‘महाराज’ की बगावत

asiakhabar.com | March 13, 2020 | 1:13 pm IST
View Details

कांग्रेस और कमलनाथ के लिए होली बेहद मनहूस साबित हुई। रंग में भंग ऐसा पड़ा कि मध्य प्रदेश में पार्टी दोफाड़
हो गई और सरकार ‘अनाथ’ होने के कगार पर है। यह घटनाक्रम अचानक ही सामने नहीं आया है। यह तनाव और
टकराव तभी से दपदपा रहा था, जब कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया और ज्योतिरादित्य
सिंधिया रेस में ‘बूढ़े’ दिग्विजय सिंह से भी पिछड़ गए थे। विधानसभा में कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी बनाने में
सिंधिया का भी बराबर का योगदान था, यह पार्टी के 22 विधायकों के इस्तीफों से ही स्पष्ट है। यह आंकड़ा 26-
30 तक भी पहुंच सकता है। सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को प्राथमिक सदस्यता से जो इस्तीफा भेजा
था, उसमें भी स्पष्ट है कि वह बीते एक साल से पार्टी में दरकिनार महसूस कर रहे थे। ऐसे में उन्होंने केंद्रीय मंत्री
नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा विधायक नरोत्तम मिश्रा के साथ लगातार विमर्श कर रणनीति तय की, जिसका
फलितार्थ सामने है। यह प्रकरण सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष न बनाने और राज्यसभा का प्रथम वरीयता का
उम्मीदवार तय न करने तक ही सीमित नहीं है। सिर्फ इतनी सी बात पर कोई भी नेता ऐसी बगावत नहीं करता
कि पार्टी ही छोड़ दे और साथ में 22 विधायकों के भी इस्तीफे करवा दे। दरअसल कांग्रेस में यह बुजुर्ग बनाम युवा
नेताओं के द्वंद्व का नतीजा है। पार्टी की सर्वोच्च इकाई कांग्रेस कार्यसमिति में सिर्फ राहुल गांधी को छोड़ कर शेष
नेता 70-75 साल की उम्र से ज्यादा के हैं। उनकी राजनीति कांग्रेस को ही डुबोने में जुटी है। कांग्रेस निर्णायक
स्तर पर बूढ़ों की पार्टी बनकर रह गई है। कांग्रेस आत्महंता की स्थिति में है। कुलदीप बिश्नोई सरीखे कई युवा

नेताओं के बयान कांग्रेस की नींद तोड़ने में असरकारक साबित हो सकते हैं, यदि पार्टी का फोकस युवाओं पर केंद्रित
हो। ऐसे कई नेताओं का मानना है कि सिंधिया का पार्टी छोड़ना बहुत बड़ा धक्का है। ऐसा लोकसभा में कांग्रेस
संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी का भी कहना है। होली के पर्व पर यह उठापटक मध्य प्रदेश की कमलनाथ
सरकार का लगभग ‘तख्तापलट’ ही है, क्योंकि विधायकों के इस्तीफे औपचारिक तौर पर स्वीकार करने में कुछ दिन
लग सकते हैं। स्पीकर लटकाने की कोशिश भी कर सकते हैं, लेकिन ऐसी संवैधानिक हदों की भी एक सीमा है।
राज्यपाल सदन में बहुमत साबित करने को कह सकते हैं। राज्यपाल लालजी टंडन 12 मार्च के बाद ही भोपाल
पहुंचेंगे। इधर दिल्ली में सिंधिया की प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ करीब एक घंटे की मुलाकात
में तमाम मुद्दे तय हो गए होंगे! सिंधिया ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात कर ली है। अब सिंधिया
का भाजपा की सदस्यता लेना महज एक औपचारिकता है। भाजपा को मध्य प्रदेश में एक बड़ा प्रभावशाली, फायर
ब्रांड, आकर्षक, स्वीकार्य और युवा नेता मिलेगा। नतीजतन ग्वालियर, गुना, भिंड, मुरैना के चुनाव क्षेत्रों में भाजपा
के वर्चस्व का विस्तार भी होगा। एक तरह से यह ज्योतिरादित्य की घर-वापसी ही है। उनकी दादी राजमाता विजया
राजे सिंधिया जनसंघ के बाद भाजपा के संस्थापक नेताओं में शामिल थीं। उनकी दो बेटियां-वसुंधरा और यशोधरा-
भाजपा की नेता हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह चार बार के भाजपा सांसद हैं और
अब ज्योतिरादित्य का अध्याय शुरू होगा। वह राज्यसभा में भेजे जाएं और मोदी कैबिनेट का भी हिस्सा बनें, इनका
विश्लेषण तभी किया जाएगा, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को माथा पीटते रहना चाहिए, जिसने ममता बनर्जी,
जगनमोहन रेड्डी और हिमंत बिस्व सरमा सरीखे युवा नेताओं को खोया और पार्टी से बाहर जाने दिया। अब मिलिंद
देवड़ा, जितिन प्रसाद और सचिन पायलट आदि की बारी हो सकती है, लिहाजा मध्य प्रदेश तो अभी झांकी है।
दरअसल कांग्रेस छोटे-छोटे खेलों में लगी है। मध्य प्रदेश के रूप में वह एक बड़ा राज्य खो रही है। पार्टी में कोई
नया विचार नहीं, नए नेता नहीं, नए चुनाव नहीं और सुदृढ संगठन नहीं है। सिर्फ गांधी परिवार और उसका सामंती
अहंकार है। तो फिर पार्टी आगे कैसे बढ़ेगी? कांग्रेस धीरे-धीरे समर्थन देने वाला एक क्षेत्रीय दल बनता जा रहा है।
सवाल यह भी हो सकता है कि आज संकट की इस घड़ी में राहुल गांधी कहां हैं? सिंधिया उनके परमप्रिय मित्रों में
रहे हैं। वह उनकी नाराजगी शांत कर सकते थे, लेकिन पार्टी में कौन, किसकी परवाह करता है? भूल जाइए, यह
गांधी-नेहरू-पटेल वाली कांग्रेस नहीं है।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *