-ओमप्रकाश मेहता-
क्या भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार में संघ की कोई अहमियत नहीं रहीं? क्या भाजपा या मोदी सरकार ने
संघ से ’संरक्षक संगठन‘ का पद छीन लिया? संघ प्रमुख के मौजूदा बयानों से तो ऐसा ही आभास होता है? संघ
प्रमुख डॉ. मोहनराव भागवत की जो बातें भाजपाध्यक्ष या प्रधानमंत्री को निर्देश देकर कहनी चाहिये, वह उन्हें
सार्वजनिक मंच या मीडिया के माध्यम से क्यों कहनी पड़ रही है? संघ के अन्दरूनी सूत्रों का कहना है कि मोदी
सरकार पिछले साढ़े सात सालों से देश पर काबिज है और संघ ने मोदी सरकार बनने के वक्त इस सरकार से
”हिन्दूराष्ट्र“ सहित जो भी अपेक्षाएँ की थी, उनकी पूर्ति की दिशा में पिछले नब्बें महीनों में मोदी सरकार द्वारा कोई
पहल नहीं की गई, इसीलिए अब संघ प्रमुख को एक आम विपक्षी संगठन प्रमुख की तरह अपनी बात रखने को
मजबूर होना पड़ रहा है।
संघ प्रमुख की सरकार से शिकायत का सिलसिला वीर सावरकर पर साहित्यकार उदय माहूरकार द्वारा लिखी गई
पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम से शुरू हुआ, जो संघ मुख्यालय में दशहरा उत्सव सम्बोधन तक जारी रहा। संघ
प्रमुख के ताजा बयानों में उनकी ”हिन्दूराष्ट्र“ नहीं बन पाने की चिंता उभरकर सामने आती है, भारत सरकार की
जनसंख्या नीति धर्मनिरपेक्ष होने पर भी उन्हें शिकायत है, वे चाहते है कि जनसंख्या नीति हिन्दूपरक हो मौजूदा
नीति से जनसंख्या दर में काफी अंतर है और मुस्लिमों की संख्या बढ़ रही है।
इसी से चिंतित होकर भागवत जी ने विजयादशमी पर्व पर हिन्दूओं को संगठित होने पर जोर दिया, उनकी सबसे
बड़ी चिंता पाकिस्तान व चीन है, जिन्हें वे भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते है। इन दो दुश्मन राष्ट्रों का
जिक्र करते करते उन्हें आतंकवाद भी याद आ गया और उन्होंने आतंकवाद के खात्में की दिशा में मोदी सरकार के
खात्में की दिशा में मोदी सरकार के प्रयासों को नाकाफी बता दिया। जम्मू-कश्मीर में आंतकियों द्वारा हिन्दू व
सिखों को लक्ष्य बनाने और उनकी हत्याएं करने पर भी नाराजी व्यक्त की। उनके सम्बोधन से यह स्पष्ट झलक
रहा था कि वे पाक-चीन की भारत विरोधी हरकतों और मौजूदा मोदी सरकार द्वारा उन्हें दबा नहीं पाने के कारण
अपने आपकों काफी असहज महसूस कर रहे है।
हिन्दू मंदिरों पर सरकार या गैर-हिन्दू संगठनों के कब्जों को लेकर भी संघ प्रमुख काफी नाराज दिखाई दिये उनका
स्पष्ट कहना था कि हिन्दू मंदिरों की राशि से गैर हिन्दूओं को लाभ पहुंचाया जा रहा है, इसलिए हिन्दू मंदिरों का
संचालन सिर्फ और सिर्फ हिन्दूओं के हाथों में ही सौंपा जाना चाहिये और जिस वर्ग की भगवान के प्रति कोई निष्ठा
या आस्था नहीं है, उन पर यह चढ़ावे की राशि खर्च करना बंद करना चाहिये। जोश-जोश में वे यहां तक बोल गए
कि जो हाथ हिन्दूओं या राष्ट्र प्रेमियों के खिलाफ उठे उसका वह हाथ ही न रहे, सरकार को अपने में इतना सामर्थ्य
पैदा करना होगा।
अपने विजयादशमी सम्बोधन में संघ प्रमुख केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं रहे, उन्होंने अफगानिस्तान में
तालिबान की वापसी पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान, चीन और रूस तीनों तालिबानियों की
पीठ थपथपा रहे है और भारत के ये तीनों कभी भी हितचिंतक नहीं रहे, इसलिए इनसे सावधान रहना चाहिए तथा
भारत को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर आतंकवाद को प्रश्रय देने वालों के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिये। इसी दौरान संघ
प्रमुख ने भारत की आजादी के बाद देश के किए गए विभाजन पर भी नाराजी जाहिर की उनके कथन से स्पष्ट
होता है कि विभाजन करके मुस्लिम राष्ट्र को जन्म देना ही था तो भारत में इतने मुस्लिम कैसे रह गए? आज ये
ही ’हिन्दूराष्ट्र‘ के मार्ग के अवरोध बने हुए है।
कुल मिलाकर यह तो कहना मुश्किल है कि संघ प्रमुख अपने विजयादशमी सम्बोधन से स्वयं सेवकों को क्या संदेश
देना चाहते थे, किंतु यह जरूर स्पष्ट हुआ कि इन दिनों सरकार व सत्ताधारी संगठन में संघ की अहमियत कम कर
दी गई है, इसीलिए संघ प्रमुख को सार्वजनिक मंचों का सहारा लेना पड़ रहा है?