विनय गुप्ता
बिहार में राजनीति का नया अध्याय लिख दिया गया। कल तक जो एक राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष था, उसे चंद
लम्हों में घर बैठा दिया गया। लोक जनशक्ति पार्टी में हुए राजनीतिक तख्तापलट से चिराग पासवान की हालत
ऐसी ही हो गई है। चिराग पासवान, उन रामविलास पासवान का बेटा है, जिन्हें भारतीय राजनीति का मौसम
वैज्ञानिक कहा जाता था। जिन्हें सियासी मिजाज भांपने में माहिर माना जाता था। फिर ऐसा क्या हुआ कि उनका
बेटा ही अपनों की नाराजगी को समझ नहीं पाया? या इस उलटफेर की नींव बिहार विधानसभा चुनाव में ही रख दी
गई थी? रामविलास पासवान के निधन के चंद महीनों बाद ही उनकी पार्टी में बड़ी बगावत हो गई है। पार्टी के छह
में से पांच सांसद अलग हो गए हैं। खास बात यह भी है कि इस बगावत की अगुवाई रामविलास पासवान के छोटे
भाई पशुपति पारस पासवान कर रहे हैं। पशुपति पारस का कहना है कि उन्होंने पार्टी को तोड़ा नहीं है बल्कि बचाया
है, क्योंकि उनके बड़े भाई के निधन के बाद असामाजिक तत्व पार्टी में आ गए हैं। इसको लेकर देशभर के
कार्यकर्ताओं और नेताओं में नाराजगी है। उन्होंने चिराग पासवान से कहा कि वे चाहें तो पार्टी में रह सकते हैं। बता
दें, दिवंगत केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के बाद से उनके बेटे चिराग पासवान के हाथ में पार्टी की
कमान है। पार्टी में अंदरखाने इसी का विरोध हो रहा था, जो खुलकर सामने आ गया है। इससे पहले बिहार
विधानसभा चुनाव में लोकजनशक्ति पार्टी ने 143 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब लोजपा केवल एक सीट जीत पाई
थी, लेकिन महिटानी के अपने विधायक रामकुमार शर्मा को भी चिराग पासवान सहेज नहीं सके और वह जेडीयू में
शामिल हो गए थे। तभी से सांसदों में टूट का डर सता रहा था, जो अब खुलकर सामने आ गया है।
बिहार की राजनीति पर गौर करें तो पूर्व रामविलास पासवान के निधन के कुछ दिन बाद ही बगावत की शुरुआत हो
गई थी। उस दौरान पशुपति पारस का एक पत्र सामने आया, जिसमें उनके नेतृत्व में चार सांसदों के अलग होने का
जिक्र था। उस वक्त पशुपति ने इन अटकलों को खारिज किया और कुछ दिन बाद ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद से
हटा दिया गया। हालांकि, इस उलटफेर के लिए विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के रुख को ज्यादा जिम्मेदार
ठहराया गया। कहा जा रहा है कि एनडीए से अलग होकर चुनाव लडऩे का फैसला चिराग पर भारी पड़ गया। उस
वक्त तो चिराग के इस फैसले से जदयू को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, लेकिन अब वह उसका खमियाजा भुगत रहे
हैं। कहा जा रहा है कि अपनों की नाराजगी से जूझ रही लोजपा में आग भड़काने का काम जदयू के तीन नेताओं ने
किया। इनमें सांसद राजीव रंजन उर्फ लल्लन सिंह और विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी नाम प्रमुखता से लिया
जा रहा है। कहा जा रहा है कि लल्लन सिंह ने सबसे पहले पशुपति पारस को अपने पक्ष में किया। इसके बाद
सूरजभान सिंह को पाले में खींचा। वहीं, हजारी ने महबूब अली कैसर को तोड़ा। साथ ही, प्रिंस राज और वीणा सिंह
को भी चिराग का साथ छोडऩे के लिए मजबूर कर दिया। अब बगावत के बाद चिराग पासवान, बिहार की सियासत
में बिल्कुल अलग-थलग पड़ गए हैं। लोजपा में इस टूट की वजह भाजपा और जदयू के बीच चिराग को लेकर जारी
तकरार को भी माना जा रहा है। बता दें कि 28 नवंबर, 2000 को लोजपा बनी थी। रामविलास पासवान के निधन
के बाद चिराग को पुत्र होने का फायदा मिला। विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
का हनुमान बताया था। लेकिन एनडीए से बाहर निकलकर बिहार विधानसभा चुनाव लडऩे को लेकर उनके चाचा
पशुपति कुमार पारस नाराज थे। पांच सांसदों के निर्णय के बाद लोजपा में बड़े घमासान की आशंका है। लोजपा के
कई नेता पहले ही जेडीयू में शामिल हो चुके हैं। यह सिलसिला जारी रह सकता है। वहीं चिराग पासवान पार्टी के
रूठे नेताओं को मनाने में जुट गए हैं। मगर अब बाजी हाथ से निकल चुकी है। कुल मिलाकर राजनीति में पासवान
परिवार की एकता की मिसाल दी जाती थी। रामविलास पासवान, पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान तीनों
भाईयों में अगाध प्रेम अक्सर चर्चा का विषय रहता था। राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि जब भी तीनों भाई
जुटते हैं, तो साथ ही खाना खाते हैं। कोई भी फैसला सामूहिक रूप से लेते हैं। मगर अब सारी बातें चर्चा का विषय
बनकर रह गई हैं।