-प्रमोद भार्गव-
चंबल क्षेत्र के बाद मध्य-प्रदेश के मालवा-निमाड़ अंचल में भी जहरीली शराब ने छह लोगों के प्राण हर लिए हैं।
आखिर आबकारी विभाग और पुलिस का बड़ा अमला होने के बावजूद कैसे मंदसौर जिले के ग्रामों में परचून की
दुकानों पर खुलेआम नकली एवं जहरीली शराब की थैलियां बिक रही थीं ? वह भी उस विधानसभा क्षेत्र में जहां से
आबकारी मंत्री विधायक हैं। साफ है, शराब माफिया, सरकारी अमला और राजनीतिक गठजोड़ से यह कारोबार फल-
फूल रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिले के आबकारी अधिकारी को हटा दिया है और आबकारी
उपनिरीक्षक व पिपलिया मंडी के थाना प्रभारी और एक उपनिरीक्षक को निलंबित भी कर दिया हैं, सब जानते हैं कि
निलंबन किसी प्रकार का दंड नहीं है। कुछ ही दिनों में बहाली हो जाती है। मुख्यमंत्री कानून में बदलाव कर कठोर
दंड देने की बात तो कह रहे हैं, लेकिन क्या वे इस कानून में जिम्मेदार अधिकारियों को भी नौकरी से बर्खास्त
करने के प्रावधान करेंगे ? क्योंकि प्रदेश में सुनियोजित ढंग से पुलिस और आबकारी महकमा नशे के कारोबार को
संरक्षण दे रहा है। शिवपुरी में तो इस कारोबार ने किशोर और युवाओं की एक पूरी पीढ़ी को ही गिरफ्त में ले लिया
है। इसमें लड़कियां भी शामिल हैं। तमाम दावों और घोषणाओं के बावजूद प्रदेश समेत देश में जहरीली शराब मौत
का पर्याय बनी हुई है। न तो इसके अवैध निर्माण का कारोबार बंद हुआ और न ही बिक्री पर रोक लगी। नतीजतन
हर साल जहरीली शराब से सैंकड़ों लोग बेमौत मारे जाते हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य-प्रदेश, पंजाब, आंध्र-प्रदेश,
असम और बिहार में बड़ी संख्या में इस शराब से मरने वालों की खबरें रोज आती हैं। लॉकडाउन के दौरान पंजाब
और आंध्र-प्रदेश में करीब सवा सौ लोग सेनेटाइजर पीने से ही मर गए थे। लेकिन तमाम हो-हल्ला मचने के बावजूद
राज्यों के शासन-प्रशासन ने इन हादसों से कोई सबक नहीं लिया। बिहार में यह स्थिति तब है, जब वहां पूर्ण शराब
बंदी है। साफ है, शराब लॉबी अपने बाहू और अर्थबल के चलते शराब का अवैध कारोबार बेधड़क करने में लगी है।
राज्यों की पुलिस और आबकारी विभाग या तो कदाचार के चलते इस ओर से आंखें मूंदे हुए हैं अथवा वे स्वयं को
इस लॉबी के बरक्श बौना मानकर चल रहे हैं। इसीलिए गांव-गांव देशी भट्टी पर कच्ची शराब बन और बिक रही
हैं। बिहार की तरह गुजरात में भी शराबबंदी है, बावजूद सीमावर्ती राज्य मध्य-प्रदेश और राजस्थान से तस्करी के
जरिए शराब खूब लाई और बेची जाती है। लिहाजा शराबबंदी व्यावहारिक नहीं है। इसपर रोक अपराध बढ़ाने का
काम भी करते हैं। बिहार में जब पूर्ण शराबबंदी लागू की गई थी, तब इस कानून को गलत ठहराने से संबंधित
जनहित याचिका पटना हाईकोर्ट में पटना विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर राय मुरारी ने लगाई थी। तब पटना
हाईकोर्ट ने शराबबंदी संबंधी बिहार सरकार के इस कानून को अवैध ठहरा दिया था। इस बाबत सरकार का कहना
था कि हाईकोर्ट ने शराबबंदी अधिसूचना को गैर-कानूनी ठहराते समय संविधान के अनुच्छेद 47 पर ध्यान नहीं
दिया। जिसमें किसी भी राज्य सरकार को शराब पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के
फैसले को विसंगतिपूर्ण बताते हुए यह भी कहा था कि पटना उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ का जो फैसला
आया है, उसमें एक न्यायाधीश का कहना था कि 'शराब का सेवन व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है।’ वहीं दूसरे
न्यायाधीश का मानना है कि 'शराब का सेवन मौलिक अधिकार है।’ ऐसे विडंबनापूर्ण निर्णय भी शराबबंदी के ठोस
फैसले पर कुठाराघात करते हैं। देश के संविधान निर्माताओं ने देश की व्यवस्था को गतिशील बनाए रखने की दृष्टि
से संविधान में धारा 47 के अंतर्गत कुछ नीति-निर्देशक नियम सुनिश्चित किए हैं। जिनमें कहा गया है कि राज्य
सरकारें चिकित्सा और स्वास्थ्य के नजरिए से शरीर के लिए हानिकारक नशीले पेय पदार्थों और ड्रग्स पर रोक लगा
सकती हैं। बिहार में शराबबंदी लागू करने से पहले केरल और गुजरात में शराबबंदी लागू थी। इसके भी पहले
तमिलनाडू, मिजोरम, हरियाणा, नागालैंड, मणिपुर, लक्ष्यद्वीप, कर्नाटक तथा कुछ अन्य राज्यों में भी शराबबंदी के
प्रयोग किए गए थे, लेकिन बिहार के अलावा न्यायालयों द्वारा शराबबंदी को गैर-कानूनी ठहराया गया हो, ऐसे देखने
में नहीं आया था। अलबत्ता राजस्व के भारी नुकसान और अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाने के कारण प्रदेश सरकारें स्वयं
