-डॉ. भरत मिश्र प्राची-
जब से आप ने दिल्ली विधान सभा के बाद पंजाब विधान सभा पर अपना कब्जा जमाया तब से वह ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गई। पंजाब में आप का आना कांग्रेस की गलत राजनीतिक फैसले के चलते संभव हो पाया जिसे वो अपने आप को कांग्रेस का विकल्प समझने लगी। देश में होने वाले हर विधान सभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने लगी। पंजाब की तरह और राज्यों के विधान सभा चुनाव में उसे राजनीतिक लाभ तो नहीं मिला पर कांग्रेस को नुकसान अवश्य हुआ। जिसके चलते आप एवं कांग्रेस के बीच की दूरी बढ़ती ही गई। अघ्यादेश के मामले में आप नेता कांग्रेस से मिलीभगत होने तक की बात करने लगे जब कि सपने में भी कांग्रेस भाजपा का साथ संभव नहीं।
दिल्ली के उपराज्यपाल एवं दिल्ली सरकार के बीच चल रही ठनाठनी मामले को लेकर दिल्ली सरकार के पक्ष में आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केन्द्र सरकार द्वारा अभी लाये अघ्यादेश जिसे राज्य सभा में पारित होना है, आप सभी विपक्षी दलों के समर्थन से रोकना चाह रही है जिस मामले पर आप को फिलहाल कांग्रेस को छोड़ अधिकांश विपक्षी दलों का समर्थन मिल गया है। काग्रेस के समर्थन बिना इस अध्यादेश को रोक पाना कतई संभव नहीं इस बात को आप अच्छी तरह जानती है। यह भी साफ है कि अध्यादेश के मसले पर कांग्रेस कभी भी सत्ता पक्ष का समर्थन नहीं करेगी पर आप को विश्वास नहीं।
इस तरह के उभरे परिवेश में आप मुख्यमंत्री आवास पटना बिहार में आम चुनाव 2024 में भाजपा के खिलाफ एक जूट होकर चुनाव लड़ने की विचारधारा को लेकर बुलाई गई विपक्षी एकता की बैठक में शामिल तो हो गई पर अघ्यादेश के मुद्दे पर विदक भी गई जहां कांग्रेस ने साफ तौर पर अघ्यादेश के मसले पर समय आने पर उचित निर्णय लेने की बात कह आप की इस मांग को फिलहाल ठुकरा दिया। इसका मतलब कतई यह नहीं कि वह भाजपा का साथ दे रही है। इस मामले पर आप एवं काग्रेस में अनर्गल बहसबाजी भी हो गई जहां भाजपा से सांठगाठ होने का एक दूसरे पर आरोप भी उभरकर सामने आया। बैठक में अन्य दलों ने भी आप को समझाने की भरपूर कोशिश की कि यह अवसर फिलहाल इस तरह की चर्चा का नहीं है। जिस मकसद से बैठक बलाई गई है, फिलहाल उसी पर चर्चा किया जाना प्रासंगिक होगा पर आप अध्यादेश के मसले को लेकर इस बैठक में ही समाधान चाह रही थी। ऐसा नहीं होने से प्रेस वार्ता से अपने को अलग रखकर वह अपनी नराजगी उजागर कर गई। ऐसा लगता है कि इस बैठक में वह केवल अध्यादेश के मसले पर विरोध जताने वाले निर्णय को लेकर शामिल हुई थी। आज भी आप इस बात पर अड़ी नजर आ रही है जहां विपक्षी एकता की शिमला में होले वाली बैठक से पूर्व अध्यादेश पर कांग्रेस द्वारा सार्वजनिक तौर पर अपना रूख स्पष्ट करने की बात कर बैठक में शामिल होने के स्थिति को असमंजस में डाल दिया है। शिमला बैठक से पूर्व कांग्रेस अध्यादेश के मसले पर अपनी राय दे पाये ऐसा नहीं लगता जैसा आप चाहती है जिससे आप का शिमला विपक्षी एकता की बैठक में शामिल हो पाना संभव नहीं लगता।
लोकसभा चुनाव से पूर्व कई राज्यों के विधानसभा चुनाव होने है जहां राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। आप इन राज्यों में अपना सर्वाधिक प्रत्याशी उतारने की रणनीति बना चुकी है। इन राज्यों में वह कांग्रेस का विकल्प बनने का सपना देख रही है पर पंजाब की तरह यहां कतई संभव नहीं। कांग्रेस को नुकसान अवश्य पहुंचा सकती है। इस तरह के परिवेश विपक्षी एकता के मार्ग में रोड़े बन सकते।