विश्व को लोकतंत्र की राह दिखाने वाले इंग्लैंड को अभी तक अपनी प्रतीकात्मक राजशाही पर गर्व है। यह विरोधाभास ही है कि पूरे विश्व को गुलामी की गिरफ्त में लेने के बाद से आधुनिक लोकतंत्र की राह दिखाने वाले ब्रिटेन में अभी तक प्रतीकात्मक राजशाही बनी हुई है। ब्रिटिश राजघराने के प्रिंस हैरी और मेगन मर्कल की शादी पश्चिमी मीडिया में चर्चा में रही। पश्चिमी मीडिया ने इस शाही विवाह समारोह की कवरेज को सिर−आंखों पर लिया। कवरेज में कोई कसर बाकी नहीं रखी गई। मसलन कि नवविवाहित जोड़े ने कैसी पोशाक पहन रखी थी। पोशाक किसने और कैसे बनाई। उस पर कैसे कसीदाकारी की गई।
यह पश्चिमी मीडिया का नजरिया है, जिसने यही नहीं इससे पहले भी इंग्लैंड राजघराने में हर छोटे−बड़े आयोजनों को ऐसे ही तरजीह दी है। इंग्लैंड ने पूरी दुनिया पर राज किया है। उसका आखिरी उपनिवेष हांगकांग रहा है। हांगकांग 1997 में मुक्त हुआ। दुनिया के लगभग सभी देशों ने इंग्लैंड की राजशाही सत्ता से आजादी के लिए जमकर संघर्ष किया। भारत सहित कई मुल्कों में लगभग युद्ध जैसे हालात बने। साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा के चलते ब्रिटिश लगभग सभी देशों में सीधे−साधे व्यापारी बनकर आए और कब्जा कर बैठे।
भारत हो या अफ्रीका प्रायः सभी देशों में ब्रिटिश हुकूमत ने सत्ता बनाए रखने और आजादी की मांग को कुचलने के लिए खूब रक्तपात किया। इसके निशान इन देशों के ऐतिहासिक स्थल−इमारतों में आज भी मौजूद हैं। पंजाब में जलियांवाला बाग नरसंहार की यादें मौके−बेमौके ताजा होती रहती हैं। ब्रिटिश राजतंत्र अत्याचार और शोषण का पर्याय बन गया था। इंग्लैंड का मौजूदा राजतंत्र आज भी इसी का प्रतीक है। यह भी सच है कि आधुनिक लोकतंत्र का निर्माता भी ब्रिटेन ही रहा है। ज्यादातर देशों ने ब्रिटिश गुलामी की जंजीर तोड़ने के बाद लोकतंत्र को ही अपनाया। हालांकि इसके लिए देशों को लंबी अवधि तक न सिर्फ इंतजार करना पड़ा बल्कि जान−माल की भारी कीमत भी चुकानी पड़ी।
ब्रिटेन ने चालबाजियों से अपने गुलाम देशों को लूट कर अपना खजाना भरने में कसर बाकी नहीं रखी। इस लूट को लोकतांत्रिक जामा पहनाने के लिए नाम दिया गया आधुनिक शासन का। इसी की आड़ में मनमाने तरीके से जुर्माना और टैक्स के जरिए वसूली की जाती रही। विश्व के देशों में स्थानीय राजाओं ने भी शोषण और अत्याचारों से खजाने भरे थे। ब्रिटिश राज आने के बाद यह खजाना इंग्लैंड ले जाया गया। ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा कोहिनूर हीरा इसी लूट का प्रत्यक्ष परिणाम है। जिसे मौजूदा ब्रिटिश सरकार ने भारत सरकार को सौंपने से साफ इंकार कर दिया। ब्रिटिश शासन ने अपने उपनिवेशों से अवैध वसूली के कई तरीके निकाल रखे थे। मसलन जिन राज्यों में उनका शासन रहा, वहां के राजाओं से सुरक्षा के बदले पूरा खर्चा वसूला जाता।
