-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-
पिछले दिनों के दो प्रसंगों पर चर्चा करना प्रासंगिक होगा। पहला प्रसंग है, लोकसभा में राहुल गांधी का विद्वत्तापूर्ण
भाषण और दूसरा, पंजाब में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ का चुनाव को लेकर छलका दर्द। सबसे पहले
राहुल गांधी के भाषण की बात। लोकसभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है, भारत एक राष्ट्र
नहीं है। भारत को लेकर यह दुविधा नेहरू-गांधी परिवार में नई नहीं है। दुविधा पुरानी है, अलबत्ता इसमें इटली का
छौंक लग जाने के कारण यह दुविधा बढ़ गई है। पंडित जवाहर लाल नेहरू भी अपने जमाने में भारत को समझने
और पहचानने के प्रयास में लगे हुए थे। इस प्रयास में उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा में एक मोटी किताब ‘डिस्कवरी आफ
इंडिया’ भी लिख दी थी। वे भारत को कितना समझ पाए और कितना नहीं समझ पाए, ये तो नहीं कहा जा सकता,
लेकिन वे जिस रास्ते पर चल पड़े थे, उसका निष्कर्ष उन्होंने यह निकाला कि भारत में एक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया
शुरू हो गई है। नेहरू की एक और दिक्कत थी। वे भारत को अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से समझने का प्रयास कर रहे
थे। अंग्रेज़ी भाषा में भारत को समझाने के लिए अंग्रेज साम्राज्यवादियों ने कई पाठ्य पुस्तकें लिख दी थीं। इस
रास्ते से भारत को समझना मुश्किल था। भारत को भारतीय भाषाओं और भारतीय संस्कारों से ही समझा जा
सकता था। लेकिन नेहरू के दुर्भाग्य से भारतीय भाषाएं उनके लिए ग्रीक थीं। अपनी मातृभाषा कश्मीरी तो वे न
समझते थे, न बोलते थे। जिस उत्तर प्रदेश में जाकर वे बस गए थे, वहां की भाषा वे बोल तो लेते थे, लेकिन
सहजता से लिख-पढ़ नहीं सकते थे।
अब इतने अंतराल में कांग्रेस ने भी लंबी यात्रा तय कर ली है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से शुरू हुई यह यात्रा
सोनिया कांग्रेस तक पहुंच गई है। ज़ाहिर है अब तो इसके लिए भारत को समझना और भी मुश्किल हो गया है।
नेहरू कम से कम इतना तो मानते थे कि भारत राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में है, राहुल गांधी तो उससे भी मुनकिर हो
रहे हैं। भारत में राज्य और शासन व्यवस्थाएं तो अनेक रहीं लेकिन वह एक राष्ट्र है, इसमें किसी को कभी संशय
नहीं रहा। कांग्रेस भारत के एक राष्ट्र होने पर प्रश्नचिन्ह लगाती रही। राष्ट्र के प्रतीकों को नकारती ही नहीं रही
बल्कि प्रत्यक्ष-परोक्ष उन्हें नष्ट करने में भागीदार भी बनी रही। यही कारण है कि सोनिया कांग्रेस आज इस मुक़ाम
पर पहुंच गई है। राहुल गांधी को सुन कर तो ऐसा लगता है मानों वह भारत राष्ट्र के खिलाफ कोई जंग लड़ रही
हो। इस जंग को तेज करने के लिए ही उसने कन्हैया कुमार जैसे टुकड़े टुकड़े गैंग को पार्टी में भर्ती किया लगता
है। उसकी इस लड़ाई में साम्यवादी ताक़तें तो साथ दे सकती हैं क्योंकि उनकी लड़ाई भी भारतीय राष्ट्रीयता के
खिलाफ ही है, लेकिन भारत का आम आदमी उसका साथ नहीं दे सकता। पहले मैं समझता था कि सोनिया कांग्रेस
के भीतर जो जी-23 के नाम से विद्रोही ग्रुप पनपा है, वह केवल सत्ता की रेवडि़यों की असंतुलित बांट के कारण
पनपा है, लेकिन राहुल गांधी के इस भाषण के बाद मुझे लगता है कि इसमें एक कारण सोनिया कांग्रेस का भारत
के प्रति यह दृष्टिकोण भी हो सकता है जिसकी नुमांयदगी राहुल गांधी ने लोकसभा में की।
अब बात करते हैं पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ के छलक आए दर्द की। यह सुविदित ही है कि