ही शराबबंदी समाप्त करती रही हैं। इस समय देश में पुरुषों के साथ महिलाओं में भी शराब पीने की लत बढ़ रही
है। पंजाब में यह लत सबसे ज्यादा है। निरंतर बढ़ रही इस लत की गिरफ्त में बच्चे व किशोर भी आ रहे हैं। इस
तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए ही बिहार विधानसभा के दोनों सदनों में बिहार उत्पाद (संशोधन) विधेयक-2016,
ध्वनिमत से पारित हो गया था। यही नहीं, दोनों सदनों के सदस्यों ने संकल्प लिया था कि 'वे न शराब पियेंगे और
न ही लोगों को इसे पीने के लिए अभिप्रेरित करेंगे।’ इस विधेयक के पहले चरण में ग्रामीण क्षेत्रों में देसी शराब पर
और फिर दूसरे चरण में शहरी इलाकों में विदेशी मदिरा को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का प्रावधान कर दिया गया
था। इस पर रोक के बाद यदि बिहार में कहीं भी मिलावटी या जहरीली शराब से किसी की मौत होती है तो इसे
बनाने और बेचने वाले को मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया था, लेकिन यहां किसी को फांसी की सजा हुई
हो, इसकी जानकारी नहीं है। शराब के कारण घर के घर बर्बाद हो रहे हैं और इसका दंश महिला और बच्चों को
झेलना पड़ रहा है। साफ है, शराब के सेवन का खामियाजा पूरे परिवार और समाज को भुगतना पड़ता है। शराब के
अलावा युवा पीढ़ी कई तरह के नशीले ड्रग्स का भी शिकार हो रही है। पंजाब और हरियाणा के सीमांत क्षेत्रों में
युवाओं की नस-नस में नशा बह रहा है। इस सिलसिले में किए गए नए अध्ययनों से पता चला है कि अब पंजाब
और हरियाणा के युवाओं की संख्या सेना में निरंतर घट रही है। वरना एक समय ऐसा था कि सेना के तीनों अंगों
में पंजाब के जवानों की तूती बोलती थी। नशे का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू अब यह भी देखने में आ रहा है कि आज
आधुनिकता की चकाचौंध में मध्य व उच्च वर्ग की महिलाएं भी शराब बड़ी संख्या में पीने लगी हैं, जबकि शराब के
चलते सबसे ज्यादा संकट का सामना महिला और बच्चों को ही करना होता है। शराबबंदी को लेकर अक्सर यह
प्रश्न खड़ा किया जाता है कि इससे होने वाले राजस्व की भरपाई कैसे होगी और शराब तस्करी को कैसे रोकेंगे ? ये
चुनौतियां अपनी जगह वाजिब हो सकती हैं, लेकिन शराब के दुष्प्रभावों पर जो अध्ययन किए गए हैं, उनसे पता
चलता है कि उससे कहीं ज्यादा खर्च, इससे उपजने वाली बीमारियों और नशा-मुक्ति अभियानों पर हो जाता है।
इसके अलावा पारिवारिक और सामाजिक समस्याएं भी नए-नए रूपों में सुरसामुख बनी रहती हैं। घरेलू हिंसा से
लेकर कई अपराधों और जानलेवा सड़क दुर्घटनाओं की वजह भी शराब बनती है। यही कारण है कि शराब के
विरुद्ध खासकर ग्रामीण परिवेश की महिलाएं मुखर आंदोलन चलातीं, समाचार माध्यमों में दिखाई देती हैं। इसीलिए
महात्मा गांधी ने शराब के सेवन को एक बड़ी सामाजिक बुराई माना था। उन्होंने स्वतंत्र भारत में संपूर्ण शराबबंदी
लागू करने की पैरवी की थी। 'यंग इंडिया’ में गांधी ने लिखा था, 'अगर मैं केवल एक घंटे के लिए भारत का
सर्वशक्तिमान शासक बन जाऊं तो पहला काम यह करूंगा कि शराब की सभी दुकानें, बिना कोई मुआवजा दिए
तुरंत बंद करा दूंगा।’ बावजूद गांधी के इस देश में सभी राजनीतिक दल चुनाव में शराब बांटकर मतदाता को लुभाने
का काम करते हैं। यह देश का भविष्य बनाने वाली पीढ़ियों का ही भविष्य चौपट करने का काम कर रहा है। पंजाब
इसका जीता-जागता उदाहरण है। शराब से राजस्व बटोरने की नीतियां जब तक लागू रहेंगी, मासूम लोगों को शराब
का लती बनाया जाता रहेगा। निरंतर शराब महंगी होती जाने के कारण गरीब को भट्टियों में बनाई जा रही देशी
शराब पीने को मजबूर होना पड़ता है। सैनेटाइजर में 70 प्रतिशत से ज्यादा एल्कोहल होने का प्रचार हो जाने के
कारण, लाचार लोग इसे भी पीकर मौत के मुंह में समा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने शराब पर अंकुश लगाने की
दृष्टि से राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब की दुकानें खोलने पर रोक लगा दी थी। किंतु सभी दलों के राजनीतिक नेतृत्व
ने चतुराई बरतते हुए नगर और महानगरों से जो नए बाइपास बने हैं, उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने की
अधिसूचना जारी कर दी और पुराने राष्ट्रीय राजमार्गों का इस श्रेणी से विलोपीकरण कर दिया। साफ है, शराब की
नीतियां शराब कारोबारियों के हित दृष्टिगत रखते हुए बनाई जा रही हैं।