पूर्वोत्तर भारत में हैं सेवेन सिस्टर्स। सातों बहनें प्रकृति की गोद में इठलाती हैं, खिलखिलाती हैं। इसके संतान भी बहुत ही मिलनसार एवं मधुर स्वभाव के हैं। सौभाग्य से मैं भी पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश की सुखद शांत टेंगा घाटी में शिक्षण कार्य कर रहा हूं। पूर्वोत्तर भारत की जीवन शैली बहुत ही प्यारी है, सरस है। अरुणाचल प्रदेश की सगी बहन है मणिपुर। जिसके पास सुख , शांति , सुकून और खुशियों की मणि है।
आज मणिपुर के आंगन में सुख, शांति और सुकून की जगह उपद्रव है, आगजनी है, विलाप है और है आपस की फूट, इज्जत की लूट। अपने ही औलाद हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। हक की लड़ाई लड़ना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है लेकिन हिंसा का मार्ग अपनाना उचित नहीं है। आज मणिपुर में गेहूं के साथ घुन भी पिसा रहे हैं। गांव के गांव आग के हवाले कर दिए जा रहे हैं। बेजुबान जानवरों की हत्या हो रही है। मां बहनों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है जो अशोभनीय कृत्य है।
जिन बच्चियों ने अभी जीवन की कहानी को समझना शुरू किया है उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया जा रहा है। हक की इस हिंसक जद्दोजहद में मानवता शर्मसार है। कहीं आग है, कहीं धुंआ है, कहीं चीख है, कहीं खून है, कहीं आंसू है, कहीं लाचारी है, कहीं बेबसी है।
महीनों से जल रहा है मणिपुर। ना कोई आग बुझा रहा है। ना आंसू पूछ रहा है। न जख्मी मन को सहला रहा है।
बुरा ही सही, यह वक्त है, गुजर जाएगा। कौन है अपना , कौन है पराया , नजर आएगा।
जो मणि का नहीं हुआ ,वह मुल्क का क्या होगा?
‘सावन’ अमावस्या को सह लो, सहर आएगा।
काश! फरिश्ता बनकर कोई चौकीदार आते
मार्ग से भटके हुए बच्चों को समझाते
‘सावन’ लोक हित हेतु अपना फर्ज निभाते
तो मणिपुर के आंगन में फिर अच्छे दिन आते।
सुनो भाई साधो! यदि किसी के घर में आग लगी हो तो मिलजुल कर अतिशीघ्र उसे बुझा देना। क्या भरोसा, समय का झोंका कब अपना रुख बदल दे और उस लम्पट लपट के लपेटे में हम भी आ जाएं।