लगभग चार महीना पहले जब पंजाब में सोनिया कांग्रेस अपने ही मुख्यमंत्री को अपदस्थ करने के षड्यंत्र में लगी
हुई थी तो नया मुख्यमंत्री कौन हो, इस पर भी उत्तेजित बहस हो रही थी। तब सोनिया कांग्रेस की एक तथाकथित
वरिष्ठ नेत्री, जो पंजाब से ही है, अम्बिका सोनी ने स्पष्ट कर दिया कि पंजाब का मुख्यमंत्री कोई सिख ही बन
सकता है, हिंदू नहीं। ज़ाहिर है वे अपनी राय तो ज़ाहिर नहीं कर रही होंगी, क्योंकि उनकी अपनी राय की पंजाब में
कोई क़ीमत नहीं है। वे ज़मीनी नेत्री नहीं हैं। वे यह घोषणा कांग्रेस की ओर से ही कर रही होंगी। उस समय
सोनिया कांग्रेस ने अपने दल के 79 विधायकों से पूछा था कि मुख्यमंत्री किसको बनाया जाए? परसों अबोहर में
सुनील जाखड़ ने सार्वजनिक रूप से खुलासा कर दिया कि उस प्रक्रिया में किसको कितने विधायकों ने मत दिए थे।
जाखड़ के अनुसार उन्हें 42, रंधावा को 16, प्रणीत कौर को 12, नवजोत सिंह सिद्धू को 6 और चरणजीत सिंह
चन्नी को 2 विधायकों ने मत दिया था। जाखड़ का कहना है कि वे विधानसभा के सदस्य भी नहीं हैं, तब भी
उन्हें 42 विधायकों ने मत दिया। यानी पंजाब या पंजाब के विधायक तो मुख्यमंत्री के चयन को हिंदू या सिख के
आधार पर नहीं देखते, लेकिन सोनिया कांग्रेस का आग्रह है कि उसे हिंदू-सिख के लिहाज़ से ही देखा जाए। लेकिन
इसमें भी कोई नई बात नहीं है। अंग्रेजों के जाने के अवसर पर देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसको लेकर कांग्रेस
के भीतर राय मांगी गई थी। उस समय पंद्रह प्रदेश कांग्रेस समितियां थीं। उनमें सरदार पटेल को 12 और पंडित
जवाहर लाल नेहरू को केवल दो वोट मिले थे। लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू ही बने। सरदार पटेल को रास्ते से हट जाने
का आदेश महात्मा गांधी ने जयप्रकाश नारायण के हाथों गुप्त रूप से भिजवाया था। अलबत्ता इस बार सोनिया
कांग्रेस ने संदेश सार्वजनिक रूप से अम्बिका सोनी के हाथों भिजवाया। लेकिन इस बार और उस बार में एक अंतर
है। महात्मा गांधी के निर्णय का आधार मज़हब जाति नहीं थी। लेकिन सोनिया कांग्रेस के निर्णय का आधार शुद्ध
रूप से मज़हब ही है।
सुनील जाखड़ का यह भी कहना है कि राहुल गांधी ने उन्हें बुलाकर यह भी कहा कि तुम उप-मुख्यमंत्री बन
जाओ। लेकिन मुख्यमंत्री क्यों नहीं, जब 42 विधायक ऐसा कह रहे हैं। उसका उत्तर शायद राहुल के पास एक ही था
कि तुम हिंदू हो। सुनील जाखड़ का कहना है यदि सोनिया कांग्रेस उन्हें किसी आरोप के आधार पर मसलन
भ्रष्टाचार, चरित्रहीनता, अनुशासनहीनता के कारण नकार देती तो मुझे कोई दुख न होता। लेकिन सोनिया गांधी के
पास ऐसा कोई आरोप नहीं था। इसलिए राहुल गांधी ने उन पर हिंदू होने का आरोप लगा कर उन्हें मुख्यमंत्री के
लिए अयोग्य ठहरा दिया। सुनील जाखड़ का दर्द समझा जा सकता है। पंजाब में वे साफ-सुथरे आचरण के
राजनीतिज्ञ माने जाते हैं। केवल हिंदू होने के आरोप में किसी को ख़ारिज कर दिया जाए, तो कष्ट तो होगा ही।
हैरानी तो इस बात की है कि पंजाब में तो हिंदू-सिख का प्रश्न नहीं है, लेकिन सोनिया कांग्रेस इसे दिल्ली में बैठकर
प्लांट करना चाहती है, ताकि पंजाब में लोग आपस में बंट जाएं। इसका रहस्य समझ से परे है। राजनीतिक
विश्लेषकों का मानना है कि सोनिया कांग्रेस को इस निर्णय से नुक़सान होगा या हो सकता है। राजनीतिक नुक़सान
उठा कर भी सोनिया कांग्रेस पंजाब में हिंदू-सिख की चौसर बिछा रही है और उधर राहुल गांधी लोकसभा में दहाड़
रहे हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि यह तो मात्र अलग-अलग राज्यों का एक समूह है। लगता है सूत्र कहीं
अन्यत्र गहरे धंसे हुए हैं।