संयोग गुप्ता
इतिहास में पहली बार कोरोना वायरस के चलते विश्व के सामने सबसे बड़ा संकट छाया हुआ है। जब तक इस
लाईलाज महामारी का कोई सटीक ईलाज नहीं निकल आता तब तक स्वयं को इस महामारी से बचाए रखना ही
सबसे बड़ा सुरक्षा कवच समझा जा रहा है। यही वजह है कि कोरोना प्रभावित दुनिया के अधिकांश देश इस समय
तालाबन्दी या सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात एक दूसरे से पर्याप्त दूरी बनाकर रखने पर अधिक ज़ोर दे रहे हैं। इतिहास
में पहली बार भारत सहित विश्व के कई देशों में, अर्थव्यवस्था को तोड़ कर रख देने वाले लॉकडाउन जैसे सख़्त
क़दम इसी मक़सद के तहत उठाये गये हैं। सवाल यह है कि जब देश की सरकारें देश की अर्थव्यवस्था से अधिक
महत्व देशवासियों के जीवन की रक्षा को दे रही हों, ऐसे में यदि कुछ लोग या कोई संगठन अथवा कोई समूह
सरकार की सोशल डिस्टेंसिंग या लॉकडाउन की नीति की धज्जियाँ उड़ाए और इन्हें धत्ता बताते हुए धर्म के नाम पर
भीड़ इकट्ठी करे, जलसा, जुलूस निकाले अथवा सड़कों पर सामूहिक रूप से उतर कर नाच गाना, हुल्लड़ बाज़ी करे
या आतिशबाज़ी चलाए अथवा उत्सव मनाये तो समाज के ऐसे लोग निश्चित रूप से माफ़ी के क़तई हक़दार नहीं हैं।
परन्तु दुर्भाग्यवश सोशल डिस्टेंसिंग की अवहेलना का सिलसिला बदस्तूर जारी है। ऐसा प्रतीत होता है कि
जानबूझकर कुछ लोग जो स्वयं को तथाकथित धार्मिक, राष्ट्रवादी यहाँ तक कि भाजपा के कार्यकर्त्ता व मोदी
समर्थक होने का ढोंग करते हैं वे भी लॉक डाउन की धज्जियाँ उड़ाने में व्यस्त हैं। पिछले दिनों दिल्ली स्थित
निज़ामुद्दीन जैसी अत्यंत भीड़-भाड़ वाली जगह से बड़ी संख्या में जमाअत के सदस्य पाए गए। ख़बरों केअनुसार
इनमें दर्जनों जमाअती विदेशी नागरिक थे और इनमें से कई कोरोना पॉज़िटिव भी बताए जा रहे हैं। इनमें कई लोगों
के कोरोना के कारण मरने की भी ख़बर है। देश के विभिन्न धर्मों के और भी कई धर्मस्थलों से इसी तरह की भीड़
इकट्ठी होने की ख़बरें मिलीं। ऐसे अधिकांश स्थानों से जुड़े ज़िम्मेदारों का कहना है कि चूँकि यह लोग लॉक डाउन
की घोषणा से पहले से यहाँ आए हुए थे और
लॉक डाउन की घोषणाके बाद अपने अपने गंतव्यों तक नहीं जा सके इसलिए यहाँ पनाह लेने के सिवा इनके पास
कोई चारा भी नहीं था। इनमें जमाअत के ज़िम्मेदार लोगों का कहना है कि उन्होंने लॉक डाउन की घोषणा के बाद
दिल्ली के कई संबंधित अधिकारियों को पूरी स्थिति से लिखित रूप से अवगत कराते हुए मरकज़ में रह रहे लोगों
की जानकारी भी दी थी तथा इन्हें यहाँ से निकालने के लिए बसों की भी मांग की थी। परन्तु दिल्ली सरकार की
तरफ़ से कोई सहायता नहीं की गयी। परिणाम स्वरूप इस प्रशासनिक अनदेखी ने महामारी को और अधिक हवा देने
का काम किया। अब यह ग़लती जमाअत प्रमुख की है या दिल्ली के अधिकारियों की, निश्चित रूप से यह जांच का
विषय है। परन्तु यह तो तय है कि इस लापरवाही ने मानवता को भरी क्षति पहुंचाई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बीच दो बार देश की जनता को संबोधित भी किया। सर्वप्रथम उन्होंने 22 मार्च को
देश में जनता-कर्फ़्यू लगाए जाने की घोषणा की तथा जनता से आह्वान किया कि उसी दिन 5 बजे सायंकाल अपने
घर के दरवाज़े पर या बालकनी-खिड़कियों के सामने खड़े होकर पांच मिनट तक ताली या थाली बजा कर उन लोगों
के प्रति कृतज्ञता जताएं, जो हमें कोरोना से बचाने में लगे हैं। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि इस वैश्विक महामारी
का मुक़ाबला करने के लिए दो बातों की आवश्यकता है, पहला संकल्प और दूसरा संयम। परन्तु 22 मार्च को 5
बजे शाम जब प्रधानमंत्री के आवाह्न पर देश 5 मिनट ताली व थाली बजा चुका उसके बाद देश में अनेक स्थानों
