सुरेंदर कुमार चोपड़ा
पिछले दिनों महाराष्ट्र के पुणे में एक केमिकल फैक्ट्री में हुए दिल दहलाने वाले अग्निकांड को सामान्य घटना के
रूप में लेना किसी भी सूरत में सही नहीं माना जा सकता। जिस फैक्ट्री में आग लगी थी वहां सैनिटाइजर बनाया
जाता था जो कोरोना काल का अत्यंत ही महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। इस कारखाने में ज्यादातर महिलायें काम
करती थीं। हादसे में 13 कार्यशील औरतें जलकर राख हो गई। रस्मी अंदाज में प्रशासन ने घटना की जांच के
आदेश दे दिए और मृतकों व घायलों के लिए मुआवाजे की घोषणा भी कर दी। पर यह काफी नहीं है।
यह सारा मामला इतना भीषण और दर्दनाक है कि सामाजिक संगठनों को इसकी अपने स्तर पर तफ्तीश करके
इसकी सच्चाई को प्रकाशित करना चाहिए। अगर इस तरह के संगठन सांप्रदायिक दंगों की जांच करके अपनी स्वतंत्र
रिपोर्ट जारी करते हैं, तो उन्हें इस तरह के मामलों को भी देखना होगा। गरीब मजदूरों की मौत को गंभीरता से
लेना ही होगा। यह अजीब दुर्भाग्य है कि हमारे यहां औद्योगिक क्षेत्रों में होने वाले हादसों के प्रति समाज, सरकार
और प्रशासन का रवैया बड़ा ठंडा रहता है। घटना के एकाध दिन के बाद हादसे से संबंधित खबरें आनी ही बंद हो
जाती है। मान लिया जाता है कि सबकुछ सामान्य हो गया है।
पुणे की फैक्ट्री के हादसे को भी सामान्य घटना ही बताया जा रहा है। सिर्फ भोपाल गैस त्रासदी को लेकर खूब हो-
हल्ला मचा था। हालांकि, वह हादसा सच में बहुत भयावह और बड़ा था। पुणे के हादसे में जाने गंवाने वालों में 18
में से 13 महिलाएं थीं। इनके शवों को पहचाना भी नहीं जा सका है। इन फैक्ट्रियों में घनघोर करप्शन होती है।
इसलिए इस हादसे पर पर्दा डालने की कोशिश होगी। स्थानीय मीडिया ने तो हद ही कर दी। उसने फैक्ट्री के एक
प्रवक्ता के हवाले से दावा कर दिया कि फैक्ट्री में किसी भी तरह की कोई गड़बड़ नहीं थी। हादसा तो बस हो गया।
यह वास्तव में गंभीर स्थिति है। अब चूंकि मृतकों की शिनाख्त संभव नहीं है तो फैक्ट्री के मालिक को यह कहने
का मौका मिल जाएगा कि उनका मृतकों से कोई संबंध नहीं है। इन परिस्थितियों में कौन किसे मुआवजा देगा?
