ष्ट्रीय राजनीति में हाल तक ऊष्मा का केंद्र बने गुजरात और राजस्थान में ताप थोड़ा कम हो गया है, लेकिन इसकी तपिश अब दूसरे राज्यों में महसूस की जाने लगी है। सत्ता से दूर रह जाने के बावजूद गुजरात में कांग्रेस का उभार डूबते को तिनके का सहारा साबित हो रहा है। राजस्थान में भाजपा की सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत ने उसे संजीवनी प्रदान कर दी है। इसका सकारात्मक और सीधा असर विपक्ष पर दिख रहा है। विपक्ष की उम्मीदों में चार चांद जोड़ने में भाजपा के कुछ कद्दावर विक्षुब्ध नेताओं की भी अहम भूमिका है। यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और कीर्ति आजाद जैसे भाजपा नेताओं ने अपनी ही सरकार की नीतियों-कार्यक्रमों की आलोचना कर भाजपा में विक्षुब्धों को वाणी प्रदान कर दी है। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के अंतर्कलह की कथा की पुनरावृत्ति अब राज्यों में भी नजर आने लगी है। इसका ताजा उदाहरण झारखंड है। झारखंड में भाजपा के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही अंदरखाने नाराजगी की फुसफुसाहट सुनाई देने लगी थी, जो अब मुखर होकर आचरण और बोली के रूप में मुखर हो रही है। रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाए जाने के साथ ही पार्टी के कद्दावर नेता सरयू राय की जिस तरह उपेक्षा हुई, उसे जहर के घूंट के रूप में उन्होंने ग्रहण तो कर लिया लेकिन मन की मलिनता बरकरार रही। समय-समय पर उन्होंने अपने आचरण और दबी जुबान बयानबाजी से इसे जाहिर भी किया।मंत्रिमंडल की बैठकों में पेश किए गए कुछ प्रस्तावों पर आपत्ति जताते हुए उन्होंने बैठक का बहिष्कार कर यह संकेत दे दिया था कि झारखंड भाजपा के भीतर सब कुछ ठीकठाक नहीं है। समय-समय पर वह बेहिचक सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहे। चारा घोटाले में लालू के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने वाले के रूप में अपनी पहचान बना चुके सरयू राय ने प्रदेश की मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के खिलाफ इस मुद्दे पर मोर्चा खोल दिया कि इस चर्चित घोटाले में उनका भी नाम आया, पर उन पर सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है। उनका कहना है कि राज्य सरकार जान-बूझ कर राजबाला वर्मा को बचा रही है। इसी बीच विधानसभा का सत्र नहीं चल पाने को मुद्दा बना कर सरयू राय ने संसदीय मामलों के अपने मंत्रमिंडलीय दायित्व से इस्तीफा भी दे दिया है। इस्तीफे के बाद वह ज्यादा मुखर हो रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार अपने विधायकों की बात नहीं सुन रही है। अफसर काम नहीं कर रहे हैं। सरयू राय ऐसे नाराज दलीय नेताओं का मुखौटा बन गए हैं। उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी शामिल हो गए हैं। सनद रहे कि विधानसभा चुनाव हारने के बाद मुंडा इन दिनों हाशिये पर चल रहे हैं। इस्तीफे के बाद सरयू राय ने दिल्ली में डेरा डाल दिया है। जाहिर है कि वह दिल्ली में पार्टी के बड़े नेताओं के सामने झारखंड भाजपा के अंदरूनी हालात से लेकर आसन्न चुनाव में दल की दुर्गति की आशंकाओं पर बता रहे होंगे। इस बीच, मुंडा भी दिल्ली के दौरे पर चले गए हैं। राज्य में भूमि संबंधी सीएनटी कानून में संशोधन के सवाल पर जिस तरह विपक्ष को राज्य सरकार ने मौका दिया है, उससे मुंडा भी दुखी बताए जाते हैं। दबी जुबान ही सही, उन्होंने कई दफा इसका विरोध भी किया है। हालांकि सीधे विरोध की जगह उन्होंने पुनर्विचार जैसे शब्द का प्रयोग अपने भाषणों में कई दफा किया है।झारखंड में जितनी आसानी से भाजपा ने पिछले चुनाव में जीत हासिल की थी, उतनी ही कड़ी चुनौती विपक्ष से मिलने की आशंका बलवती हो गई है। आदिवासी और गैर- आदिवासी के बीच खाई इतनी चौड़ी हो गई है कि इसका लाभ बिन मांगे या बिना कोई श्रम किए विपक्षी दलों को मिलना स्वाभाविक है। भाजपा से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा बनाने वाले बाबू लाल मरांडी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन की बढ़ती नजदीकी इसे बताने के लिए काफी है। इतना ही नहीं, झारखंड में विपक्षी एकता की मुहिम को हवा लालू के वहां की जेल में बंद रहने से भी मिल रही है। जेल में मुलाकात के लिए शरद यादव के साथ मरांडी भी जेल पहुंचे। बाबू लाल और हेमंत सोरेन पहले से ही करीब होने का प्रदर्शन कर चुके हैं। विधानसभा में राजबाला वर्मा के मुद्दे पर सदन न चलने की वजह विपक्ष की एकता ही रही, जिसे मुद्दा बना कर सरयू राय ने संसदीय विभाग के मंत्री का पद छोड़ दिया यानी झारखंड में अगले आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में विपक्ष की एका तो दिखेगी ही, रघुवर सरकार से नाराज अपने लोगों का कोपभाजन भी भाजपा को बनना पड़ सकता है। लालू प्रसाद को सजा के साथ ही इस आशंका को बल मिला कि अब राजद सबल नेतृत्व के अभाव में दम तोड़ देगा। यहां तो जेल से लालू प्रसाद विपक्षी एकता के प्रयासों में जुट गए हैं। यह सच्चाई भी है कि फिलवक्त भाजपा-आरएसएस के खिलाफ दबंग आवाज उठाने वाले दल के रूप में राजद की ही पहचान है। यह जानते हुए भी कि लालू प्रसाद पहली बार जेल यात्रा पर नहीं गए हैं, और उनकी संसदीय राजनीति पर विराम भी लग चुका है, लोगों की उत्सुकता, खासकर विपक्षी दलों की इस बात को लेकर है कि लालू प्रसाद के बिना क्या राजद उतने ही मुखर ढंग से विपक्ष की आवाज बना रहेगा या शिथिल पड़ जाएगा। शिथिल पड़ने की आशंका इस बात को लेकर है कि लालू प्रसाद के साथ उनका पूरा परिवार जांच एजेंसियों के राडार पर है। किसी भी सदस्य के साथ कभी भी कानूनी कार्रवाई जोर पकड़ सकती है। अगर ऐसा हुआ तब राजद का क्या होगा। कुछ लोग तो लालू प्रसाद के जेल जाने पर पार्टी में विघटन की संभावना भी देखने लगे थे, लेकिन यहां सब कुछ पलट गया लगता है। लालू प्रसाद जेल से ही विपक्षी एकता का बिगुल फूंक रहे हैं। विपक्ष की एकता को गुजरात में भाजपा को कांग्रेस से मिली कड़ी टक्कर और राजस्थान के उपचुनावों में तीनों सीटों पर भाजपा की पराजय ने काफी बल दिया है। बहरहाल, इसी कड़ी में झारखंड में भाजपा को विपक्ष और अपने ही दल के भीतर से कड़ी चुनौती के संकेत मिलने से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि भाजपा के लिए झारखंड में आने वाले दिनों में राह आसान नहीं होगी।