कोरोना संक्रमण का पहला मामला चीन में 17 नवंबर को सामने आया। दिसंबर के अंत तक पूरी दुनिया में तेजी
से खबर फैल गई। एक माह के अंदर ही चीन में 180 मामले सामने आए। जब चीन ने इस संकट की गंभीरता को
समझा तो लॉकडाउन का निर्णय लिया। चीन के इस निर्णय से दुनियां के भी हाथ-पांव फूले और सतर्कता बरतनी
शुरु की। लॉकडाउन यानि तालाबंदी एक आपातकालीन व्यवस्था है। जो किसी आपदा या महामारी के वक्त में किसी
इलाके को पूरी तरह लॉकडाउन थाम देती है। किसी को बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती है। दुनियां का यह
शायद सबसे बड़ा लॉकडाउन है। नतीजतन लोग गंभीर मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हो रहे है। गहरे तनाव,
अवसाद और सदमें की स्थिति में जी रहे है। क्योंकि दुनियां में अधिकतर लोगों के सामने पहली बार ऐसी स्थिति
है। लोग घबराएं हुए है डरे और सहमें है। मौजूदा हालात में बड़ा सवाल यही है कि इन परिस्थितियों का सामना
कैसे किया जाए? मानसिक तनावों से कैसे उभरा जाए? लॉकडाउन के माहौल में कैसे अपनी मनःस्थिति को
मजबूत रखा जाए? ये तमाम बिन्दू हमें महामारी के इस नैराश्यपूर्ण परिदृश्य पर कुछ सकारात्मकता के साथ
मानसिक रुप से सशक्त बनने में मदद करेगें।
जिस तरह से कोरोना संक्रमण का भय और लॉकडाउन से उपजी अनिश्चितता समाज को गहरे दबावों, तनावों और
मानसिक परेशानियों में डाले हुए है। उसके कारण लोग भय, मानसिक दबाव, तरह-तरह के डिस-आर्डर्स, अवसाद
और नकारात्मकता से उभरी निराशा में जीने को मजबूर है। पूरे विश्व के लोग अनिश्चितता से घिरे हुए है। अपने
काम-धंधों और व्यापार को लेकर परेशान है। कोई नौकरी छुटने के खतरे को स्थायी मानसिक तनाव बनाए हुए है।
मीडिया और सोशल मीडिया कोरोना महामारी से जुड़ी खबरों को जिस ढ़ंग से समाज के बीच फेंक रहा है। उसमें
अनुशासन और जिम्मेदारी के साथ-साथ गंभीरता का भारी अभाव है। जिसका परिणाम यह हो रहा है कि लोगों का
तनाव गुणात्मक ढ़ंग से बढ़ रहा है। अफवाहें, फेक न्यूज़, अपने-अपने प्रचार और विचार इस वैश्विक संकट पर
कोई साइंटिफिक दृष्टिकोण और इसके बचाव में कोई एक मुक्कमल आइडिया बनने की दिशा में बड़ी बाधा बन रहे
है। वहीं चुटकुलों और सोशल मीडिया पर कोरोना संक्रमण की मजाक से उपजी मनोरंजनात्मक सामग्री का अपुल
बहाव समाज की संवेदनशीलता को रौंद रहा है। इससे प्रभावित व्यक्तियों, क्षेत्रों, देशों और सम्पूर्ण मानवता के प्रति
हमारा दायित्व बोध कुन्द हो रहा है। अपने सिवा किसी की परवाह ही नहीं है कि पूरा विश्व कहां फंसा खडा है क्यों
ये स्थिति आयी?
