सामान्य ज्ञान के शुरुआती पाठों में हमें हमारी पहचान के बारे में भारतीयता के बारे में पढ़ाया जाता है, नक्शा दिखाया जाता है। भू-भाग भारत है और जब नक्शे के किनारे पूर्व की ओर शिफ्ट करते हैं तो बताया जाता है कि छोटे-छोटे राज्यों के इस समूह को पूर्वोत्तर कहते हैं। भारत के उत्तर पूर्व में सात राज्यों अरूणाचंल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं त्रिपुरा को सात बहनें या सेवन सिस्टर्स कहा जाता है वैसे तो सिक्कम राज्य भी पूर्वात्तर में ही है लेकिन जव सेवन सिस्टर्स का गठन हुआ था तव वह भारत का हिस्सा नहीं था। लेकिन जब हम बड़े होकर इस ओर रुख करते हैं तो इसके अक्षांस और देशांतर हमारे जेहन में कम आते हैं। देश की उत्तर पूर्वी बेल्ट एक ऐसी जगह है जहां हम घूमने जाने का प्लान बनाते हैं। कसैली सच्चाई ये है कि इन घूमने जाने के प्लान के अलावा हमारी बातों में, हमारी जिक्रों में, फिक्रों में शामिल नहीं रहता। किसी भी राज्य में कितना भी बड़ा बवाल हो जाए, इसकी आवाज दिल्ली तक आते-आते वो एक या दो कॉलम की खबर में तब्दील हो जाता है।
पूर्वोत्तर नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक फोकस एरिया रहा है। कनेक्टिविटी सुधरी है और एक के बाद एक उग्रवादी संगठन हथियार छोड़कर बातचीत को तैयार हो गए हैं। सरकार का दावा है कि वो शांति स्थापित कर रही है ताकि विकास हो सके। इसी विकास मॉडल के सहारे बीजेपी पूर्वोत्तर के एक के बाद एक चुनाव भी जीत रही है। लेकिन मणिपुर की घटना ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं। मेति बनाम नागा-कुकी को महज जन-जातिय संघर्ष कहकर खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि बात इससे कहीं आगे बढ़ गई है। मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में आगजनी हो जाती है। बवाल ऐसा की रातों रात सेना को मैदान में उतारना पड़ता है। करीब 9 हजार लोगों को जान बचाकर कैंप में आना पड़ा। शूट एंड साइट के ऑर्डर हैं और केंद्र हवाई रास्ते से अद्धसैनिक बलों की टुकड़िया भेज रहा है। मणिपुर में हालात इतने खराब कैसे हुए और समाधान का रास्ता कहां से निकलता है। 1. क्यों हुई हिंसा?
मेइती समुदाय द्वारा एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ आदिवासी समूहों के विरोध प्रदर्शन के दौरान 3 मई को मणिपुर में कई जगहों पर हिंसा भड़क गई। राज्य के विभिन्न स्थानों पर आदिवासी समूहों द्वारा विरोध हिंसक हो गया, जहां बड़े पैमाने पर आगजनी हुई। मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह ने कहा है कि हिंसा में जान-माल का नुकसान हुआ है. आठ जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है और पूरे राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया है, जबकि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है। हाल की हिंसा पहली बार चुराचांदपुर जिले में 27 अप्रैल को हुई थी, जब स्वदेशी जनजातीय नेताओं के मंच (आईटीएलएफ) के नेतृत्व में एक भीड़ ने एक नवनिर्मित जिम-सह-खेल सुविधा को मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन किए जाने से एक दिन पहले जला दिया था। आदिवासी समूह राज्य सरकार द्वारा आरक्षित और संरक्षित वनों और आर्द्रभूमि के प्रस्तावित सर्वेक्षण और तीन अनधिकृत चर्चों के विध्वंस का विरोध कर रहे थे।
2. 5 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर बैन
सुरक्षा बलों द्वारा स्थिति को तेजी से संभाला गया, 3 मई को चीजें नियंत्रण से बाहर हो गईं, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए चुराचंदपुर जिले के टोरबंग क्षेत्र में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आह्वान किया। ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के समर्थन में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन मणिपुर में कई अन्य स्थानों पर हुए और उनमें से कई हिंसक हो गए। आदिवासी बहुल चुराचांदपुर, कांगपोकपी, और टेंग्नौपाल जिलों के साथ-साथ गैर-आदिवासी बहुल इंफाल पश्चिम, काकिंग, थौबल, जिरिबाम और बिष्णुपुर जिलों में हिंसा भड़क उठी। अधिकारियों के अनुसार, सोशल मीडिया पर प्रसारित घृणास्पद और उत्तेजक संदेशों से हिंसा को बढ़ावा मिला, जिसके कारण 5 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया गया।
3. क्या था मणिपुर उच्च न्यायालय का आदेश
आदिवासी समूह वर्षों से एसटी दर्जे की मेइती समुदाय की मांग का विरोध कर रहे हैं, हालिया विरोध और हिंसा 27 मार्च को मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश से शुरू हुई, जिसमें मणिपुर राज्य सरकार को केंद्र सरकार को सिफारिशें प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। अनुसूचित जनजाति (एसटी) सूची में मैतेई को शामिल करना। उक्त निर्देश की मांग करते हुए मेइती कार्यकर्ताओं द्वारा दायर कई याचिकाओं के बाद अदालत ने यह आदेश जारी किया था। उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे को 10 वर्षों से अधिक समय तक खींचने के लिए राज्य सरकार की भी आलोचना की। मई 2013 में, जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने राज्य सरकार से नवीनतम सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण और नृवंशविज्ञान रिपोर्ट के साथ एक औपचारिक सिफारिश प्रस्तुत करने के लिए कहा, लेकिन मणिपुर सरकार ऐसा करने में विफल रही।
4. नागा-कुकी और मैतई विवाद क्या है
प्रमुख रूप से मणिपुर में 3 समुदाय हैं- मैतई, नागा और कुकी। कुकी और नागा आदिवासी समुदाय हैं। वहीं मैतई आदिवासी नहीं हैं। मैतेई और ‘आदिवासियों’ के बीच मौजूदा संघर्ष पहाड़ी बनाम मैदानी संघर्ष का विस्तार है जो उत्तर पूर्व के लगभग सभी राज्यों में मौजूद है। मैती मणिपुर में बहुसंख्यक समुदाय है, जबकि आदिवासी समुदायों की आबादी लगभग 40% से भी कम है। नागा और कुकी जनजातियों को एसटी सूची में शामिल किया गया है, अधिकांश मैतेई समुदाय के लोगों को ओबीसी का दर्जा प्राप्त है, और उनमें से कुछ को एससी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
5. कितना बड़ा है मैतेई समुदाय?
