विकास गुप्ता
‘सफलता तो किस्मत की बात है’, ‘हमारी किस्मत साथ देती तो आज हम भी सफल होते’ जैसी सब बातें पूर्णतः
सच हैं, विश्वास न हो तो किसी भी असफल व्यक्ति से पूछ कर देख लीजिए। असफल व्यक्ति गिन-गिन कर बता
देगा कि फलां सफल व्यक्ति के साथ फलां-फलां लाभदायक स्थितियां थीं, उनके साथ फलां-फलां संयोग घटित हुए
जिनके कारण वे सफल हो गए। दूसरी ओर उनके साथ ऐसे संयोग हुए कि उनका बनता काम भी बिगड़ गया। यह
सच है कि हमारे जीवन में संयोग बड़ी भूमिका अदा करते हैं। बहुत से संयोग हमें सफलता के नजदीक पहुंचा देते
हैं। एक छोटा-सा संयोग घटता है और हमारा रुका काम निकल जाता है। संयोग हमारी सफलता में सहयोगी होते
हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। इसी प्रकार संयोग बनते काम को बिगाड़ भी सकते हैं, इसमें भी कोई शक नहीं है।
सफल और असफल व्यक्ति में ज्यादा अंतर नहीं होता। सफल व्यक्ति संयोगों से लाभ उठाना जानता है, अवसर
आने पर वह उन्हें चूकता नहीं। वह अवसर की तलाश में रहता है और उसके लिए पहले से तैयारी करके रखता है।
सफल आदमी अपना ‘होमवर्क’ करके रखता है ताकि अवसर आए तो वह उसका लाभ उठा सके। वह अच्छी और
बुरी स्थितियों के लिए पहले से तैयारी करके रखता है। उसकी सफलता का यही राज है। असफल व्यक्ति ऊंघता रह
जाता है और अवसर उसके पास से चुपचाप गुजर जाते हैं। बाद में वह अपने आलस्य को दोष देने के बजाय
किस्मत को कोसता रह जाता है। सफल और असफल व्यक्तियों में इससे ज्यादा और कोई अंतर नहीं होता।
विश्वास न हो तो किसी सफल आदमी से पूछ कर देख लीजिए। पंजाब के मोरिंडा के पास के एक छोटे से गांव की
संदीप कौर उत्तर प्रदेश कैडर की वर्ष 2011 की आईएएस अधिकारी हैं। उनके पिता रंजीत सिंह मोरिंडा सब तहसील
में चपरासी थे। वह सातवीं कक्षा की विद्यार्थी थीं जब उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक उड़ान को
देखना आरंभ किया। वह उसके किरदारों से इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने उस कम उम्र में ही आईएएस बनने का
संकल्प लिया। सन् 2002 में चंडीगढ़ की पेक यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नालाजी से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री
हासिल की। इधर-उधर नौकरी भी की, लेकिन अपनी मंजिल को नहीं भुलाया और अंततः सफलता पाई। पिता चतुर्थ
श्रेणी के कर्मचारी, अशिक्षित मां, छोटे से गांव की साधनहीन लड़की की मंजिल क्या आसान रही होगी? क्या उसे
किसी ने हतोत्साहित नहीं किया होगा? किसी ने नहीं कहा होगा कि उसके लिए आईएएस बनना ज्यादा बड़ा लक्ष्य
है जो उसकी पहुंच से बाहर है? यानी, पूरा परिवेश ही ऐसा कि उनका आईएएस बनना चमत्कार से कम नहीं। क्या
उस गांव में और लड़कियां नहीं थीं? क्या दूरदर्शन पर चल रहे सीरियल उड़ान को उनके अलावा गांव में किसी और
ने नहीं देखा? पर प्रेरणा तो सिर्फ एक ने ली। और सिर्फ प्रेरणा ही नहीं ली, उसके लिए मेहनत भी की, दिन का
चैन गंवाया, रातों की नींद कुर्बान की, दिन-रात मेहनत की, जहां से हो सका सहायता ली, मार्गदर्शन लिया और
