भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का अर्थशास्त्र

asiakhabar.com | September 12, 2023 | 5:19 pm IST
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-डा. अश्विनी महाजन-
23 अगस्त 2023, एक ऐतिहासिक दिवस माना जाएगा, जब भारत के चंद्रमा मिशन के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर पहुंचकर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफलता प्राप्त की। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का तीसरा चंद्रमा मिशन था और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में पहुंचने वाला यह दुनिया का पहला अंतरिक्ष यान था। इस मिशन की शुरुआत 14 जुलाई 2023 को शुरू की गई थी और 23 अगस्त 2023 को लैंडर विक्रम, चंद्रमा की सतह पर उतर गया। गौरतलब है कि भारत का पहला चंद्रमा मिशन चंद्रयान-1 अक्टूबर 22, 2008 को छोड़ा गया था और यह चंद्रमा की संरचना, खनिज विज्ञान और उसकी सतह की विशेषताओं का अध्ययन करने के लिए कई उपकरणों को साथ लेकर गया था। चंद्रमा के बारे में हमारी समझ विकसित करने में इस अभियान का महत्वपूर्ण योगदान रहा। चंद्रयान-2, 22 जुलाई, 2019 को छोड़ा गया था, इसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और एक रोवर शामिल था। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था, लेकिन विक्रम लैंडिंग स्थल से लगभग 600 मीटर दूरी पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन इस अभियान का ऑर्बिटर अभी भी काम कर रहा है और चंद्रमा के बारे में आंकड़े एकत्र कर रहा है।
चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के बाद भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंच चुका है। यानी कहा जा सकता है कि भारत का चंद्रमा मिशन अभी तक काफी हद तक सफल रहा है। दुनिया में मात्र कुछ ही देश ऐसे हैं, जिनका अपना एक स्वआधारित अंतरिक्ष कार्यक्रम है। भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान, कनाडा, साऊथ कोरिया, इजराइल आदि के अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम हैं। लेकिन देखा जाए तो भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश है, जिसने चंद्रमा की सतह पर अपना अंतरिक्षयान उतारा है, लेकिन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर वाहन उतारने वाला भारत पहला देश है। माना जाता है कि चंद्रमा की खुरदरी सतह और गुरुत्वाकर्षण के अभाव में चंद्रमा पर अंतरिक्षयान उतारना काफी कठिन है। भारतीय वैज्ञानिकों ने समझ-बूझ और चतुराई से लैंडर विक्रम को चंद्रमा पर उतारा है, जिसके लिए भारतीय वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। अमरीका दुनिया की आर्थिक, सामरिक एवं तकनीक की महाशक्ति माना जाता है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर अमरीका द्वारा सबसे पहले चंद्रमा मिशन शुरू किया गया था।
भारत ने अपने अंतरिक्षयान आर्यभट्ट को वर्ष 1975 में अंतरिक्ष की कक्षा में भेजा था। 358 किलोग्राम के इस अंतरिक्षयान में पृथ्वी के वातावरण और रेडिएशन बेल्ट के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक उपकरणों को भेजा गया था। उसके बाद 1982 से प्रारंभ इनसेट अंतरिक्षयानों को भेजने की प्रक्रिया शुरू हुई और वर्तमान में भारत के 17 इनसेट अंतरिक्षयान अंतरिक्ष की कक्षा में हैं। तीन चंद्रमा मिशनों के अलावा वर्ष 2013 में भारत ने अपना मंगलयान मंगल ग्रह के लिए छोड़ा था, जो सितंबर 2014 में मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा और अभी भी वह मंगल ग्रह का अध्ययन कर रहा है। भारत अपना पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम जल्द ही शुरू करने वाला है। माना जा सकता है कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद अब भारत दुनिया के अंतरिक्ष कार्यक्रम का एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है। सामान्य तौर पर भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की दुनिया भर में प्रशंसा होती है, लेकिन उसके बावजूद भारत में कुछ लोग अंतरिक्ष कार्यक्रम की यह कहकर आलोचना करते हैं कि भारत एक गरीब देश है और यह इस प्रकार के कार्यक्रमों की ‘विलासिता’ के खर्च को वहन नहीं कर सकता।
