सुरेंदर कुमार चोपड़ा
देश के अलग-अलग राज्यों में भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे हैं। हालांकि पिछने कुछ दिनों में ऐसे ही
झटके विदेशों में भी सुनने को मिले हैं। गनीमत सिर्फ यह रही कि कहीं से भी किसी प्रकार के जानमाल के
नुकसान की खबर नहीं मिली। दो दिन पहले बिहार और अब असम में भूकंप आने की खबर मिली है। भूकंप
की तीव्रता 4.3 मापी गई। कुछ दिन पहले भी जम्मू-कश्मीर समेत उत्तर भारत में भूकंप के झटके महसूस किए
गए थे। दिल्ली सिस्मिक जोन-4 में आता है और हाल के वर्षों में राजधानी और उसके आसपास के इलाके में
हल्के झटके आते रहे हैं। धरती के अंदर हुई इस हलचल को दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के कई शहरों में
महसूस किया गया था। सिस्मिक जोन-5 को भूकंप के लिहाज से सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है।
दिल्ली, पटना, श्रीनगर, कोहिमा, पुडुचेरी, गुवाहाटी, गंगटोक, शिमला, देहरादून, इंफाल, चंडीगढ़, अंबाला,
अमृतसर, लुधियाना, रुड़की सिस्मिक जोन-4 व 5 में हैं। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, गुजरात, उत्तर
बिहार और अंडमान-निकोबार के कुछ इलाके जोन-5 में शामिल हैं।
भारत में समय-समय पर भूकंप के खतरों पर चर्चा चलती रहती है। कुछ साल पहले नेपाल में आए भयानक
भूकंप के बाद तो भारत में खतरे वाले शहरों को लेकर चिंता बढ़ गई थी। लेकिन हकीकत यह है कि आज तक
हम जागरूकता और एहतियात के उस पैमाने के पास भी नहीं पहुंच सके हैं, जो इस बात के लिए आश्वस्त कर
सके कि आपदा का सामना करने के लिए भारत तैयार है। हर बार हमारी तैयारी को शक की निगाह से ही देखा
जाता है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि देश के 38 शहर हाई रिस्क जोन में हैं। अहमदाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ
सीस्मोलॉजिकल रिसर्च के विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड के नीचे
भूकंपीय खाइयां मौजूद हैं, जिनके चलते यहां अगले 50 वर्षों के अंदर कभी-भी नेपाल जैसा भूकंप आ सकता
है।
वर्ष 2001 में गुजरात में आए भूकंप के बाद देश में इस मामले को लेकर जागरूकता कुछ हद तक बढ़ी है।
बड़े शहरों में ज्यादातर भूकंप-रोधी इमारतें ही बन रही हैं। जो नई मल्टीस्टोरी रिहायशी कॉलोनियां बसी हैं,
उनमें से ज्यादातर में ढांचे के मामले में एहतियाती उपाय किए गए हैं। फिर भी कई जगहों पर बिल्डिंग कोड
का पालन नहीं होता। खासकर कम ऊंची इमारतों के मामले में, और वह भी निजी निर्माण में। ऐसा उन जगहों
पर भी हो रहा है, जो भूकंप के हिसाब से संवेदनशील मानी जाती हैं। समय आ गया है कि भूकंप को लेकर
एक राष्ट्रीय योजना पर काम किया जाए। जन-जागरूकता अहम हिस्सा होना चाहिए। लोगों में अब भी भूकंप
को लेकर कई तरह की गलतफहमियां हैं। बचाव के उनके तरीके गलत हैं। जापान की तरह हमारे यहां भी
शिविर लगाकर या फिर स्कूलों में कुछ बेसिक ट्रेनिंग दी जा सकती है, जो बुरे वक्त में लोगों के काम आ
सकती है। सवाल यह नहीं है कि देश में भूकंप को लेकर क्या सावधानी बरती गई है सवाल आपदा के बाद
प्रबंधन का है। हमें समय रहते प्रबंधन का खाका दुरुस्त करना होगा। चमोली हादसे के बाद प्रबंधन को देखकर
कुछ राहत महसूस हुई है, फिर भी इस दिशा में अभी और ज्यादा प्रयास किए जाने की जरूरत है।