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विकास गुप्ता
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले विपक्षी खेमे को तगड़ा झटका लगा है। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने
महागठबंधन से नाता तोड़ लिया है। हम अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने आरोप लगाया है कि
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव जिद्दी हैं और किसी की कोई बात सुनते ही नहीं हैं। ऐसे में उनके साथ रहकर काम
करना मुश्किल है। जीतन राम मांझी का महागठबंधन से अलग होना बड़ी क्षति मानी जा रही है। मांझी बिहार में
महादलित समाज के बड़े नेता माने जाते हैं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि वोट बैंक के हिसाब से जीतन
राम मांझी महागठबंधन को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। बिहार में दलित और महादलित को मिलाकर करीब
16 फीसदी वोटर हैं। इसमें से करीब 5 फीसदी पासवान वोटर रामविलास पासवान की पार्टी के साथ होने का दावा
किया जाता है। वहीं जीतन राम मांझी जिस मुसहर समाज से आते हैं उनका वोट प्रतिशत करीब 5.5 फीसदी है।
रामविलास पासवान इस वक्त पहले से ही एनडीए में हैं, वहीं मांझी के अलग होने से महागठबंधन को करीब 5
फीसदी और वोटों का सीधा सीधा नुकसान होता दिख रहा है। इसके अलावा महादलित कैटेगरी से आने वाले मांझी
के चेहरे पर मिलने वाला वोट भी महागठबंधन से छिटक सकता है। बिहार में अनुसूचित जाति के लिए बिहार
विधानसभा में कुल 38 सीटें आरक्षित हैं। 2015 में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 14 दलित सीटों पर जीत दर्ज की
थी। जबकि, जेडीयू को 10, कांग्रेस को 5, बीजेपी को 5 और बाकी चार सीटें अन्य को मिली थी। इसमें 13 सीटें
रविदास समुदाय के नेता जीते थे जबकि 11 पर पासवान समुदाय से आने वाले नेताओं ने कब्जा जमाया था।
मांझी और पासवान दोनों नेताओं के एनडीए खेमे में होने से महागठबंधन को इसका सीधा सीधा नुकसान होता
दिख सकता है।
जीतन राम मांझी के अलग होने के बाद होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए मुख्य विपक्षी दल श्याम रजक के
चेहरे को आगे कर सकती है। जानकार मानते हैं कि राज्य की राजनीति में जीतन राम मांझी और राम विलास
पासवान दलितों के बीच जितना बड़ा चेहरा हैं उनकी अपेक्षा श्याम रजक कहीं नहीं टिकते हैं। मांझी जहां राज्य के
सीएम रह चुके हैं, वहीं राम विलास पासवान लंबे समय से केंद्र सरकार का हिस्सा हैं।
जीतन राम मांझी महागठबंधन से अलग हो गए हैं, लेकिन उनका अगला कदम क्या होगा यह भी देखने लायक
होगा। राजनीतिक गलियारों में इस बात पर सस्पेंस बना हुआ है कि जीतन राम मांझी एनडीए के घटक दल बनते
हैं या पूरी तरह से अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय करा लेते हैं। साथ ही ये भी चर्चा है कि मांझी अपने बेटे को
लेकर भी जेडीयू से कोई डील कर सकते हैं। कहा यह भी जा रहा है कि एनडीए ने मांझी को साथ लाकर पासवान
पर दबाव बनाया है। पासवान के बेटे कई दिनों से महागठबंधन तोडऩे और अकेले चुनाव लडऩे की बात कह रहे हैं।
दिल्ली में बैठे भाजपा के नेताओं को लग रहा है कि अगर पासवान की पार्टी अकेले चुनाव लड़ती है तो नुकसान हो
सकता है। यही वजह है कि मांझी को विपक्षी खेमे से तोड़कर लाया गया है। निश्चित रूप से इस कदम के बाद
पासवान पर दबाव बढ़ेगा और उनके सुर नरम पड़ेंगे। अभी बिहार चुनाव में काफी वक्त है। लिहाजा, आने वाले
दिनों में कई उलटफेर देखने को मिल सकते हैं। ये किसे फायदा-नुकसान पहुंचाएंगे, देखना होगा।