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गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
प्रत्येक शाम को हम कुछ अवकाश प्राप्त ( भले ही नौकरी से हो या व्यवसाय से ) दोस्त पार्क में बैठ राजनीति वाले विषय से हट किसी भी प्रकार के अन्य विषय पर आपस में चर्चा कर लेते हैं। इसी क्रम में एक शाम हम कुछ दोस्त पार्क में बैठ गपशप कर रहे थे जहाँ पार्क के बीच बच्चे खेल भी रहे थे।इसी बीच मेरा पोता अपने कुछ दोस्तों के साथ आकर मुझ से पूछा कि दादाजी ‘अगर यह पृथ्वी न होती’ तो क्या होता। इतना सुनने के बाद वहाँ उपस्थित सभी बच्चों को मैंने समझाते हुये कहा – चूँकि हम धरा को माता मानते हैं इसलिये तुमलोगों का यह प्रश्न ‘ अगर पृथ्वी नहीं होती तो’ बेईमानी वाला माना जायेगा ।
फिर उन सभी को समझाते हुये कहा – यदि धरती न होती तो हम होते ही नहीं, तब फिर यह सब बातें उठती ही नहीं ।
इसलिये आज हम जो कुछ भी हैं वह एक उस माता की कृपा से हैं जिसने अनेकों कष्ट सहन कर हमें जन्म दिया और दुसरी यह धरती माता है जो हमें बाकी सब कुछ अर्थात सभी कुछ दे रही है।जबकि हम इस धरती माता के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कर रहे हैं अर्थात सभी मिलकर ऐसा दोहन कर रहे हैं जिससे संतुलन बिगड़ रहा है जो किसी भी हालात में शोभनीय नहीं माना जा सकता।
इसलिये आवश्यकता है यह सोचने की है कि हमारी क्या हालत होती यदि ‘ अगर पृथ्वी नहीं होती तो’। इसलिये अभी भी समय है कि हम अपनी आवश्यकताओं पर अंकुश लगा के रखें ताकि यह धरा हरी भरी रहे और यह स्वतः जो हमें दे उसी पर सन्तोष करना सीखें।
इसके साथ उपरोक्त तथ्य को हम ज्यादा से ज्यादा प्रचारित करें, सभी को प्रेरित भी करें ताकि अपनी धरती माता के प्रति हम सब अपना दायित्व समझें ही नहीं बल्कि उन दायित्वों की स्वयं तो पालना करें ही औरों से भी करवायें।
ध्यान रखें सामूहिक प्रयास का नतीजा हमेशा न केवल सुखदायी होता है बल्कि लम्बे समय तक प्रभावी भी रहता है।