाप करते हो और झूठी गवाहियों से दंड पाने से बच जाते हो, लेकिन
सर्वद्रष्टा ईश्वर के यहां झूठी गवाही नहीं चलती। उन्हें गवाहियों की आवश्यकता ही नहीं है।
ईश्वर है सर्वद्रष्टा
एक आचार्य थे। व कुछ छात्रों को पढ़ाते थे। अध्यापन के दौरान वे अपने छात्रों को यह भी बतलाते थे
कि परमात्मा सर्वव्यापक हैं, वे प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों को देखते हैं और उसे उसके कर्मों का फल देते हैं।
जब पढ़ाई पूरी हुई तो आचार्य ने सोचा कि मैंने अपने छात्रों को जो शिक्षा दी, उसकी परीक्षा भी होनी
चाहिए। उन्होंने अपने छात्रों को बुलाकर कहा- तुमलोगों की पढ़ाई समाप्त हो गयी है। अब तुमलोगों को
अपने-अपने घर जाना है, लेकिन जाने से पहले दक्षिणा देकर जाओ। तुमलोग अपने घरों से कोई एक
चीज छिपाकर ले आओ, इस तरह कि कोई उसे देख न सके। आचार्य की आज्ञा पाकर छात्र अपने-अपने
घर गये और एक-एक चीज छिपाकर ले आये, किन्तु उनका एक छात्र अपने साथ कुछ भी नहीं लाया।
आचार्य ने पूछा- क्या तुम्हारे घर में कुछ भी नहीं था? छात्र बोला- गुरुदेव! था तो बहुत कुछ, परन्तु
आपका आदेश था कि छिपाकर लाना। मैं छिपाकर लाना चाहता था, किन्तु आपका उपदेश याद आ गया
कि ईश्वर सब जगह हैं, वे सबके कर्मों को देख रहे हैं। इसीलिए मैं खाली हाथ आ गया हूं। आप मुझे
क्षमा करें गुरुदेव! मैं आपकी आज्ञा का पालन नहीं कर सका। आचार्य ने कहा- वत्स! केवल तुम्हीं मेरे
एक मात्र सच्चे शिष्य हो जिसने मेरे आदेश-उपदेश को समझा और अपने आचरण में उतारा। मैं परम
प्रसन्न हूं।
जो हमेशा मृत्यु को याद रखेंगे और उस छात्र की तरह परमात्मा की सर्वव्यापकता का विश्वास करेंगे,
उनसे कभी अधर्म नहीं होगा, पाप कर्म नहीं होगा। कर्म ही तो फल देता है। जैसा लोग धर्म करते हैं,
उसी का फल उन्हें मिलता है।
काहु न कोउसुख दुःख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सुनु भ्राता।।
कोई किसी को सुख अथवा दुःख देनेवाला नहीं है। अगर आज कोई सुख में है तो यह उसके पूर्व जीवन
के पुण्य कर्मों का फल है और अगर वह कोई दुःख में है तो यह भी उसके पूर्व जीवन के अधर्मों का
प्रतिफल है। अपने ही कर्मों का फल भोगना पड़ता है।
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा।
जो इस करहिं सो तस फल चाखा।।