ब्रिटिश सेना और अफसरों के शाही खर्चे का बोझ स्थानीय राजा उठाते थे। ब्रिटिश राज अपनी धूर्तता की नीति चलते ही विश्व को चंगुल में लेने में कामयाब रहा है। दिखावे मात्र को लोकतांत्रिक तरीके अपनाए गए ताकि तात्कालिक ब्रिटिश सरकार के विरोधियों को कहने का मौका नहीं मिल सके। भारत की तरह दूसरे देशों में दिखावा यह भी किया गया कि प्रजा को राजाओं के शोषण और मनमानी से बचाया गया। अंग्रेजी सरकार ने जो भी अत्याचार किए, उन्हें ब्रिटिश राजतंत्र का पूरा संरक्षण रहा। दरअसल इस राजतंत्र की आड़ में एक के बाद एक देशों को गुलाम बनाया गया।
अब ब्रिटेन सहित यदि पश्चिमी मीडिया इसी राजतंत्र में होने वाले शादी समारोह की कवरेज किसी आश्चर्यजनक घटना की तरह करता है तो इसमें उपनिवेश बनाए जाने का नजरिया झलकना स्वभाविक है। पश्चिमी मीडिया जिस तरह बढ़−चढ़ कर समारोहों की कवरेज करता है, उससे यही लगता है कि विकासशील और गरीब देशों में दिखाने−बताने लायक कुछ नहीं है। पश्चिमी मीडिया ने कभी इस सच्चाई को स्वीकार नहीं किया कि ब्रिटिश राजघराने के हाथ आजादी की जंग लड़ने वालों के खून से रंगे हैं। आजादी की मांग करने वालों के अंग्रेजों ने सर कलम किए हैं। दशकों तक देशों को गुलाम बनाकर उनका हर तरह शोषण किया है। ब्रिटेन की सम्पन्नता और राजतंत्र की मौजूदा कायम शान में मुल्कों की गरीबी और बेबसी छिपी हुई है।
ऐसी हकीकतों से विदेशी मीडिया कन्नी काटता रहा है। बेशक विश्व में मौजूदा लोकतंत्र की बुनियाद इंग्लैंड ने रखी हो किन्तु वहां की सरकारों और राजशाही को इस पर बात पर कोई अफसोस नहीं रहा कि किस कदर सदियों तक देशों को गुलामी के अंधेरे में रखा गया। जलियांवाला बाग इसका उदाहरण है, जिसके लिए ब्रिटिश सरकार ने माफी मांगने से इंकार कर दिया। इससे साफ जाहिर है कि लोकतांत्रिक जागरुकता के नाम पर गुलामी थोपने वाले शासन को अपने किए का जरा भी रंज नहीं है। सबसे पुराना लोकतंत्र होने के बावजूद इंग्लैंड को यदि आज भी प्रतीकात्मक राजतंत्र पर गर्व है तो इसकी वजह भी है कि इसी के नाम पर विश्व के देशों को लूटा−खसोटा गया है।
इसी राजतंत्र की आड़ में ब्रिटेन सम्पन्नता का जामा पहने हुए है। उसका खजाना उपनिवेश देशों की बेहिसाब बेशकीमती सम्पदा से भरा हुआ है। ऐसे में राजशाही के गुणगान में ब्रिटेन को गर्व होना स्वाभाविक है। ब्रिटेन के लिए इस प्रतीकात्मक राजतंत्र से मुक्ति की कल्पना करना भी मुश्किल है। पश्चिमी मीडिया यदि इस राजतंत्र की चिरौरी करता है तो इसका कारण भी पश्चिमी देशों के इंग्लैंड से राजनयिक और कूटनीतिक रिश्ते हैं। इंग्लैंड सहित सभी विकसित देशों में आपसी मतभेद चाहे कैसे भी हों, किन्तु तीसरी दुनिया के देशों के खिलाफ नीतियां बनाने में सब एकराय रहते हैं। ऐसे में पश्चिमी मीडिया का शाही परिवार की खिदमत में सिर झुकाना देशों के आपसी रिश्तों को बनाए रखना भी है। कॉमनवेल्थ देशों का संगठन बनाने के पीछे भी ब्रिटेन का यही दर्प रहा है कि ताकि कहीं न कहीं यह एहसास रहे कि ये देश कभी हमारे बंधुआ रहे हैं। ब्रिटिश राजपरिवार में शादी समारोह के नाम पर ऐसे विलासी आयोजनों से ऐसी ही मानसिकता झलकती है।