मनुष्य दिव्य आनंद चाहता है

asiakhabar.com | March 17, 2020 | 5:46 pm IST
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मनुष्य अपने जीवन में मन की स्वतंत्रता तथा आनंद ही चाहता है। कोई भी मनुष्य दुःखी नहीं होना चाहता। आनंद
की चाह मनुष्य का स्वभाव तथा जन्मसिध्द अधिकार भी है। वह स्वतंत्र पक्षी की तरह खुले आकाश में उड़ना
चाहता है। उसकी आंतरिक इच्छा रहती है कि कोई बंधन तथा बाधा जीवन में न रहे। मनुष्य अपनी योग्यता को
नहीं पहचान पा रहा। इस प्रकार की स्वतंत्रता तथा आनंद प्राप्ति की योग्यता उसके भीतर ही छिपी हुई है। मनुष्य
अपने भीतर छीपी इस योग्यता की परतों को खोले तो इच्छा पूर्ति में सफल हो जाये।
मनुष्य आंतरिक मन की सुनकर अपनी आदतों को सुधार लें तो मन की स्वतंत्रता तथा दिव्य आनंद प्राप्त कर
सकता है। मनुष्य अपनी पुरानी आदतों को छोड़ने में सफलता प्राप्त कर ले तो जंगल में मंगल हो जाये। सांसारिक
माया के जंगल में भटकना ही मानव मन का अंधकार है। आनंद का दीपक उसके भीतर जल रहा है और वह
प्रकाश की खोज मायावान में कर रहा है। यही उसकी अज्ञान है, यही उसके मन की स्वतंत्रता पर पड़ा आवरण है।
माया का जगत ही मनुष्य को दुःखी कर रहा है और इसी को मनुष्य चाह रहा है। इसी को बढ़ाने में मनुष्य रात-
दिन प्रयत्नशील है।
भगवान का आशीर्वाद मनुष्य को प्राप्त है। उसे मानव देह, इंद्रियां, मन, बुध्दि मिली हैं। शरीर के भरण-पोषण के
लिये संसार मिला। शरीर की रक्षा सुरक्षा के लिए मकान-घर मिला। माता-पिता मिले जिन्होंने उसका पालन-पोषण
किया, शिक्षा दिलाई ताकि मनुष्य अपने आप को समझ सके कि वह कौन है तथा उसके जीवन का लक्ष्य क्या है?
कुछ प्रयत्न तो मनुष्य को भी करना है कि वह साधना करके आनंद प्राप्त कर सके, किन्तु आलस्य तथा लापरवाही
ही उसे आनंद प्राप्ति में बाधक है।


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