-अशोक मधुप-
दुनिया भर में 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर बाघ को बचाने की बात
होती है बाघ को बढ़ाने की बात होती है। योजनाएं बनती हैं पर वन को बढ़ाने की बात नहीं होती। वन नहीं बढ़ेगा
तो वन का संतुलन बिगड़ेगा, इससे कई अन्य वन्य प्राणियों को नुकसान होगा। प्रकृति का एक चक्र है। बंधा हुआ
चक्र। सब सिस्टम में काम कर रहा है। यदि हम एक को बढ़ाएंगे तो दूसरा प्रभावित होगा। हम बाघ को बढ़ाने की
बात कर रहे हैं। वन को बढ़ाने की बात नहीं। वन को बढ़ाए बिना बाघ का बढ़ाना प्रकृति का संतुलन बिगाड़ना है।
बाघ का संरक्षण बेमानी है। क्योंकि बाघ बढ़ेगा तो गुलदार का क्या होगाॽ
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एक बाघ का एरिया 90-95 वर्ग किलोमीटर माना गया है। मादा बाघ को 40-45 किलोमीटर एरिया चाहिए। किंतु
हमारे पास इतना नहीं है। भारत में विश्व की संख्या का लगभग 70 प्रतिशत बाघ हैं। 2019 की जनगणना के
अनुसार भारत में बाघ की संख्या 2967 है। 1973 में जब बाघ बचाओ अभियान शुरू हुआ तो भारत में सात
टाइगर रिजर्व थे। आज इनकी संख्या बढ़कर 51 हो गई है। टाइगर को बढ़ाने के लिए बहुत काम किया जा रहा है।
टाइगर बढ़ा है पर इसका आवास एरिया कम होता जा रहा है।
हम भेड़चाल चलते रहे हैं जो सोच लेते हैं उसे करने लगते हैं उसके लाभ और हानि की नहीं सोचते। आज बाघ
बढ़ाने की बात हुई, उनके आवास को बढ़ाने की बात नहीं। जरूरत आवास क्षेत्र को बढ़ाने की भी है। एक रिपोर्ट के
अनुसार रणथंभौर टाइगर अभ्यारण्य में 40 या अधिकतम 50 बाघ रह सकते हैं लेकिन आज उसमें 71 बाघ हैं।
ऐसे ही पीलीभीत टाइगर रिजर्व 60 किलोमीटर लंबा और 15 किलोमीटर चौड़ा है। यहां एक या दो टाइगर होने
चाहिए, आज इसमें टाइगर की संख्या बढ़कर 65 हो गई है। ज्यादा टाइगर आबादी की ओर भाग रहे हैं। अपनी
सीमा से बाहर आ रहे हैं इससे आबादी संकट में है और उनके आबादी के साथ संघर्ष हो रहे हैं। अकेले बरेली मंडल
में खूंखार जानवरों से संघर्ष में पिछले चार साल में 32 लोगों की मौत हुई है।
टाइगर अर्थात् बाघ और गुलदार एक दूसरे के दुश्मन हैं। दोनों मांसाहारी हैं। दोनों का शिकार एक है। शिकार करने
का तरीका एक है। कई बार गुलदार बाघ के शिकार को ले भागता है। उसे लेकर पेड़ पर चढ़ जाता है। इसलिए बाघ
अपने क्षेत्र में गुलदार को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करता। जिस क्षेत्र में बाघ रहेगा, उसमें गुलदार नहीं रह
सकता। बाघ उसे देखते ही मार देता है। इसी का परिणाम है कि बाघ बढ़ने से गुलदार वन से भाग रहा है। बाघ के
बढ़ने से वन क्षेत्र में गुलदार के जीवन के लाले पड़ गए हैं। टाइगर क्षेत्र में वह रह नहीं सकता। उसे भी जीवन
जीना है इसलिए वह आबादी की ओर भाग रहा है। पिछले कुछ साल में उसे आबादी रास आने लगी है। उसने
आबादी के आसपास अपने आवास बनाने शुरू कर दिए। गुलदार को रहने और प्रजनन के लिए आबादी के पास के
ईखा (गन्ने) के खेत सबसे सुरक्षित जगह बन गए। उनमें वह आराम से रह सकता है। छिप सकता है। एक ईख
उसके लिए एक अच्छा सुरक्षा स्थल, शरणस्थल है। दूसरे मादा इसी में प्रजनन करने लगी। गुलदार को भोजन के
लिए गांव के आसपास के कुत्ते और बिल्ली आसान शिकार हैं। वे ईख में छुपते हैं और कुत्ते और बिल्ली से पूरा पेट
भर लेते हैं। आबादी के पास बढ़ती गुलदार की संख्या को लेकर गांववासी ही नहीं, शहरवासी तक परेशान हैं। हालत
यह हो गई है कि गुलदार वन से निकल कर अब शहरों तक पहुंच गए। अपने शरणस्थल के पास आसपास आदमी
के आने पर वह हमलावर हो रहे हैं। भूख लगने पर कई बार बच्चों को भी अपना शिकार बना देते हैं। अब तो वह
आबादी में पशुशाला तक पहुंचने लगा है। सबको जीवन जीना है। गुलदार को अपने को बचाना है। बाघ के बढ़ने का
खामियाजा गुलदार के साथ-साथ आज आबादी को भी मिल रहा है। जरूरी है कि बाघ को बढ़ाने की योजना बनाते
समय उसके सभी परिणामों पर सोचा जाए व उसके नुकसान को कुछ सोचा जाए। बाघ को बचाने के लिए वन के
शाकाहारी प्राणियों को बचाने के साथ-साथ हमें गुलदार को भी बचाने की कवायद करनी होगी। ऐसा नहीं हुआ तो
आबादी के पास पहुंचा गुलदार नुकसानदायक होगा। जनता और गुलदार में संघर्ष बढ़ेंगे। इससे और परेशानी पैदा
होगी।