उनका यह कहना है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर किए जाने वाले खर्च की बजाय देश में गरीबों के लिए सुविधाएं जुटाने के लिए करना चाहिए। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर किए गए खर्च की बजाय यदि अपने देश की सुरक्षा पर अधिक खर्च किया जाता तो वो बेहतर होगा। लेकिन समझना होगा कि चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत के प्रति दुनिया के रवैये में महत्वपूर्ण बदलाव आने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि अमृतकाल के प्रारंभ में ही भारत के चंद्रयान-3 की सफलता इस अमृतकाल में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की तरफ पहला कदम है। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से दुनिया की जीडीपी रैंकिंग में भारतवर्ष 2014 में 10वें स्थान से आगे बढ़ता हुआ वर्ष 2023 में 5वें स्थान पर पहुंच गया है और 2025 तक यह चौथे स्थान पर और वर्ष 2028 तक तीसरे स्थान तक पहुंच सकता है। क्रय शक्ति समता के आधार पर भारत पहले से ही 12 अरब डालर से अधिक की जीडीपी के साथ तीसरे स्थान पर पहुंचा हुआ है। दुनिया में अंतरिक्ष मिशनों की बड़ी लागत रही है, लेकिन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों का बजट दुनिया के लिए एक मिसाल है। चंद्रमा मिशन की बात करें तो चंद्रयान-3 का बजट मात्र 615 करोड़ रुपए (750 लाख अमरीकी डॉलर) का ही है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की खासियत यह है कि ‘इसरो’ देश की अपनी प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ दुनिया के साथ साझेदारी करता है। जिस किफायत के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम संचालित होता है, यह दुनिया को अचंभे में डालने वाला है। दुनिया का एक बड़ा अंतरिक्ष कार्यक्रम वाली निजी कंपनी के स्वामी एलन मस्क ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की तारीफ की है कि हॉलीवुड की एक विज्ञान फिल्म इंटरस्टेलर की लागत 165 मिलियन अमरीकी डालर थी, जिसकी तुलना में भारत के चंद्रयान-3 मिशन की लागत मात्र 75 मिलियन अमरीकी डालर ही है।
गौरतलब है कि अमरीका का पहले चरण का चंद्रमा मिशन, जिसे अपोलो कार्यक्रमों के रूप में जाना जाता है और जो 1961 से 1972 के बीच में चला उस पर वर्ष 1973 के 25.8 अरब अमरीकी डालर खर्च हुए थे, जो 2021 के 164 अरब अमरीकी डालरों के बराबर था। अमरीका के प्रत्येक अपोलो मिशन पर 1973 के 300 से 450 मिलियन अरब डालर खर्च हुए। दिलचस्प बात यह है कि भारत में चार लेन के 20 किलोमीटर सामान्य हाईवे के निर्माण पर जितना खर्च होता है, उससे कम लागत पर हमने चंद्रमा पर चंद्रयान उतार दिया है। जहां तक भारत की क्षमता का प्रश्न है, भारत स्वयं के ही नहीं, विश्व की महाशक्तियों समेत कई और देशों के अंतरिक्ष यान (उपग्रह) लॉन्च करने में सफल रहा है। इसरो ने हाल ही के वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, इटली, सिंगापुर और इंग्लैंड सहित 20 से अधिक देशों के उपग्रह लॉन्च किए हैं।
इन उपग्रहों को संचार, पृथ्वी अवलोकन, रिमोट सेंसिंग और वैज्ञानिक अनुसंधान सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए लॉन्च किया गया है। 1993 में भारत ने पहली बार पोलर सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) की शुरुआत की। हालांकि इसको भारत की रिमोट सेंसिंग सेटेलाइटों को सूर्य समकालिक कक्षा में स्थापित करने हेतु किया गया था, लेकिन आज तक इसकी 58 उड़ानें हो चुकी है, जिसमें 55 पूर्णत: सफल, एक आंशिक रूप से सफल और दो असफल रही हैं। हर लॉन्च की कीमत उसकी धारण क्षमता के अनुसार 130 करोड़ रुपए से 200 करोड़ रुपए होती है। लेकिन अपने देश और दूसरे देशों की सेटेलाइट को छोडऩे से इसरो की वसूली उससे कहीं ज्यादा हो जाती है। पीएसएलवी 37वीं उड़ान ने तो 104 उपग्रह को एक साथ अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर एक इतिहास भी रचा था। भारत द्वारा उपग्रह लॉन्च करने के लिए 30 से 40 हजार अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम भार, लिए जाते हैं, जो अमेरिकी एजेंसी नासा से कहीं कम है। माना जा रहा है कि भारत की निजी कंपनियों के अंतरिक्ष बाजार में प्रवेश से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और लागत और भी कम हो जाएगी। इसरो ने इस बाबत पहले से ही प्रयास शुरू कर दिए हैं। माना जा सकता है कि आने वाले समय में भारत कम लागत की वजह से विश्व के अंतरिक्ष बाजार में अपनी बड़ी उपस्थिति दर्ज करने में सफल होगा। यह भारत का विश्व की महाशक्ति बनने की ओर पहला कदम होगा।


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