लक्ष्य की तरफ बढ़ना जारी रखा। आज वह आईएएस अधिकारी हैं और उनके पूरे परिवार की किस्मत ही बदल गई
है। राजस्थान में अलवर के गांव बदनगढ़ी के निवासी मनीराम शर्मा की कहानी तो और भी प्रेरणादायक है। उनके
पिता मजदूर थे, मां दृष्टिहीन हैं और वह खुद शत-प्रतिशत बहरेपन के शिकार हैं। वह जब 9 साल के थे तो उनकी
सुनने की क्षमता जाती रही। पढ़ने के लिए घर से पांच किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। सारी असुविधाओं के
बावजूद उन्होंने दसवीं और बारहवीं में मैरिट सूची में जगह बनाई और फिर बीए में टॉप किया। इसके बाद क्लर्क के
पद पर नौकरी की। फिर नौकरी छोड़कर उच्च शिक्षा हासिल की। पीएचडी तक शिक्षा लेने के बाद राजनीति शास्त्र
के लेक्चरर बने। लेकिन लक्ष्य आईएएस बनना था। उन्होंने 2005, 2006 और 2009 में सिविल सर्विसेज की
परीक्षा पास की, लेकिन बहरेपन के कारण संघर्ष करते रहना पड़ा और अंततः 2010 में उनका वह सपना भी पूरा
हो गया। जिला पटियाला के गांव ककराला भाई की कुलविंदर कौर की कहानी और भी संघर्षों भरी है। वह सातवीं
कक्षा में पढ़ती थीं जब पशुओं का चारा काटने वाली मशीन में आकर उनके दोनों बाजू कट गए थे।
अनपढ़ किसान पिता करनैल सिंह व नसीब कौर की संतान कुलविंदर कौर ने गांव के अति साधारण से सरकारी
स्कूल से प्राथमिक शिक्षा पूरी की, बाद में बीए किया और फिर एलएलबी की। इसके बाद 2011 में उन्होंने
एलएलएम किया और अगले वर्ष यूजीसी-नेट क्लीयर किया। उसके बाद उन्होंने पंजाब सिविल सर्विसिज ज्यूडीशियल
परीक्षा पास की और जज बनने का गौरव हासिल किया। संपर्कों का लाभ मिलता है, मिलता ही है। किसी साधन-
संपन्न अथवा पहुंच वाले व्यक्ति से संपर्क हो जाने पर सफलता की राह कुछ आसान अवश्य हो जाती है। इसीलिए
आजकल नेटवर्किंग पर इतना जोर दिया जाता है। बड़े परिवारों के बच्चों को परिवार के संपर्कों का लाभ अनायास
ही मिल जाता है, परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि प्रतिभा पुरस्कृत नहीं होती या काबिल लोगों को आगे बढ़ने
के अवसर नहीं मिल पाते। अपवाद हर जगह हो सकते हैं, पर सामान्यतः योग्य व्यक्ति अपने लिए रास्ता बना ही
लेता है। अतः इस बात से न घबराइए कि आपके इच्छित क्षेत्र में आपको जानने वाला कोई नहीं है या आपके पास
साधनों की कमी है। यह भी मत सोचिए कि तैयारी का समय कैसे मिलेगा। यदि आप ठान लेंगे तो समस्याएं देर-
सवेर हल हो जाएंगी। उनका कोई न कोई हल निकलता चला जाएगा। यह प्रकृति का नियम है। संयोग आपके साथ
भी घटने लगेंगे। आपको उनसे लाभ लेने के लिए तैयार रहना है। यदि आप अपनी असफलता के लिए दूसरों को
दोष देना छोड़ दें तो आप भी सफल हो सकते हैं। आपको सदैव यह ध्यान रखना होगा कि संदीप कौर के साथ एक
संयोग घटा जिसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाया, पर बाद की कहानी उनकी मेहनत और लगन की कहानी है।
इसलिए अपना लक्ष्य तय कीजिए, राह चुनिए और चलना शुरू कर दीजिए। हर एक कदम चलने पर मंजिल एक-
एक कदम नजदीक होती चली जाएगी। यही सफलता का मूल मंत्र है।