पूरी दुनियां में लॉकडाउन के कारण लोगों का जीवन तितर-बितर हो चुका है। घरों में कैद होने से लोग अजीबो-गरीब
मनोदशा के शिकार हो रहे है। सामान्य खांसी और बुखार भी लोगों को कोरोना लग रहा है। लोग अपने घर में भी
डर से मास्क लगाये बैठे है। थोड़ी-थोड़ी देर में हाथ धो रहे हैं। निरन्तर मानसिक तनाव में जी रहे है। अनावश्यक
सूचानाओं को सुन-सुन कर पैनिक हो रहे है। चिंता में है ब्लड़प्रेशर के शिकार हो गए है। नींद नहीं आ रही है लोगों
को। भावनात्मक रुप से अस्वस्थ हो रहे है। शारिरीक और मानसिक बेचैनी महसूस कर रहे है क्योंकि हमारा मेंटल
रूटीन पूरी तरह बिगड़ा हुआ है। अपने आवश्यक रोजमर्रा के सामान्य कामों को करते हुए भी हम डिस्टर्ब है।
लॉकडाउन को ही अगर हम समस्या समझ लेगें तो यह तो वायरस से ज्यादा भी खतरनाक साबित हो सकता है।
तनाव और अवसाद हमें मिलकर ऐसी स्थिति में पंहुचा देगें कि हम निश्चित रुप से ऐसी स्थायी बिमारियों के
शिकार हो जायेगें जो जीवन भर पीछा नहीं छोडेंगी। नकारात्मक विचार श्रृंखला जब चलती है तो वह आण्विक
रिएक्शन की तरह काम करती है। व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को लेकर ही अति-चेतन हो जाता है। उसका मस्तिष्क
तनाव से तना रहता है। दवा मिल पायेगी या नहीं, घर का सामान तो खत्म नहीं हो गया। दूध का कैसे करेगें,
खाने का कैसे करेगें, बच्चों का क्या होगा वह घर में रहते हुए भी असुरक्षित और भयभीत रहता है। मानसिक
तनाव गंभीर रुप से बीमार बना देता है। तनाव में व्यक्ति या तो कुछ खायेगा ही नहीं वह हर समय डरा सहमा
रहेगा या हर समय भूख ही महसूस करता रहेगा। यह स्ट्रेस ईटिंग की स्थिति होती हैं। इस मनःस्थिति में हमारे
शरीर की एड्रेनल-ग्रंथि से कार्टिसोल-हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है, जो भूख बढ़ाता है। इस तनाव के परिणाम कई
गंभीर रोगों के रुप में सामने आते है। मोटापा, हर्ट-प्रोब्लम, डायबिटीज, डिप्रेशन, पेट से जुड़ी बीमारियां।
यह लॉकडाउन एक साथ विश्व के बडे़ हिस्से में है। जिसकी प्रारम्भिक रपटें यह आ रहीं है कि समाज में चिंता का
स्तर गंभीर रुप से बढ़ा हुआ है। समाज में समायोजन की समस्या हर स्तर पर दिखायी दे रही है। व्यक्ति का
चिड़चिड़ापन चर्म पर है। इस अदृश्य भय से नैराशय और फ्रस्ट्रेशन बढ़ा है। ओसीडी यानि ऑब्सेसिव कंपल्सिव
डिसऑर्डर बढ़ा है। अनजाने भय से लोग उसी के बारे में सोचे जा रहे हैं। बार-बार हाथ धोना, सफाई करना, अपने
शरीर के प्रति अति चेतन होना यह सब सनक की तरह हावी हो रहा है। समाज में व्यक्ति संदेह और सदमें में जी
रहा है। पड़ौसी छींक या खाँस भी रहा है तो कोरोना का ख्याल मस्तिष्क में कौंध जा रहा है। अवसाद इतना हावी है
कि व्यक्ति स्वयं को असहाय और बेबस मान बैठा है। अधिकांश स्थितियों में बेवजह पैनिक हैं। क्योंकि खाली
सूचनात्मक समझ हमें सुलझाने में मददगार नहीं होती है बल्कि उलझा देती है, एक तरह से मतिभ्रम कर देती है।
क्योंकि एक तो समाज की पूरी तरह पर-निर्भरता अपने से बाहरी व्यवस्था पर हो चुकी है।
समाज और व्यक्ति सवयं पर किसी भी तरह का विश्वास करने की मनःस्थिति में नहीं बचे है। बीमारी के पहचान
से लेकर प्राथमिक उपचार तक असमंजस है। इसलिए सावधानी, सामाजिक दूरी, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता, घर
में रहना जिसका जो कहना वहीं व्यक्ति को जरुरी लगने लगता है। परम्परागत ज्ञान और अनुभव का कोई
सामाजिक ढांचा हमारे पास बचा नहीं है। ऐसे में व्यक्ति से लेकर समूह तक जो भी इंस्टृक्शन है सब बाहरी है।
नतीजा व्यक्ति पैनिक होगा ही।
अब सवाल इस कठिन दौर को समझदारी से पार करने का है। उसे हंसके कर ले या रो के कर ले। यह हमारी
मानसिक परिपक्वता की परीक्षा का भी समय है। लॉकडाउन में किसी भी हाल में मनोबल को डाउन न होने दे।
यहीं आपकी हार-जीत तय करेगा। हजार काम है करने के, अपने दिमाग को व्यस्त रखने के और इस तनावपूर्ण
मानसिक स्थिति से उभरने के। आप घर में बैठ कर योग करिए, इंडोर गेम्स खेलिए, गाना, डांस, खाना, व्यायाम
से स्वयं को मेंटली-फिजिकली फिट करिए। कुछ रचनात्मक करिए लेखन, पेंटिंग, ड्राइंग, स्केचिंग, सिलाई, बुनाई
और भी कुछ नहीं तो लोकडाउन के अनुभव ही लिख डालिए जनाब। इससे भी मानसिक दृढ़ता और पॉजीटिवीटी
आयेगी जो आपको स्वस्थ बनाए रखने में अहम् सिद्ध होगी। आउटर लॉकडाउन को मेंटल लॉकडाउन ना बनाइएं।
सतर्क और सजग जरूरी रहिए। संयम, धैर्य, सहजता के साथ दूरियों का मतलब फासले नहीं इस भाव का सजोय
रखिए। बेशक संकट बडा है पर समझदारी और साझेदारी के साथ हर स्थिति से पार पाया जा सकता है।