मणिपुर में यूं तो कई समुदाय रहते हैं नगर उनमें सबसे बड़ा मैतेई समुदाय ही है। राज्य का घाटी वाला इलाका जो राज्य के कुल त्रफल का 10% है, उसमें मैतेई और मैतेई पंगल्स रहते हैं। ये मिलाकर राज्य की कुल आबादी के 64.6% हैं। बाकी 90% क्षेत्रफल पहाड़ी इलाका है जो घाटी के चारों ओर फैला है। इन पहाड़ियों में मान्यताप्राप्त जनजातियां रहती हैं जो राज्य की कुल आबादी का 35.4% है।
6. एसटी स्टेटस क्यों चाहते हैं मैतेई?
यह मांग साल 2012 से जोर पकड़ रही है। इसे मुख्यतौर पर शेड्यूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर (STDCM) उठाती रही है। असल में साल 1949 में मणिपुर के भारत में शामिल होने से पहले तक मैतेई को जनजाति माना जाता था। भारत में मिलने के बाद यह दर्जा छिन गया। हाल ही में हाई कोर्ट में जब एसटी का दर्जा देने का मामला उठा तो दलील दी गई कि मैतेई समुदाय की पैतृक भूमि, परंपराओं, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए एसटी का दर्जा दिया जाना जरूरी है।
7. नागा जनजातियाँ ने हिंसा से खुद को दूर क्यों रखा
जहां नागा और कुकी दोनों जनजातियां एसटी दर्जे की मेइतेई मांग का विरोध कर रही हैं, वहीं नागा समुदाय ने हाल के विरोध और हिंसा से खुद को दूर कर लिया है। हाल के विरोध प्रदर्शनों और हिंसा के पीछे मुख्य रूप से कुकी जनजाति का हाथ है। जहां पूरे राज्य में आदिवासी एकजुटता मार्च हुआ, वहीं मुख्य रूप से कुकी इलाकों में हिंसा हुई और नगा इलाकों में मार्च शांतिपूर्ण रहा। दरअसल, मरम यूनियन, माओ यूनियन और रोंगमेई नागा काउंसिल मणिपुर सहित नागा समुदाय के कई संगठनों ने कहा है कि इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम एक नया संगठन है और यह सभी आदिवासियों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। रोंगमेई नागा काउंसिल मणिपुर ने पिछले महीने एक बयान जारी कर कहा था कि आईटीएलएफ की हरकतें स्वदेशी जनजातियों की इच्छाओं और अखंडता के खिलाफ हैं।
8. जनजाति समुदाय क्यों है विरोध में?
विरोध की कई वजहें हैं मगर सबसे अहम यह है कि मैतेई समुदाय का आबादी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व दोनों ही मामलों में प्रभुत्व है। राज्य विधानसभा की 60 में से 40 सीटें घाटी से आती हैं, जहां मैतेई समुदाय बहुतायत में है। ऐसे में जनजातियों को डर है कि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिल गया तो उनके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे।
9. मैतेई को क्या वाकई संकट है?
शेड्यूल्ड ट्राइब्स डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर (STDCM) का कहना रहा है कि राज्य की आबादी में मैतेई समुदाय का हिस्सा घट रहा है। 1951 में जहां ये कुल आबादी का 59% थे, वहीं 2011 की जनगणना में ये घटकर 44% रह गए। हालांकि विरोध कर रही जनजातियों का कहना है कि मैतेई समुदाय की भाषा मणिपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह मिली है। वहीं मैतेई समुदाय (अधिकतर हिंदू) में एससी और ओबीसी को आरक्षण मिल रहा है।
10. मैतेई एसटी दर्जे का विरोध या बर्मी कुकीज़ को बेदखल करना?
मैतेई यह भी दावा करते हैं कि एसटी दर्जे की मांग के खिलाफ हिंसक विरोध सिर्फ एक दिखावा है और आदिवासियों के विरोध के पीछे एक और मकसद है। उनके अनुसार, वास्तविक लक्ष्य वन भूमि का सर्वेक्षण और संरक्षित क्षेत्रों से अवैध अप्रवासियों को बेदखल करना है। मैतेई समूहों के अनुसार, मणिपुर में अवैध अप्रवासन के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय औसत 17.64% की तुलना में 24.5% की वृद्धि दर के साथ अचानक जनसंख्या वृद्धि देखी जा रही है। उन्होंने कहा कि मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में असामान्य उछाल और गांवों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि इस तरह की असामान्य रूप से उच्च जनसंख्या वृद्धि को प्राकृतिक जन्म के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, यह कहते हुए कि यह पड़ोसी देशों से प्रवासन का परिणाम है।