शिशिर गुप्ता
वैश्विक कोरोना महामारी के जानलेवा प्रकोप में आम आदमी भयभीत है। हमारे देश में दिन प्रतिदिन कोरोना के
मरीजों एवं मौतों का आँकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। भारत में संक्रमित मरीजों की संख्या पचास हजार होने जा रही
है। महामारी से आम आदमी को बचाने देशव्यापी लाँकडाउन 22 मार्च से जारी है यह लाँकडाउन फिलहाल 17 मई
तक जारी रखने की घोषणा की है। लाँकडाउन आगे भी बढ़ाया जा सकता है।
कोरोना महामारी के प्रकोप से समाज का हर वर्ग परेशान है। मध्यप्रदेश में लगभग 14 लाख बीड़ी मजदूरों पर
जीवन यापन का गंभीर संकट आ गया है। पिछले 22 मार्च से प्रदेश में बीड़ी कारखाने बंद है। पिछले 5-6 दिन
पूर्व सागर जिला प्रशासन ने शर्तों से बीड़ी उद्योग चालू करने की अनुमति दी है। सागर में जो बीड़ी बनती है उसको
बाहर भेजा जाता है। सागर के निर्माता तो अपनी बीड़ी को दिल्ली और असम तक भेजते हैं। सागर में खपत नहीं
होती है। देश के कुल बीड़ी उत्पादन का 25 प्रतिशत मध्यप्रदेश में होता है। लाँकडाउन होते ही बीड़ी कारखाने बंद
होने से गरीब मजदूरों के चूल्हों की आग बुझ गयी। अधिकृत जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश में दस लाख से
ज्यादा पंजीकृत मजदूर हैं। इनके पास राज्य सरकार और केन्द्रीय श्रम कल्याण मंडल के परिचय पत्र हैं। जबकि
बाल श्रमिकों सहित लगभग चार लाख मजदूर अनधिकृत रूप से बीड़ी कारोबार में सक्रिय हैं।
बीड़ी बनाने के लिये कच्चा माल तेंदू पत्ता, तम्बाखू और धागा होना जरूरी है । ट्रांसपोर्ट ठप होने से कच्चा माल
नहीं पहुंच पा रहा है। जिन बीड़ी निर्माताओं पर कच्चा माल उपलब्ध है वह बीड़ी बनवा रहे हैं यह उत्पादन 10
प्रतिशत भी नहीं है। कारखानों में काम करने बाले मजदूर भी खाली बैठे है। मजदूर को ज्यादातर बीड़ी घर पर ही
बनाते हैं पर इसके आगे का काम कारखानों में होता है।बीड़ी को छांटकर उसकी भट्टी पर सिकाई की जाती है फिर
झिल्ली लेबल लगाकर पैंकिंग की जाती है। कारखाने में काम करने बाले मजदूरों को मासिक वेतन मिलता है काम
नहीं होने से ये भी घर पर सिमटकर रह गये है।
सुप्रसिद्ध बीड़ी निर्माता श्री सुभाष जैन अशोक नगर से मेरी विस्तार से चर्चा हुई आपने बताया मध्यप्रदेश में
सागर, जबलपुर, ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, रीवा संभाग के लगभग 35 जिलों में बीड़ी उद्योग संचालित है। बीड़ी
मजदूरी शासन द्वारा प्रति एक हजार 109 रुपये 47 पैसे निर्धारित है। औसतन एक मजदूर एक दिन में डेढ़ से
दो हजार बीड़ी बना लेता है। बीड़ी बनाने का काम अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक समुदाय करता है।। कुछ जगहों
पर उच्च जाति के लोग भी बीड़ी बनाते हैं। महिलाएं भी भारी संख्या में बीड़ी बनाती है।आपका कहना है कोरोना
महामारी के प्रकोप से बीड़ी मजदूरों को ही नहीं निर्माताओं को भी तगड़ा झटका लगा है।
मूलतः ग्रामीण क्षेत्रों में नियमों का न्यूनतम पालन करते हुए असंगठित क्षेत्र में कारोबार में बिचौलियों का बोलबाला
है, वही मजदूर नियोजित करते हैं। उद्योग की भाषा में उन्हें सट्टेदार (एजेंट) कहा जाता है वही मजदूरों से बीड़ी
बनवाकर ब्रांच (मालिक के स्वामित्व की दुकान) पर देता है। ब्रांच भी स्वयं लेबल मालिक की या उसके अधिकृत
निर्माता की हो सकती है। तम्बाकू उत्पादक, तेंदूपत्ता तोड़ने बाले मजदूर भी इस उद्योग से जुड़े हैं। मध्यप्रदेश में
अनेक जिलों में आजीविका का मुख्य साधन बीड़ी उद्योग है।
श्री सुभाष जैन बीड़ी उद्योग से जुड़ी रोचक जानकारी देते हुए बताते हैं मध्यप्रदेश में सबसे पुराना बीड़ी कारोबार
मोहनलाल हरगोविंद जबलपुर का है। दक्षिण भारत में स्पेशल बीड़ी के नाम से वहुत पतली बीड़ी बनती है जो अपने
यहाँ बनने बाली बीड़ी से वहुत मंहगी होती है। महाराष्ट्र का गोंदिया भी अच्छी बीड़ी का बड़ा केंद्र है।
एक मजदूर बीड़ी बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था। कोरोना महामारी के कारण पिछले लगभग
डेढ़ माह से उसकी मजदूरी बंद है। बीड़ी मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों ने राज्य शासन से मांग की है मजदूर को
पाँच से छै हजार रुपये प्रतिमाह सहायता राशि दी जाये। मेरे ही गृह नगर राघौगढ़ जिला गुना ही आज लगभग
पाँच हजार बीड़ी मजदूर वेरोजगार हैं।
बीड़ी के लिये तेंदूपत्ता सबसे प्रमुख है।तेंदूपत्ता यूं तो जंगलों में हमेशा मिलता है, लेकिन बीड़ी बनाने के लिये जेठ
माह के पत्ते सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। जंगलों से तेंदूपत्ता तोड़ने का कार्य 5 मई से 15 जून तक किया जाता है।
अभी 17 मई तक लाँकडाउन है। इस वर्ष तेंदूपत्ता तोड़ने के कार्य पर भी संकट से बादल छा रहे हैं। मध्यप्रदेश में
सीधी, शहडोल, उमरिया, बालाघाट, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, दमोह सागर, सीहोर, श्योपुर,
मुरैना, गुना सहित कई जिलों में तेंदूपत्ता तोड़ा जाता है।