मुद्दा गरम, भय या भरम

asiakhabar.com | December 20, 2019 | 4:08 pm IST
View Details

विनय गुप्ता

वाह रे राजनीति तेरे रूप अनेक, यह एक ऐसी पहेली है जिसे समझने के लिए किसी भी प्रकार का सूत्र नहीं है
जिसके माध्यम से समझा,परखा एवं मापा जा सके। राजनीति एक ऐसी प्रयोगशाला है जिसके सभी सूत्र अलिखित
एवं अघोषित होते हैं। बस इंतेज़ार होता है समीकरण का जब जहाँ भी जिसे भी मात्र वोट बैंक साधने का अवसर
प्राप्त हो जाता है वह बिना समय गँवाए तत्काल अपने समीकरण के अनुसार चाल चलनी आरंभ कर देता है।
राजनीति के सूत्र की यही वास्तविकता एवं सत्यता है। देश के नेताओं का यह रवैया अत्यंत चिंताजनक एवं चिंतन
योग्य है जिसको देखकर देश की जनता पूर्ण रूप से विचलित हो उठती है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या देश के
अंदर चुनाव अब मात्र सरकार बनाने एवं बिगाड़ने की दिशा में गतिमान हो चला है…? क्या देश का चुनाव अब
सभी जिम्मेदारियों से भटककर अब मात्र कुर्सी के इर्द-गिर्द घूमने की दिशा में चल पड़ा है…? यदि यह सत्य है तो
यह देश के लिए अत्यंत घातक साबित हो सकता है क्योंकि, देश की दिशा एवं दशा तथा भौगोलिक स्थिति एवं
परिस्थिति इसके ठीक उलट है। यदि सत्ता सुख भोगने की लालसा देश के राजनेताओं के हृदय में विराजमान हो
जाएगी तो देश का नुकसान होना तय है। सत्य यह है कि हमारा संविधान लिखित है जिसके अनुसार ही देश की
सभी व्यवस्थाओं का संचालन होता है। देश का संविधान यह कहता है कि देश का संचालन चुनी हुई सरकार के
हाँथों में ही होगा। चुनी हुई सरकार ही देश की सभी व्यवस्थाओं का संचालन करेगी, और आवश्यक्ता पड़ने पर
नियम और कानून में भी संशोधन करने की क्षमता रखती है। जिसका मुख्य आधार बहुमत है। चुनी हुई सरकार
अपनी बहुमत के अनुसार देश की कुछ व्यवस्थाओं में संशोधन कर सकती है। लेकिन ऐसा करना देशहित, जनहित
एवं समाजहित में होना चाहिए। सरकारों के द्वारा संविधान में संशोधन करने की व्यवस्था समय-समय पर देखने
को मिलती रही है। जिसका सदैव ही कहीं स्वागत तो कहीं विरोध होता रहा है। संविधान के अनुच्छेद इस बात को
स्पष्ट करते हैं कि कब और किस सरकार के द्वारा किस आर्टिकल में क्या जोड़ा गया और क्या हटाया गया।
चिंता का विषय यह है कि जिस संविधान का निर्माण बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने अपने कुछ चुनिंदा सदस्यों
को साथ लेकर मूलभूत ढ़ाँचे के रूप में आकार दिय़ा था उसका क्या उद्देश्य था। क्या यह सत्य नहीं कि बाबा
साहब ने देश के संविधान का ढ़ाँचा इस प्रकार से खड़ा किया कि देश के सभी प्राणी इस संविधान के अन्तर्गत
अपने अधिकारों को प्राप्त करके सह-सम्मान जीवन-यापन कर सकें। क्या यह सत्य नहीं कि किसी भी व्यक्ति को
संविधान के अन्तर्गत उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण कृत्य यह है कि जब
संविधान की आड़ में रची हुई साज़िशें अपने चेहरों को बदलकर मुखौटा पहनकर सत्ता के रास्ते देश के सिंहासन पर
विराजमान हो जाती हैं तो वह अपने हितों को साधते हुए कार्य करना आरंभ कर देती हैं। जिसका सर्व सामाज से
कोई लेना देना नहीं होता। यदि लेना-देना होता है तो मात्र सत्ता की चाभी से। अतः सत्ता की लालसा में लिए गए
फैसले देश के हित में कम और जनाधार के हित में अधिक होते हैं। जिसका वोट बैंक को इकट्ठा करने पर पूरा
फोकस होता है। जोकि चुनाव में जीत को सुनिश्चित करने की भूमिका तैयार करता है।
इसके ठीक उलट कभी-कभी ऐसा भी देखा गया कि सरकार यदि किसी भी प्रकार का फैसला लेने का प्रयास करती
है तो विपक्ष उसका दुष्प्रचार करके देश की जनता को भयभीत करने का भरसक प्रयास भी करता है जिससे कि देश
की सत्ता में विपक्ष की भूमिका में बैठी हुई सियासी पार्टी सत्ता के सिंहासन तक आ सके। यदि देश की सरकार
किसी भी दूरगामी परिणाम को ध्यान में रखते हुए कोई भी कार्य करने का प्रयास करती है तो विपक्ष जनता के
बीच सरकार की छवि को क्षति पहुँचाने का भरसक प्रयास भी करता है। क्योंकि देश की भोली-भीली जनता उन
मुद्दों से अनभिग्य एवं अनजान होती है। बस जनता के उसी भोलेपन का फायदा उठाकर विपक्ष अपनी सियासी

