सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को दस साल तक देश का प्रधानमंत्री बनाए रखा। मनमोहन सिंह कोई
राजनीतिक नेता नहीं हैं और न ही कांग्रेस में भी उनका कोई पुख्ता आधार है। देश में भी उनका कोई
जनाधार नहीं है। शायद उन्होंने स्वयं भी इस बात का दावा नहीं किया कि वह जन नेता हैं, लेकिन
सोनिया गांधी ने वरिष्ठ और अनुभवी कांग्रेस नेताओं को छोड़कर आखिर मनमोहन सिंह को ही
प्रधानमंत्री क्यों बनाया? यह प्रश्न लोगों के मन में उमड़ता घुमड़ता रहता था। मोटे तौर पर इसके दो
कारण माने जाते थे। पहला कारण तो यह था कि सोनिया गांधी का अपना बेटा राहुल गांधी तब छोटा
था और उसको उस उम्र में प्रधानमंत्री बनाने का साहस सोनिया गांधी भी नहीं कर पा रही थीं। यदि थोड़े
से काल खंड के लिए भी किसी दूसरे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना दिया जाता, मसलन प्रणव मुखर्जी को
ही, तो वह समय आने पर राहुल गांधी के लिए कुर्सी खाली कर देगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं दे
सकता था।
इस मामले में मनमोहन सिंह पर विश्वास किया जा सकता था। सोनिया गांधी के कहने या केवल संकेत
मात्र से ही राहुल गांधी के लिए कुर्सी खाली कर सकते थे, लेकिन क्या केवल इसी कारण से सोनिया
गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था। इसके एक- दूसरे कारण का भी अंदाजा लगाया जा रहा
था। कांग्रेस और भ्रष्टाचार लगभग पर्यायवाची ही बन गए हैं। सत्ता कांग्रेस की होगी तो जाहिर है वरिष्ठ
से लेकर कनिष्ठ कांग्रेसी सत्ताधारी अपने- अपने रुतबे और योग्यता के हिसाब से घोटालों में लग ही
जाएंगे, लेकिन उससे सोनिया कांग्रेस की बदनामी भी होगी, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते थे।
क्या कोई ऐसा तरीका नहीं हो सकता कि भ्रष्टाचार-घोटाले भी चलते रहें और पार्टी की बदनामी भी न
हो। इसी मरहले पर मनमोहन सिंह सबसे योग्य माने गए। अकादमिक जगत में उनकी अंतरराष्ट्रीय
प्रतिष्ठा है। उनकी ईमानदारी को लेकर किसी को रत्ती भर भी संशय नहीं है। सोनिया कांग्रेस के
महारथियों को अपने ऊपर इसी प्रकार की छत की जरूरत थी। बाहर से छत ईमानदारी की और कमरे के
अंदर हैरान करने वाले घोटाले।
ध्यान रखना चाहिए इसी छत की आड़ में चिदंबरम और उनके बेटे की जोड़ी से इस प्रकार के
महाभयानक घोटाले हुए, जिसके कारण छत के उड़ जाने पर चिदंबरम को एक से एक धुरंधर वकीलों के
रहते हुए भी न्यायालय ने एक सौ छह दिन तक जमानत नहीं दी। इतना ही नहीं सोनिया गांधी और
राहुल गांधी, मां-बेटे की जोड़ी को नेशनल हैराल्ड वाले मामले में जमानत तक करवानी पड़ी। नहीं तो वे
अब तक जेल में होते। कोयला घोटाला और टूजी घोटाला तो अभी तक कलंक की तरह कांग्रेस पार्टी से
चिपका हुआ है, लेकिन क्या केवल ईमानदार दिखाई देने वाली छत की खातिर ही सोनिया गांधी ने
मनमोहन सिंह को दस साल तक प्रधानमंत्री बनाए रखा? इस पर भी बहस अभी तक चलती रहती है,
लेकिन अब लगता है मनमोहन सिंह ने स्वयं ही इस बात का खुलासा संकेतों में ही कर दिया है। प्रत्यक्ष-
परोक्ष रूप से मनमोहन सिंह ने कहा है कि 1984 में दिल्ली में सिख पंजाबियों का जो नरसंहार हुआ
उसके लिए उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी जिम्मेदार नहीं थे बल्कि इसके लिए तो उस समय के
गृहमंत्री नरसिम्हा राव जिम्मेदार थे। अभी तक देश भूला नहीं कि 1984 में दिल्ली में कांग्रेस ने पंजाबी
सिंखों का भयंकर नरसंहार किया था। उसमें हजारों निरपराध लोग वीभत्स तरीके से मार दिए गए थे।
उनको जिंदा जला दिया गया था।
मारे जाने वाले अधिकांश पंजाबी सिख 1947 में हुए विभाजन के कारण हिंदोस्तान के उस हिस्से से भाग
कर आए थे, जो पाकिस्तान बना दिया गया था। उस समय नेहरू विभाजन का विरोध करने की बजाय
लार्ड माउंटबेटन दंपति के पक्ष में खड़े हो गए थे जो लंदन से विभाजन करने के लिए ही दिल्ली भेजे गए
थे। नेहरू की उस देशघाती भूल के कारण लाखों पंजाबियों को भाग कर दिल्ली आना पड़ा था। उन्होंने
दिन-रात मेहनत करके दिल्ली में अपना आशियाना फिर से बनाया था। उसके 37 साल बाद नेहरू वंश के
ही राजीव गांधी की पार्टी ने एक बार फिर वही नरसंहार शुरू किया तो राजीव गांधी ने शायद व्यंग्य से
ही कहा होगा कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। कांग्रेस के ही एक वरिष्ठ नेता
सज्जन सिंह इसी हिलती धरती के कारण अभी तक जेल में हैं।
सोनिया कांग्रेस पर पंजाबी सिखों के नरसंहार का ऐसा कलंक था, जिसे उसे अपने माथे से हटा कर
किसी दूसरे के माथे पर लगाना था, लेकिन यह काम कौन कर सकता था? उसके लिए कोई ऐसा पंजाबी
सिख ही चाहिए था जिसका परिवार स्वयं पाकिस्तान के वर्तमान क्षेत्र से विस्थापित होकर आया हो।
इसके लिए मनमोहन सिंह से बेहतर व्यक्ति कौन हो सकता था? मनमोहन सिंह ने दस साल तक बिना
किसी कारण के प्रधानमंत्री बनाए रखने के सोनिया गांधी के नमक का हक अंततः अदा कर दिया।
उन्होंने पंजाबी सिखों के नरसंहार का कलंक टीका नरसिम्हा राव के माथे पर लगाने का उपहास्प्रद प्रयास
किया। यह अलग बात है कि वह टीका न तो तो नरसिम्हा राव के माथे पर लगा, न ही सोनिया कांग्रेस
के माथे से हटा। अलबत्ता इससे मनमोहन सिंह के अपने हाथ काले हो गए। वे सोनिया गांधी के नमक
का हक अदा कर पाए या नहीं यह तो वे ही जानते होंगे, लेकिन इसके बाद वे शायद अपनी जमीर को
जवाब न दे पाएं।