महाराष्ट्र को देश के विकास का इंजन माना जाता है। सारा देश उससे सीख लेता है। महाराष्ट्र सरकार को इस
हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। महाराष्ट्र सरकार अपने यहां कोरोना पर नियंत्रण
भी नहीं कर सकी। कहने वाले तो यह कहते हैं कि वहां अकेले ही एक लाख से अधिक लोग कोरोना के कारण
संसार से चले गए। महाराष्ट्र को अपनी वर्तमान छवि में सुधार करना होगा। फिलहाल वहां से तो देश को कोई
सुखद समाचार नहीं मिल रहे हैं।
दरअसल हाल के दौर में मजदूरों के हितों को लेकर कहीं भी गंभीरता नहीं बरती जा रही है। गंभीरता तो सिनेमाघरों
से लेकर स्कूलों, फैक्ट्रियों और होटलों में भी अग्निकांडों को रोकने के स्तर पर नहीं बरती जा रही है। याद करें कि
13 जून,1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमाघर में हुए अग्निकांड में दर्जनों मासूम लोगों की जानें चली गई थीं।
उसके बाद भी देश में अग्निकांड तो बार-बार होते ही रहे। एक बात नोट कर ली जाए कि इन हादसों से देश की
प्रतिष्ठा को तात्कालिक और दीर्धकालिक क्षति पहुंचती है। हरेक हादसे के बाद देश में आने वाला विदेशी निवेशक
भी एकबार फिर से सोचता है। देश की छवि भी धूमिल होती है। विदेशी निवेशक उन देशों में निवेश से पहले दस
बार सोचते हैं, जहाँ आतंकी हादसे या अग्निकाण्ड लगातार होते रहते हैं। ऐसी स्थिति में बेशक देश की अर्थव्यवस्था
पर बुरा असर पड़ना लाजिमी है। यह तो समझना होगा कि कोई निवेशक उस जगह पर जायेगा ही क्यों, जाएगा
जहाँ उसका निवेश ही सुरक्षित नहीं दिख रहा हो।
भारत में किसी अग्निकांड के बाद इस बिन्दु पर कभी विचार नहीं किया जाता। हां,, इन दर्दनाक हादसों के बाद
घटनास्थल पर मुख्यमंत्री, मंत्री और अफसर जरूर औपचारिकता पूरी करने पहुंच जाते हैं। कुछ देर तक घटनास्थल
पर गमगीन खड़े रहने के बाद फोटो सेशन और टी.वी. बाइट देकर वहां से निकल जाते हैं। लेकिन, इन्होंने ही समय
रहते नियमों का उल्लंघन करके चलने वाले होटलों, फैक्ट्रियों, सिनेमाघरों, नाच घरों, बार वगैरह पर ऐक्शन ले
लिया होता तो ऐसे हादसे न होते। जाहिर है कि तब पुणे की फैक्ट्री में हुए जैसे हादसे जरूर टल सकते थे। वहां की
रोजमर्रा जिंदगी भी आज अपनी रफ्तार से चल रही होती। हमारे यहां सैकड़ों अग्निकांडों में हजारों लोग मारे जा
चुके हैं और हजारों करोड़ रुपए की सम्पति का नुकसान हुआ, वह अलग से।
अगर पुणे हादसे की फिर से बात करें तो आठ दिन पहले भी इस फैक्ट्री में हादसा हुआ था। वहां तब भी आग
लगी थी लेकिन उसमें किसी की मौत नहीं हुई थी। हालांकि इस दौरान भी काफी समान जलकर खाक हो गया था।
इसके बावजूद कंपनी के मालिक ने सावधानी नहीं बरती और फिर वहां पर बड़ा हादसा हो गया। इसे कहते हैं
ताबड़तोड़ पैसा कमाने के चक्कर में भयंकर असावधानीपूर्ण कार्य I क्या यह माफ करने योग्य है? क्या महाराष्ट्र
सरकार के स्थानीय प्रशासन को इस फैक्ट्री पर तब ही एक्शन नहीं लेना चाहिए था जब वहां कुछ दिन पहले हादसा
हुआ था? लेकिन तब किसी ने फैक्ट्री मालिक को कुछ नहीं कहा।
पुणे महाराष्ट्र का अति महत्वपूर्ण शहर है। वहां अनेक आईटी और अन्य क्षेत्रों की कंपनियां और बड़े कॉलेज हैं।
अगर वहां यह सब काहिली और लापरवाही हो रही है तो राज्य के सुदूर भागों की स्थिति का तो अनुमान ही लगाया
जा सकता है। अब हादसे के बाद मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा हो गई। जब
मृतकों की पहचान ही नहीं हो पा रही है तो किसे मिलेगा मुआवजा ? सरकार ने मामले की जांच करने के लिए
कमिटी बनाई है लेकिन यह सब रस्मी बातें हैं। इनसे क्या होगा? एक तय अवधि के बाद जांच रिपोर्ट आ जाएगी
और उसे किसी सरकारी दफ्तर की अलमारी में रख दिया जाएगा। अगर हमने पहले के अग्निकांडों से कुछ सीखा
होता तो पुणे का हादसा ना होता। पर इस देश ने गलतियों से सीखना जैसे बंद ही कर दिया है।