रोटियों को सेंकने का भरसक प्रयास करता है। देश की भोली-भाली जनता नेताओं के झाँसे में आकर वास्तविकता
का आँकलन नहीं कर पाती और नेताओं के षड़यन्त्रों का पूर्ण रूप से शिकार हो जाती है।
आज देश के अधिकतर क्षेत्रों में भारी विरोध एवं प्रदर्शन हो रहा है। जिसमें देश के लोग सड़कों पर आकर भारी
विरोध एवं प्रदर्शन दर्ज करा रहे हैं। देश का युवा भी इस विराध का मुख्य हिस्सा बन चुका है। इस विरोध का मुख्य
कारण सरकार के द्वारा लाया गया एक प्रस्ताव है जोकि संविधान के अनुसार बहुमत होने की दशा में पूर्ण रूप से
पास हो चुका है। जिसे नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़न तथा सिटीज़न अमेनमेंट बिल कहते हैं। सरकार ने इस
नियम के अनुसार देश की नागरिकता को एक नया आधार देने के क्षेत्र में कार्य किया है। जिसमें भारत के सभी
व्यक्तियों को इस मानक के आधार पर ही अपनी नागरिकता को सिद्ध करना पड़ेगा। दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा यह
है कि नागरिकता प्रदान करने का। इस बिल के आधार पर बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से आए हुए सभी
वैध एवं अवैध व्यक्तियों को शरणार्थी मानते हुए धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर भारत में शरण प्रदान कर दी
जाएगी। जिसमें स्पष्ट रूप से मुस्लिम वर्ग को छोड़कर सभी अन्य को नागरिकता प्रदान कर दी जाएगी। खीँची गई
सीमा रेखा के अनुसार जिसमें पारसियों के साथ-साथ ईसाई भी सम्मिलित किए गए हैं। जबकि, ईसाई देशों की
संख्या विश्व में काफी अधिक है साथ ही ईसाई देश दुनिया के मानचित्र पर काफी शक्तिशाली एवं प्रभावशाली हैं
फिर भी यह कानून ईसाईयों को भी मजबूर एवं लचर समझकर भारत में उनको नागरिकता प्रदान करके अपना
नागरिक बनाने की होड़ में लगा हुआ है।
अतः देश में सरकार के इस नए कानून का विरोध हो रहा है जिसका रूप देश के कोने-कोने में दिखाई दे रहा है।
लेकिन खास बात यह है देश की सियासत भी इससे अछूती कैसी रह सकती है। नेताओं को देश की जनता के इस
विरोध की आड़ में अपनी खोई हुई कुर्सी को पुनः प्राप्त करने की नई उम्मीद जाग गई है। जिसका सियासी योद्धा
भरपूर लाभ उठाने की जुगत में लगे हुए हैं। जनता के दुखः दर्दों का किसी से भी कोई लेना देना नहीं है। सत्ता की
लालसा देश को किस ओर ले जाने की जुगत में लगी हुई है इसको बखूबी देखा जा सकता है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *