अशोक मधुप
केंद्र की भाजपा सरकार का जोर मेक इन इंडिया पर है.केंद्र सरकार दुनिया भर की महत्वपूर्ण तकनीक देश में मंगाकर उसे विकसित करने पर लगी है,पर इस पर जोर नही है कि भारत में बना सब भारतीयों का हो. विदेशी तकनीक से देश में उपकरण बनाने पर जोर है, विदेशी तकनीक लाने पर जोर है,पर विदेशों में जाकर बस रहे अपने तकनीशियन,विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के वापिस देश में लाने पर किसी का ध्यान नही . भारत का ध्यान इस ओर क्यों नही कि उसके प्रवासी देश लौटें और देश के विकास में योगदान करें.
आंकड़े कहते हैं कि भारी संख्या में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ भारतीय दूसरे देशों में जाकर बस रहे हैं. प्रवासी सम्मेलन हम हर साल कराते हैं.दुनिया भर में बसे प्रवासियों के प्रतिनिधियों को बुलाते हैं. उनसे बात करते हैं बस. कभी गंभीरता से यह प्रयास नही हुआ कि विदेशों में बसे भारतीयों को भारत वापिस लाने पर काम किया जाए.
केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा को सरकारी आंकड़ों के हवाले से यह जानकारी दी कि साल 2011 के बाद से 16 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ी है . राज्य सभा में क्रमबद्ध तरीके से नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों को हर साल का आंकड़ा पेश किया.विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि साल 2011 के बाद से 16 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ी है. नागरिकता छोड़ने वालों में पिछले साल के 2,25,620 व्यक्त भी शामिल थे, जो इस अवधि के दौरान सबसे अधिक थे, जबकि 2020 में सबसे कम 85,256 व्यक्तियों ने भारतीय नागरिकता छोड़ी .उन्होंने बताया कि साल 2015 में भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या 1,31,489 थी, जबकि 2016 में 1,41,603 लोगों ने नागरिकता छोड़ी और 2017 में 1,33,049 लोगों ने नागरिकता छोड़ी. उनके मुताबिक 2018 में यह संख्या 1,34,561 थी, जबकि 2019 में 1,44,017, 2020 में 85,256 और 2021 में 1,63,370 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी थी.विदेशमंत्री के अनुसार, 2022 में यह संख्या 2,25,620 थी. श्री जयशंकर ने कहा कि संदर्भ के लिए 2011 के आंकड़े 1,22,819 थे, जबकि 2012 में यह 1,20,923, 2013 में 1,31,405 और 2014 में 1,29,328 थे. वर्ष 2011 के बाद से भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की कुल संख्या 16,63,440 है.उन्होंने कहा कि सूचना के मुताबिक, पिछले तीन वर्षों के दौरान पांच भारतीय नागरिकों ने संयुक्त अरब अमीरात की नागरिकता प्राप्त की है. जयशंकर ने उन 135 देशों की सूची भी उपलब्ध कराई जिनकी नागरिकता भारतीयों ने हासिल की है.
गृह मंत्रालय के मुताबिक़ साल 2021 में 163,370 लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी. संसद में पेश किए गए दस्तावेज़ में कहा गया है कि इन लोगों ने “निजी वजहों” से नागरिकता छोड़ने का फ़ैसला किया है.सबसे ज़्यादा 78,284 लोगों ने अमेरिकी नागरिकता के लिए भारत की नागरिकता छोड़ी. इसके बाद 23,533 लोगों ने ऑस्ट्रेलिया और 21,597 लोगों ने कनाडा की नागरिकता ली.चीन में रह रहे 300 लोगों ने वहाँ की नागरिकता ले ली और 41 लोगों ने पाकिस्तान की. साल 2020 में नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या 85,256 थी और साल 2019 में 144,017 लोगों ने नागरिकता छोड़ी थी.साल 2015 से 2020 के बीच आठ लाख से ज़्यादा लोगों ने नागरिकता छोड़ दी. 2020 में इन आंकड़ों में कमी देखने को मिली थी, लेकिन इसके पीछे की वजह कोरोना माना जा रहा है.
संसद में जब पूछा गया कि ये भारतीय अपनी नागरिकता
क्यों छोड़ रहे हैं, तब भारत के गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि इन्होंने व्यक्तिगत कारणों से अपनी नागरिकता छोड़ी.भारतीयों के विदेश जाने और यहां तक कि अपनी नागरिकता छोड़ने के बहुत से कारण होते हैं. लेकिन एक मुख्य वजह बेहतर जीवन की तलाश होती है.इंटरनेशन्स द्वारा 2021 में किए गए एक्सपैट इनसाइडर सर्वे के अनुसार, 59 फीसदी भारतीयों ने रोजगार के बेहतर अवसरों के लिए विदेश में बसना पसंद किया.अपने जीवन में बेहतरी की चाहत को पूरा करने के लिए भारतीयों ने अमेरिका का सबसे ज्यादा पसंद किया है. अमेरिका में, भारतीय अमेरिकी दूसरा सबसे बड़ा प्रवासी समूह है. वहां, यह समूह धनी और सबसे शिक्षित में से एक है.आंकड़े बताते हैं कि एक भारतीय अमेरिकी परिवार की औसत आय करीब 123,700 डॉलर है, जो भारत की औसत आय 63,922 डॉलर से लगभग दोगुनी है.जहां तक शिक्षा का संबंध है, अमेरिका में भारतीय समुदाय के 79 फीसदी लोग ग्रेजुएट हैं, जबकि वहां का राष्ट्रीय औसत 34 प्रतिशत है.भारतीयों के विदेश में बसने और अपनी नागरिकता छोड़ने का एक दूसरा अहम और तेजी से उभरता कारण ‘गोल्डन वीजा’ कार्यक्रम है. कई देश यह सुविधा उपलब्ध कराते हैं.सिंगापुर और पुर्तगाल जैसे देश यह कार्यक्रम चलाते हैं. इस कार्यक्रम में अमीर व्यक्तियों को नागरिकता हासिल करने के बदले इन देशों में बड़ी मात्रा में निवेश करना होता है.हाल के वर्षों में ऐसे कार्यक्रमों को पसंद करने वाले भारतीयों की संख्या बढ़ी है. लंदन की सलाहकार फर्म हेनले एंड पार्टनर्स के मुताबिक, 2020 में इन्वेस्टमेंट माइग्रेशन प्लान के लिए भारतीयों द्वारा पूछताछ की संख्या में 62 फीसदी की वृद्धि देखी गई.ऐसे अमीर लोग कई कारणों से देश छोड़ देते हैं. इनमें बेहतर स्वास्थ्य सेवा से लेकर संबंधित देशों में व्यवसाय और निवेश के बेहतर माहौल शामिल हैं. इसलिए ऐसे भारतीय संबंधित देश की नागरिकता हासिल करना चाहते हैं.साथ ही भारत के पासपोर्ट स्कोर का मसला भी अहम है.
भारत ने प्रवासी भारतीयों को दूहरी नागरिकता नही दी किंतु आईओसी की सुविधा दी है. प्रवासी भारतीय को भारत आईओसी (इंडियन ओरिजन कार्ड )उपलब्ध कराता है, इसके तहत उन्हें भारत आने के लिए वीजा की जरूरत नही पड़ती. इस कार्ड के आधार पर वे कितने भी समय भारत में रह सकतें हैं. वे बस भारत में कृषि संपत्ति नही खरीद सकते.वोट नही डाल सकते.
प्रवासी भारतीय भारतीय मेघा है.अपने – अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं।इन्हें भारत वापिस लाने पर काम किया जाना चाहिए।देश में ऐसे हालात पैदा किए जाएं कि यह स्वदेश लौटना पसंद करें।इसके लिए स्वदेश लौटने वाली परिस्थिति पैदा की जानी चाहिए। भारत को चाहिए कि भारत की नागरिकता छोड़ने वालों से नागरिकता छोड़ने का कारण जानने की कोशिश की जानी चाहिए। नागरिकता छोडने का कारण जानने के बाद ऐसा माहौल बनाया जाना चाहिए कि भारतीय प्रवासी भारत लौटकर देश के विकास में योगदान करें।प्रवासी भारतीयों के लिए देश में वापसी की स्थिति पैदा करने के लिए काम किया जाना चाहिए।