विनय गुप्ता
भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाला सबसे विवादित व प्राचीन राम जन्मभूमि ज़मीनी विवाद
संबंधी मुक़ददमा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 9 नवंबर 2019 को निपटाए जाने के बाद देश की जनता ने
आख़िरकार राहत भरी सांस ली। अन्य भारतीय मुक़द्दमों की तरह यह विवाद भी कई दशक से विभिन्न अदालतों
में लंबित था। उधर मंदिर मस्जिद विवाद पर रोटियाँ सेंकने वाले राजनैतिक दलों की इस विवाद को लेकर 'पौ
बारह' थी। अपने अपने नफ़े नुक़्सान के एतबार से राजनैतिक दल इस विवाद को लेकर सरे आम जनता को
भड़काने, उपद्रव फैलाने यहाँ तक कि दंगे फ़साद कराने तक में लगे हुए थे। निश्चित रूप से किसी न किसी रूप में
अब तक हज़ारों लोग इस विवाद की भेंट चढ़ चुके होंगे। परन्तु गत वर्ष दोनों ही पक्षकारों ने माननीय सर्वोच्च
न्यायलय से इस विवाद का निपटारा युद्ध स्तर पर करने की संयुक्त अपील की जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय की
5 सदस्यीय पीठ ने लगातार चालीस दिनों तक इस मामले की सुनवाई की। और तक़रीबन 200 घंटे की सुनवाई
में जो 5 माननीय न्यायाधीश शामिल हुए वे थे, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजन गोगोई, जस्टिस शरद
अरविन्द बोबडे, जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण तथा जस्टिस अब्दुल नज़ीर। इनमें तत्कालीन
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजन गोगोई जिन्होंने भारत के 46 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में 13 महीनों तक
अपनी सेवाएं दीं, को पद से अवकाश के बाद राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा 16 मार्च 2019 को राज्य सभा
सदस्य के पद से नवाज़ा गया जबकि पीठ के दूसरे सदस्य जस्टिस शरद अरविन्द बोबडे को 18 नवंबर 2019 को
देश के नए मुख्य न्यायाधीश का पद सौंपा गया।
बहरहाल इस विवाद ने अनेक लोगों को नेता, मंत्री, मुख्य मंत्री व प्रधानमंत्री तक बना दिया। कितने ही अयोग्य
लोग धर्म के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने में सफल हुए। दशकों तक देश में सांप्रदायिक विभाजन की आग
दहकाई गयी। यहाँ तक कि इसी विवाद ने 6 दिसंबर का वह दिन भी देखा जबकि अदालत के इसी विचाराधीन व
लंबित मुक़द्दमे की सुनवाई के दौरान ही विवादित ढांचे को बल पूर्वक ध्वस्त कर दिया गया। यह भी अजीब
इत्तेफ़ाक़ है कि 6 दिसंबर की घटना का मुक़ददमा अभी भी सी बी आई की अदालत में चल रहा है। इसमें आरोपी
लोगों के अभी भी बयान लिए जा रहे हैं। संभवतः 31 अगस्त को बाबरी विध्वंस मुक़द्दमे पर सी बी आई की
अदालत अपना फ़ैसला भी सुना सकती है। परन्तु इससे पहले राम जन्मभूमि ज़मीनी विवाद का निर्णय पहले ही
सुनाकर विवादों का निपटारा करने का अदालती प्रयास किया गया। अब 5 अगस्त को राम जन्मभूमि मंदिर का
भूमि पूजन व शिलान्यास भी प्रस्तावित है। इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित संभवतः अनेक वे नेता
भी शामिल होंगे जो 6 दिसंबर 1992 की घटना के आरोपी भी हैं। बहरहाल अतीत में झाँकने व पुरानी बहस को
ज़िंदा करने के बजाए अब देश व जनहित में यही है कि समस्त भारतवासी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
का स्वागत करते हुए अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर निर्माण को ख़ुशी से न केवल स्वीकार करें बल्कि
इसमें हर संभव अपना योगदान देने की भी कोशिश करे।
यह भी एक अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि जिन दिनों में इस भव्य मंदिर की आधारशिला रखी जानी है दुर्भाग्यवश यह दौर
कोरोना महामारी के विस्तार का दौर है। ज़ाहिर है इसको मद्देनज़र रखते हुए इस आयोजन को किया जा रहा है।
परन्तु चूँकि पूरा मंदिर आंदोलन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ /विश्व हिन्दू परिषद / बजरंग दल व इसके राजनैतिक
संगठन भारतीय जनता पार्टी द्वारा चलाया गया और इसी आंदोलन की वजह से आज केंद्र सहित कई राज्यों की
सत्ता पर भी इनका नियंत्रण है इसलिए मंदिर शिलान्यास का पूरा आयोजन भी इन्हीं के नियंत्रण में ही रहेगा और
