अशोक कुमार यादव मुंगेली
झुंझकुर बारी भितरी खड़े हे पातर-लंमरी।
हरियर रंग के लुगरा पहिने हे जईसे परी।।
पिंयर-पिंयर देंह दिखथे, भूरी-भूरी चुन्दी।
घेरी-बेरी, आथे-जाथे बेलबेलहा फुरफुंदी।।
जोंधरी के कोंवर, सुघ्घर गदराय हे जुवानी।
किरवा मन छेदरा करके खाथें आनी-बानी।।
रमकेरिया, खीरा, बरबट्टी मन मुँह ताकत हे।
पैरा के डोंहणु अउ छतनार पिहरी हाँसत हे।।
पुरवई म ओखर जईसे पाना अंचरा डोलय।
चुगलहा करूहा करेला ताना देके छोलय।।
गाँव ले बस बईठ के वोहा चल देथे सहर।
सड़क के ठेला म खड़े नाचत हे चारो पहर।।
पकपक ले गोरी जोंधरी आगी म उसनागे।
गिदरा करिया कोइला के मया म मोहागे।।
गोलवा लिमउ के जीव मांगत हे लिमउवा।
नून संग तात म जीव खेलही डपकउवा।।
अम्मठ अउ नूनछुर पानी म नहाथे लगर के।
धरसा रेंगईया के लार चुचवावत हे जबर के।।
बरसा के दिन म जम्मों मनखे इही ल भाथें।
लइका, ढुड़मा अउ सियान सेवाध लेके खाथें।।