पर यही ताली व थाली पीटने वाले लोग जुलूसों के शक्ल में ताली, थाली, घंटी, घंटा व शंख आदि बजाते हुए
सड़कों पर उतर आए। बेशक यह लोग मोदी की जयजयकार कर रहे थे परन्तु इन्होंने प्रधानमंत्री के कहने के
विपरीत अपना संयम भी खोया और जनता कर्फ़्यू का उल्लंघन भी किया और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ भी
उड़ाईं।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर 5 अप्रैल को देशवासियों से रात नौ बजे नौ मिनट के लिए दीया,
टॉर्च या मोबाइल की फ़्लैश लाइट जलाने का आग्रह किया। पीएम मोदी की इस अपील को भी देश का समर्थन
मिला। परन्तु प्रधानमंत्री ने तो 9 मिनट के लिए केवल दीया, टॉर्च या मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाने का आग्रह
किया था। परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर इन नौ मिनटों के दौरान और 9 मिनट के बाद जो कुछ देखने को मिला वह
बेहद शर्मनाक और प्रधानमंत्री के आवाह्न की पूरी तरह से धज्जियाँ उड़ने वाला दृश्य था। देश के कई इलाक़ों में
इस दौरान जयश्री राम के नारे लगाए गए और बड़े अतिशबाज़ियाँ जलाकर प्रदूषण फैलाया गया। यह किसी की
समझ में नहीं आया कि आतिशबाज़ी चलाकर स्वयं को मोदी समर्थक बताने व जताने वालों ने इस महामारी का
स्वागत किया या इससे होने वाली विश्वव्यापी मानवीय क्षति पर जश्न या उत्सव मनाया। कई जगह गोलियां
फ़ायरिंग कर न जाने क्या सन्देश दिया गया। प्रधानमंत्री के द्वीप जलने का अर्थ यदि अंधकार को चुनौती देना था
तो आतिशबाज़ी और गोलियां चलाने का अर्थ क्या था? वह भी जुलूस की शक्ल में जोकि सरे आम लॉक डाऊन व
सोशल डिस्टेंसिंग की अवहेलना थी? इस संबंध में एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि लॉक डाउन के दौरान
इतनी बड़ी मात्रा में पूरे देश में आतिशबाज़ी की व्यवस्था कैसे और कहाँ से की गयी?
5 अप्रैल को ही पटना में इसी आतिशबाजी जश्न के दौरान एक डेयरी में भीषण आग लग गयी। कई बेज़ुबान गाएं
व भैंसें इस आग की चपेट में आ गईं। कई बेज़ुबान मवेशी बुरी तरह झुलस गए। आग की लपटें पूरी डेयरी को
स्वाहा कर आस पास के घरों को भी लीलने वाली थीं कि आस-पास के घरों को ख़ाली करवाया गया तथा दमकल
की गाड़ियों ने घटनास्थल पर पहुंचकर देर रात आग पर क़ाबू पाया। ज़रा सोचिये स्वयं को सत्ता व मोदी समर्थक
बताने वाले यह लोग जो हज़ारों की तादाद में इकठ्ठा होकर हुड़दंग मचा रहे थे और 'लॉक डाउन' की धज्जियाँ उड़ा
रहे थे इनका अपराध क्या किसी से कम है? इसी तरह कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा पार्टी के एक
विधान पार्षद के यहाँ आयोजित एक विवाह समारोह में शरीक हुए, जहां कम से कम 2 हज़ार मेहमान हिस्सा ले
रहे थे। कोरोना महामारी के मद्देनज़र कर्नाटक सरकार में भी लॉक डाउन है तथा राज्य सरकार ने अधिक संख्या में
लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। जब मुख्यमंत्री स्वयं अपने ही आदेश का उल्लंघन करेंगे तो वह
जनता से लॉक डाउनपर अमल करने की उम्मीद कैसे करेंगे? महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले में भी भाजपा के एक
विधायक दादाराव केचे ने लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करते हुए गत 5 अप्रैल को अपना जन्मदिन मनाया।
इस अवसर पर विधायक ने सैकड़ों लोगों को अपने घर पर इकठ्ठा किया। लॉक डाउन व सोशल डिस्टेंसिंग की
धज्जियाँ उड़ाने वाले चाहे वे किसी भी धर्म या संगठन अथवा विचारधारा के हों दरअसल वे सभी मानवता के
दुश्मन हैं।और इन सभी के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जानी चाहिए।