निमंत्रण भी इन्हीं की मर्ज़ी व सलाह मशविरे के साथ ही दिया जाएगा। सरकार द्वारा मंदिर निर्माण के लिए गठित
' श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट' द्वारा अतिथियों को आमंत्रित किया जा रहा है। इसी ट्रस्ट के निमंत्रण पर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अन्य आमंत्रित सदस्यों के नामों का निर्धारण हुआ है। इस निमंत्रण में अन्य भाजपा
विरोधी किसी दल के नेता की तो बात ही क्या करनी अनेक भाजपा सहयोगी दलों को भी यहाँ तक कि दशकों तक
अपनी सहयोगी रही शिव सेना को भी आमंत्रित नहीं किया गया है। जबकि शिवसेना के नेताओं का दावा है कि
मंदिर आंदोलन में उनके संगठन की भाजपा से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका थी। शिव सेना के लोग तो मांग कर
रहे हैं कि उद्धव ठाकरे को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाए। वे कह रहे हैं कि निमंत्रण न मिलने की
सूरत में भी उद्धव ठाकरे 5 अगस्त को श्री राम जन्मभूमि मंदिर के भूमि पूजन व शिलान्यास कार्यक्रम में शरीक
होंगे। शिव सेना का यह भी कहना है कि इस आयोजन में शिरकत लिए किसी से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की भी
कोई ज़रुरत नहीं है। एक ऐतिहासिक शुभ समय पर इस तरह के वाद -विवाद का पैदा होना अच्छा संकेत हरगिज़
नहीं।
बहरहाल मेरे विचार से 'मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम' की जन्मभूमि पर निर्मित होने वाले ऐतिहासिक मंदिर के
निर्माण में किसी भी प्रकार की राजनैतिक व धार्मिक संकीर्णता व सीमित सोच को त्यागने की ज़रुरत है। इसके
उद्घाटन का स्वरूप कैसा होगा, निश्चित रूप से यह निर्णय सरकार द्वारा गठित ट्रस्ट को ही लेना है और वही ले
रहा है। परन्तु इस अवसर पर उदाहरण स्वरूप मैं देश के अब तक के सबसे महंगे व सबसे विशाल दिल्ली के अक्षर
धाम मंदिर के उद्घाटन समारोह को ज़रूर याद कराना चाहूंगा। लगभग 90 एकड़ ज़मीन पर उस समय तक़रीबन
400 करोड़ रूपये की लागत से तैयार किये गए इस विशाल मंदिर का उद्घाटन 6 नवम्बर 2005 को भारत के
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ0 ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के हाथों किया गया था। इस कार्यक्रम में भारत के तत्कालीन
प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह के अलावा विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी भी मौजूद थे। गोया क्या सत्ता
क्या विपक्ष क्या हिन्दू -मुस्लिम तो क्या सिख सभी को समान रूप से मान सम्मान व आदर सत्कार के साथ
आमंत्रित किया गया था। इनके अतिरिक्त विभिन्न देशों व धर्मों के लगभग 25 हज़ार लोग भी इस आयोजन में
शरीक हुए थे। उद्घाटन समारोह के समय ही इस मंदिर ने अपनी पहचान एक धार्मिक स्थल के साथ साथ ही एक
पर्यटक स्थल की भी बनाई थी। यही वजह है कि आज दिल्ली आने वाला किसी भी देश व धर्म का व्यक्ति अक्षर
धाम मंदिर देखने ज़रूर जाना चाहता है। निश्चित रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम ' श्री राम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन
समारोह का दृश्य भी कुछ ऐसा ही होना चाहिए जो धर्म जाति से ऊपर उठकर मानवता का सन्देश देने वाला हो।
भगवान राम के नाम का राजनैतिक लाभ उठाने वाले लोगों को संकीर्णता से ऊपर उठकर भगवान राम के जीवन के
उन प्रसंगों से शिक्षा लेनी चाहिए जिसके चलते वे 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहलाये। 'मर्यादा पुरुषोत्तम' भगवान श्री राम
को किसी एक पार्टी किसी विचारधारा यहाँ तक कि किसी एक धर्म का आराध्य मानना उनके साथ अन्याय करना
होगा। देश दुनिया में केवल वही राम भक्त नहीं जो संघ या भाजपा की विचारधारा जुड़े हैं या उनके द्वारा 'हिंदुत्व
वाद 'का प्रमाण पत्र प्राप्त हैं। पूरा भारत भगवान राम को किसी न किसी रूप में मानता है तथा सभी का उनपर
अधिकार भी है। अतः 'मर्यादा पुरुषोत्तम' श्री राम जन्मभूमि मंदिर का उद्घाटन समारोह ऐसा हो जो प्रत्येक
मानवीय मर्यादाओं को प्रतिबिम्बित करे।